विश्लेषण

झूठ की खुली पोल

‘ऑपरेशन सिंदूर’ की आड़ में कुछ देशी-विदेशी मीडिया चैनल पाकिस्तान के दुष्प्रचार को हवा दे रहे हैं। ऐसे दौर में, जब सोशल मीडिया सूचनाओं को बिजली की गति से फैलाता है, पत्रकारों पर सच्चाई के रखवालों के रूप में काम करने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है

Published by
अजमल शाह

भारत द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने के बाद सोशल मीडिया और कुछ मीडिया चैनलों पर गलत सूचनाओं की बाढ़ आ गई। भारतीय लड़ाकू विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने या पाकिस्तान द्वारा भारत पर जवाबी हमले के झूठे दावे किए गए। पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) ने सूचना युद्ध के हिस्से के रूप में इस नैरेटिव को हवा दी, जिसे कुछ वैश्विक और घरेलू मीडिया संस्थानों ने बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया। इसके विपरीत, कई अखबारों और चैनलों ने सत्यापित जानकारी पर सटीक रिपोर्टिंग की। यह विरोधाभास महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक घटनाओं के दौरान जनता की धारणा को आकार देने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका और विफलता को रेखांकित करता है।

पाकिस्तान का दुष्प्रचार अभियान तेज व समन्वित था। पाकिस्तानी मीडिया से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स व आईएसपीआर ने गलत सूचनाएं प्रसारित कीं। इनमें दावा किया गया कि पाकिस्तान ने भारतीय विमानों को मार गिराया या 15 भारतीय ठिकानों पर हमला किया, जैसे कि श्रीनगर एयरबेस, पठानकोट एयरबेस, भारतीय सेना का ब्रिगेड मुख्यालय आदि। भारत के प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) सहित स्वतंत्र तथ्य जांचकर्ताओं ने उन खबरों को 2024 में खैबर पख्तूनख्वा में हुई झड़पों आदि से संबंधित बताते हुए खारिज किया।

दरअसल, पाकिस्तान की ओर से यह दुष्प्रचार अभियान अपेक्षित था। चूंकि वह भारत का मुकाबला नहीं कर सकता, इसलिए फर्जी खबरों को हथियार बनाया है। भारत द्वारा 2019 में बालाकोट हवाई हमले और पिछले अभियानों के समय भी पाकिस्तान ने यही किया था। पाकिस्तान की ओछी हरकतें तो समझ में आती हैं, लेकिन कुछ वैश्विक और घरेलू मीडिया ने बिना पुष्टि के झूठी खबरें प्रकाशित कीं। यह उनकी संदिग्ध भूमिका को दर्शाता है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारतीय सैन्य नुकसान के बारे में अपुष्ट दावे किए तो बीजिंग में भारतीय दूतावास ने सार्वजनिक रूप से उसे फटकारा। गलत सूचना आगे बढ़ाने से पहले तथ्यों की पुष्टि करने व स्रोतों की जांच करने की नसीहत दी।

यह घटना इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे राज्य से जुड़ा मीडिया सच्चाई की बजाए एजेंडे को प्राथमिकता दे सकता है, खासकर जब वह पाकिस्तान के नैरेटिव से जुड़ा हो। तुर्किये की सरकारी टीआरटी ने एक पुराने वीडियो को भारत-पाकिस्तान संघर्ष बताते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में पाकिस्तान के ‘सूचना युद्ध’ अभियान में सहयोग किया। यह टीआरटी के राज्य संचालित नैरेटिव को प्राथमिकता देने के पैटर्न के अनुरूप है, जैसा कि तुर्किये के 2019 सीरिया ऑपरेशन की सेंसर की गई कवरेज और 2020 एवरोस सीमा संकट के दौरान अपुष्ट दावों में देखा गया है।

अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ की पत्रकार विजिता सिंह ने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि पाकिस्तान ने तीन भारतीय विमानों को मार गिराया। लेकिन बाद में रिपोर्ट हटा दी गई, क्योंकि पाकिस्तानी दुष्प्रचार से प्राप्त इस दावे की पुष्टि किसी ने नहीं की। ऐसा करके अखबार ने भले ही अपनी ‘गलती’ पर परदा डालने की कोशिश की, लेकिन पाठकों की निगाह में यह रिपोर्ट उसकी साख पर बट्टा लगाने वाली थी। यह उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है। अन्य वैश्विक मीडिया, उपलब्ध रिपोर्टों में जिनका स्पष्ट रूप से नाम नहीं है, को भी पश्चिमी मीडिया की व्यापक आलोचनाओं में शामिल किया गया है, क्योंकि वे अक्सर बिना जांच के पाकिस्तानी दावों को दोहराते हैं।

भारतीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि पाकिस्तान के व्यापक दुष्प्रचार को पाकिस्तान समर्थक सोशल मीडिया अकाउंट्स और यहां तक कि प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों द्वारा बढ़ावा दिया गया। इससे यह संकेत मिलता है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इन आख्यानों को विश्वसनीयता प्रदान कर दी है। यहां नामजद दोषियों का न होना एक प्रणालीगत समस्या की ओर संकेत करता है।
इसके विपरीत, वैश्विक और घरेलू, दोनों ही मीडिया में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की तथ्यात्मक और संयमित कवरेज की, जिसमें भारत द्वारा आतंकी शिविरों को निशाना बनाने और ऑपरेशन के रणनीतिक उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित किया गया। घरेलू स्तर पर, एनडीटीवी ने व्यापक रिपोर्टिंग की, जिसमें मुजफ्फराबाद और बहावलपुर सहित नौ स्थानों पर किए गए मिसाइल हमलों का ब्योरा दिया गया तथा ऑपरेशन की सटीकता और गैर-तनाव बढ़ाने वाली प्रकृति पर जोर दिया गया।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने मरकज सुभान अल्लाह और मरकज तैयबा जैसे नौ लक्षित स्थलों की सूची दी और यह रेखांकित किया कि संपत्ति का कम से कम नुकसान हो, इसके लिए HAMMER और SCALP मिसाइलों का उपयोग किया गया। इसी तरह, इंडिया टुडे ने भी लाइव अपडेट प्रदान करते हुए सरकार के इस रुख को पुष्ट किया कि किसी भी पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने पर हमला नहीं हुआ है। साथ ही, कर्नल सोफिया कुरैशी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह और विदेश सचिव विक्रम मिसरी द्वारा दी गई आधिकारिक ब्रीफिंग का हवाला दिया।

वहीं, विश्व स्तर पर ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ जैसे प्रमुख समाचार-पत्रों ने इसे इस तरह प्रस्तुत किया, जैसे यह भारत का आतंक विरोधी अभियान न होकर पाकिस्तान पर हमला हो। बीबीसी, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, द गार्डियन और फाइनेंशियल टाइम्स जैसे समाचार-पत्रों का भी यही रवैया दिखा। इन सब ने बढ़ा-चढ़ा कर रिपार्टिंग की। इसलिए लोग इनकी लानत-मलानत भी कर रहे हैं। वहीं, एक अन्य अमेरिकी समाचार-पत्र ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने भारत की कार्रवाई को “शक्ति का नपा-तुला प्रदर्शन” बताया। अन्य समाचार-पत्रों ने भी भारतीय अधिकारियों के बयानों और सत्यापित खुफिया जानकारी पर आधारित रिपोर्ट प्रकाशित की। इन समाचार-पत्रों ने सनसनीखेज रिपोर्टिंग से बचते हुए पाकिस्तान के दुष्प्रचार अभियान और ऑपरेशन पर स्पष्ट रिपोर्ट प्रकाशित कीं, जिनमें यह बताया गया कि हमले में केवल आतंकी मारे गए, आम नागरिकों और संपत्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं इस सच को उजागर करती हैं कि संघर्ष के समय मीडिया का एक वर्ग युद्ध के मैदान में बदल जाता है, जहां नैरेटिव मिसाइलों जितनी घातक हो सकते हैं। आईएसपीआर इसका पूरा लाभ उठाता है। यह पाकिस्तानी हथकंडा है, जिसे वह दशकों से आजमाता आ रहा है। हालांकि सूचना युद्ध में यह सामान्य बात है, लेकिन बीबीसी, द न्यूयॉर्क टाइम्स, टीआरटी, ग्लोबल टाइम्स और द हिन्दू जैसे वैश्विक और घरेलू मीडिया संस्थानों का रवैया किसी साठगांठ और पत्रकारिता की कमजोरियों को दर्शाता है तथा पाठकों के भरोसे को भी तोड़ता है।

