जब भारत की बेटियों के सुहाग से उनकी धार्मिक पहचान पूछी जाए, तब प्रश्न नहीं, उत्तर दिया जाता है। और उस उत्तर का नाम है ऑपरेशन सिंदूर।

6-7 मई, 2025 की आधी रात भारत ने आतंकवाद के गढ़ पाकिस्तान में सटीक, संयमित और नैतिक प्रतिशोध का परिचय दिया। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल एक सैन्य अभियान नहीं था, यह भारत की चेतना, उसके राष्ट्रभाव और उसकी सभ्यता पर आघात का वैचारिक उत्तर था। पहलगाम में 22 अप्रैल को धर्म पूछ-पूछ कर मार दिए गए हिंदू यात्रियों की चिताओं से उठता धुंआ आकाश में मिलने से पहले जिहादी आतंकवाद को राख करने का संकल्प लिख रहा था।
जो लोग भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र की बजाय राजनीतिक दलों के खांचे में बंटा देखने के आदी हैं, उनके लिए यह आंखें खोलने वाला क्षण है। भारत का यह राष्ट्रभाव केवल सीमाओं की सुरक्षा तक सीमित नहीं। यह मां की वंदना, स्त्रीत्व के गौरव और सभ्यता की अस्मिता की रक्षा का भाव है।
जब आतंकियों ने बहनों से धर्म पूछकर उनका सिंदूर मिटाया, तब यह केवल दुखद घटना भर नहीं थी, यह हमारी संस्कृति, हमारी सहिष्णुता और हमारी सामूहिक चेतना पर दुस्साहसी आघात था। भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से इसी दुस्साहस को दहलाने वाला संदेश दिया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ केवल भौगोलिक लक्ष्य नहीं था, केवल खाकी तक सिमटी सैन्य कार्रवाई नहीं थी। यह भारत के सम्मान को सर्वोपरि रखने वाली वैचारिक स्पष्टता थी।
विचार स्पष्ट थे और लक्ष्य निश्चित
पाकिस्तान अधिक्रांत पीओजेके में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी शिविर, पाकिस्तानी पंजाब के आतंकी प्रशिक्षण केंद्र, मस्जिदों और मदरसों की आड़ में चल रही जिहादी प्रयोगशालाएं-इन सभी को भारत ने चिह्नित कर, सटीकता से ध्वस्त किया। यह एक संदेश था कि भारत अब केवल ‘सहिष्णु पीड़ित’ नहीं, सजग उत्तरदाता है।
भारत ने विगत दशकों में संयम और संवाद की नीति अपनाई। किंतु 2016 में ‘उरी सर्जिकल स्ट्राइक’ और 2019 में बालाकोट ‘एयर स्ट्राइक’ के बाद यह स्पष्ट हो गया कि भारत ने संयम को कमजोरी मानने वाले को सुधारने का तरीका निकाल लिया है। 2025 में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ संयम से शक्ति का अगला सोपान है।
भारत ने पहली बार आतंक के अड्डों को इस स्तर पर निशाना बनाया। पाकिस्तानी मीडिया ने इसे ‘मजहब पर हमला’ बताने की कोशिश की, किंतु मुद्दा लौटकर उन्हीं पर गिरा-‘यदि आतंक का कोई मजहब नहीं होता, तो फिर उनके ठिकानों की मजहबी पहचान क्यों?’
आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अपेक्षाएं जताते बयान हों या ‘जिनेवा कन्वेंशन’ के विभिन्न बिंदु, भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में सभी का अनुपालन किया।
क्षमता का कोई दुरुपयोग नहीं, सभी निशाने-पूर्व प्रमाणित आतंकी शिविरों पर। यह मानवाधिकारों का संतुलन रखते हुए आतंकवाद के विरुद्ध दृढ़ता से आगे बढ़ने की वह बात है, जो भारत का नैतिक आधिपत्य बनाए रखती है। भारत के हमलों की सटीकता के संदर्भ में पूर्व की विभिन्न मीडिया रिपोर्ट और रॉ की खुफिया सूचना ‘लक्ष्यों के आतंकी चरित्र’ की पुष्टि करती हैं। यह सिद्ध करता है कि भारत ने ‘न्यायोचित शक्ति’ का प्रयोग किया।
यह भी उल्लेखनीय है कि ऑपरेशन के पश्चात् पाकिस्तान ने न केवल अपने एयरस्पेस को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित किया, बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को मोड़ दिया। आतंरिक स्तर पर सोशल मीडिया ब्लैकआउट जैसी घटनाओं और आतंकी ठिकानों की अज्ञात गंतव्य पर तैनाती से यह स्पष्ट होता है कि वह भीतर से घबराया हुआ है। यह संकेत है कि आतंक के सहारे टिका राष्ट्र अब अपने ही ‘नेटवर्क’ से डर रहा है।
आज भारत केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, सभ्यता और मानवता का रक्षक दिख रहा है। वैश्विक विमर्श की दृष्टि से यह सभ्यता बनाम बर्बरता का संघर्ष है। एक ओर पाकिस्तान है-ओसामा बिन लादेन को पनाह देने वाला, एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में वर्षों तक का दागी, हिंदू, सिख, ईसाई, शिया, अहमदी-सभी की आस्था और पहचान लील जाने वाला। एक ऐसा कबीलाई हुजूम जहां बाल-विवाह, भीड़ द्वारा हत्या और स्त्रियों के अधिकारों को रौंदना सामान्य ही नहीं, बल्कि सही समझा जाता है। दूसरी ओर भारत है-20 करोड़ मुसलमानों के साथ लोकतांत्रिक सह-अस्तित्व के पथ पर बढ़ता। मज़हब नहीं, आतंक की पहचान के आधार पर कार्रवाई करता। अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी जेनेवा कन्वेंशन और मानवाधिकारों को दृष्टिगत रखता। एक और कोविड जैसी वैश्विक आपदा के दौरान विश्व के सैकड़ों देशों के लिए वैक्सीन के रूप में जीवन की सौगात देता भारत है, दूसरी ओर पूरे विश्व में जिहादी उपद्रव के लिए आतंकियों को प्रशिक्षण के बाद निर्यात करने का कारखाना-पाकिस्तान।
विश्व अब तय कर सकता है-‘यह संघर्ष भारत बनाम पाकिस्तान नहीं, यह संघर्ष सभ्यता बनाम बर्बरता है।’
भारत ने दशकों तक तटस्थता और नैतिक अपीलों की राजनीति की। लेकिन अब स्पष्ट है कि बातचीत से नहीं, नीति और साहस से भारत के हित सर्वोपरि रखते हुए उत्तर दिया जाएगा। भारत केवल अपनी रक्षा नहीं कर रहा, वह वैश्विक सभ्यता की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है।
यह केवल ऑपरेशन नहीं, वैचारिक नीति है। भारत को अब सभ्यतागत आक्रमण झेलते या इस खतरे की गंभीरता को समझने वाले संवेदनशील देशों को साथ लेते हुए “Anti-Terror Civilisational Coalition” की दिशा में बढ़ना चाहिए, यानी सभ्यताओं की रक्षा हेतु वैश्विक गठबंधन।
इस अभियान के पश्चात् भारत और विश्व के कई भागों में बसे प्रवासी भारतीयों तथा युवाओं द्वारा सोशल मीडिया, रैलियों और वक्तव्यों के माध्यम से जो एकजुट समर्थन दिखाया गया, वह यह सिद्ध करता है कि यह केवल राज्य की सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि एक जनचेतना थी-एक व्यापक वैश्विक भारतीय भाव।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब बदल चुका है। यह देश अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपने हर नागरिक की अस्मिता की रक्षा करेगा। यह अब केवल लड़ाई नहीं लड़ेगा, रणनीतिक विचार की संकीर्ण व्याख्याओं को भी पुन: परिभाषित करेगा। भारत सिर्फ़ भूगोल नहीं है, यह कोई राजनीतिक इकाई भर नहीं है, यह एक जाग्रत राष्ट्र है। जब प्रश्न सिंदूर का हो, तब उत्तर वज्र होता है!
… और भारत काजब प्रश्न सिंदूर का हो, तब उत्तर वज्र होता है
X@hiteshshankar
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