भारत की वायु रक्षा प्रणाली (एयर डिफेंस सिस्टम) आज एक ऐसी शक्ति बन चुकी है, जो न केवल देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा कर रही है बल्कि पाकिस्तान को ऐसा मुंहतोड़ जवाब दे रही है, जो उसके लिए भय का बड़ा कारण बन गई है। पाकिस्तान की ओर से जब 8 मई की रात मिसाइल और ड्रोन हमलों की श्रृंखला शुरू हुई, तब भारत के एयर डिफेंस सिस्टम ने जिस कुशलता और सटीकता से इन खतरों को नाकाम किया, उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि तकनीक और सामरिक तैयारी के मामले में भारत किसी भी चुनौती से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम है। पाकिस्तान की ओर से दागे गए कई ड्रोन और मिसाइल जब भारतीय सीमाओं की ओर बढ़े, तब देश की वायु रक्षा प्रणाली ने बिना कोई देरी किए सभी को हवा में ही ढ़ेर कर दिया। यह केवल एक तकनीकी सफलता ही नहीं है बल्कि यह भारत की रणनीतिक सजगता, तैयारी और शक्ति का जीता-जागता प्रमाण भी है।
हवाई रक्षा प्रणाली की अहमियत और भूमिका
वैश्विक मंचों पर आज जब एयर डिफेंस टैक्नोलॉजी की चर्चा होती है तो भारत का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। इसका कारण है हमारी रक्षा प्रणाली का बहुस्तरीय और बहुआयामी स्वरूप, जिसमें पारंपरिक और आधुनिक दोनों तकनीकों का समावेश है। भारत की वायु रक्षा प्रणाली रडार नेटवर्क, सैटेलाइट निगरानी, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, इंटरसेप्टर विमानों और इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर जैसे अनेक घटकों से मिलकर बनी है, जिसका उद्देश्य न केवल दुश्मन के हमलों को निष्क्रिय करना है बल्कि पहले से संभावित खतरों का पूर्वानुमान लगाकर उनका समय रहते समाधान करना भी है। वायु रक्षा प्रणाली का सबसे पहला कार्य खतरे की पहचान करना होता है। यह एक अत्यंत संवेदनशील और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें रडार और सैटेलाइट सिस्टम दुश्मन की गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए रखते हैं। जैसे ही कोई मिसाइल या ड्रोन भारत की ओर बढ़ता है, सिस्टम तुरंत उसकी गति, दिशा, ऊंचाई और प्रकार को ट्रैक कर लेता है। उसके बाद अगले चरण की प्रक्रिया को सक्रिय किया जाता है यानी उस खतरे पर नजर बनाए रखना और उसका सटीक डेटा एकत्रित करना। यह डेटा तुरंत कमांड और कंट्रोल सेंटर तक पहुंचता है, जहां से निर्णय लिया जाता है कि इस खतरे से निपटने के लिए कौनसी हथियार प्रणाली इस्तेमाल की जाएगी। यदि खतरा बहुत तेज गति वाला हो और उच्च ऊंचाई से आ रहा हो तो इंटरसेप्टर मिसाइलें तैनात की जाती हैं।
एस-400 से क्यूआरएसएएम तक बहुस्तरीय सुरक्षा का विस्तार
भारत के पास उच्च ऊंचाई और लंबी दूरी पर दुश्मन को मारने के लिए रूस निर्मित एस-400 जैसी शक्तिशाली प्रणालियां हैं, जो 400 किलोमीटर की दूरी तक किसी भी हवाई खतरे को नष्ट कर सकती हैं।एस-400 ट्रायम्फ रक्षा प्रणाली 400 किमी तक की दूरी तक हवाई खतरों को नष्ट कर सकती है। यह प्रणाली 360-डिग्री कवरेज प्रदान करती है और एक साथ कई लक्ष्यों को ट्रैक एवं नष्ट करने में सक्षम है। हाल की घटनाओं में जब पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन और क्रूज मिसाइलों को भारत की सीमा में दाखिल कराने की कोशिश हुई, तब एस-400 सिस्टम ने उन्हें सीमा में घुसने से पहले ही नष्ट कर दिया। इसका श्रेय उसकी उन्नत रडार प्रणाली, मल्टी टारगेट ट्रैकिंग और सटीक