वास्तविक रिपोर्टिंग लोकतांत्रिक संवाद को मजबूत करती है और सत्ता को जवाबदेह बनाती है। मीडिया चैनलों व संस्थानों को गति से अधिक सत्यापन को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसे दौर में, जब सोशल मीडिया सूचना को बिजली की गति से फैलाता है, पत्रकारों पर सच्चाई के रखवालों के रूप में काम करने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। समाचार जल्दी परोसने का दबाव तथा वास्तविक समय में दावों के सत्यापन की जटिलता प्रतिष्ठित पत्रिकाओं को भी भटका सकती है। मीडिया को आत्मचिंतन की आवश्यकता है। उसकी साख पहले से ही दांव पर है, ऊपर से घटती विश्वसनीयता उसके लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

अब साइबर हमले करेगा पाकिस्तान

पाकिस्तान भारत पर बड़ा साइबर हमला कर सकता है। केंद्र सरकार की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम सभी संवेदनशील वेबसाइटों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपनी साइबर सुरक्षा मजबूत करने की सलाह दी है। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान ‘डांस ऑफ द हिलेरी’ नामक खतरनाक वायरस को सोशल मीडिया पर फैला रहा है। यह फोन या कंप्यूटर को नुकसान पहुंचा सकता है। पाकिस्तान के 40 से अधिक हैकर सेना और बैंकों सहित सरकारी वेबसाइटों पर हमले की ताक में हैं। इसलिए अनजान लिंक पर क्लिक न करें। संदिग्ध ईमेल या मैसेज से सावधान रहें। मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें। बैंक की जानकारी, पासवर्ड या आधार नंबर जैसी व्यक्तिगत जानकारी किसी से भी साझा न करें। भ्रमित करने वाली फर्जी खबरों से सावधान रहें और विश्वसनीय स्रोतों या पीआईबी जैसी सरकारी वेबसाइट पर ही विश्वास करें। यदि कुछ भी संदिग्ध दिखे तो इसकी रिपोर्ट cybercrime.gov.in पर करें।

पाकिस्तानी कंटेंट पर पूर्ण प्रतिबंध

भारत सरकार ने सभी ओटीटी और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स से पाकिस्तान से जुड़े कंटेंट तत्काल हटाने के निर्देश दिए हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए गत 8 मई को आईटी एक्ट-2021 के तहत यह कार्रवाई की है। पाकिस्तानी मूल के पॉडकास्ट, ऑडियो शो, जो भारतीय प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध हैं, उन्हें भी हटाया जाएगा। इससे पहले 27 अप्रैल को सरकार ने 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगाया था। इन पर भारत, भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ भड़काऊ, सांप्रदायिक और भ्रामक खबरें परोसी जाती थीं।

सिंदूर से ‘लाल’ हुईं नारीवादी महिलाए

पहलगाम में आतंकवादियों ने महिलाओं के सामने ही उनके पतियों को मारा। यानी उनकी मांग से सिंदूर को पोंछ दिया। यही कारण है कि उन आतंकवादियों के खात्मे के लिए की गई कार्रवाई को ‘ ऑपरेशन सिंदूर’ नाम दिया गया, लेकिन कुछ कथित नारीवादी महिलाओं को यह नाम पसंद नहीं आया

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