इंटरसेप्शन क्षमता को जाता है। मध्यम दूरी की रक्षा के लिए ‘आकाश’ मिसाइल प्रणाली भारत की स्वदेशी ताकत है, जो 30 से 50 किलोमीटर की दूरी तक के हवाई लक्ष्यों को सटीकता से मार सकती है। यह प्रणाली भारतीय वायुसेना और थलसेना दोनों में उपयोग की जाती है। मध्यम दूरी के लिए आकाश के अलावा स्पाइडर और बराक जैसी मिसाइलें भी तैनात हैं। इजराइल से प्राप्त स्पाइडर प्रणाली 15 किमी तक की दूरी पर हवाई लक्ष्यों को भेद सकती है। यह प्रणाली त्वरित प्रतिक्रिया देने में सक्षम है और भारतीय वायुसेना एवं थलसेना में तैनात है। बराक-8 भारत और इजराइल द्वारा संयुक्त रूप से विकसित रक्षा प्रणाली है, जो 70-80 किमी की दूरी तक के लक्ष्यों को भेद सकती है। यह प्रणाली भारतीय वायुसेना, थलसेना, और नौसेना में तैनात है। इसके अलावा, नजदीकी हमलों या कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन के लिए मैनपोर्टेबल सिस्टम्स यानी मैनपैड्स और त्वरित प्रतिक्रिया युक्त आर्टिलरी गन सिस्टम मौजूद हैं, जो छोटे लक्ष्यों को भी चूकने नहीं देते। मैन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम 6 किमी तक की दूरी पर उड़ने वाले लक्ष्यों को नष्ट करने में सक्षम है। यह प्रणाली विशेष रूप से कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों और हेलीकॉप्टरों के खिलाफ प्रभावी है। नजदीकी खतरे के लिए क्यूआरएसएएम और वीएलएसआरएसएएम जैसी तेज प्रतिक्रिया प्रणाली भी मौजूद हैं।
रडार, उपग्रह और निगरानी प्रणाली की भूमिका
भारत की वायु रक्षा प्रणाली में केवल मिसाइल ही नहीं, रडार आधारित दृष्टि प्रणाली, ऑप्टिकल ट्रैकिंग, इलैक्ट्रॉनिक जैमिंग और लेजर आधारित डिटेक्शन तकनीकें भी शामिल हैं। आधुनिक युद्ध में केवल हमला करना ही काफी नहीं होता बल्कि दुश्मन की संचार प्रणाली को बाधित करना भी आवश्यक हो गया है। इसके लिए भारत ने आधुनिक इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम को अपनाया है, जो दुश्मन के ड्रोन या मिसाइल के कम्युनिकेशन सिस्टम को निष्क्रिय कर सकते हैं, जिससे वे दिशा भ्रम में पड़कर लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं। हाल ही में पाकिस्तान ने एक साथ कई ड्रोन भेजे थे लेकिन भारत की ईडब्ल्यू (इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर) प्रणाली ने उनमें से कई को लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही बेअसर कर दिया। एक और महत्वपूर्ण पहलू है इंटरसेप्टर फाइटर जेट्स की भूमिका। जब भी कोई अनियमित गतिविधि रडार पर नजर आती है और खतरे का स्रोत विमान होता है तो भारतीय वायुसेना के राफेल, मिग-29, सुखोई-30एमकेआई जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान अलर्ट हो जाते हैं और हवा में ही उस खतरे को समाप्त कर देते हैं।
मिसाइल प्रणालियों की तैनाती का समन्वित नेटवर्क
वर्तमान में भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का जो माहौल बना है, उसमें वायु रक्षा प्रणाली की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। पाकिस्तान द्वारा बार-बार ड्रोन और मिसाइल भेजे जाने से यह स्पष्ट है कि वह एक सशस्त्र संघर्ष की ओर बढ़ना चाहता है लेकिन भारत की दृढ़ और आधुनिक वायु सुरक्षा प्रणाली ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वह किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। भारत ने केवल बचाव तक ही सीमित नहीं रहकर एक सक्रिय रक्षा नीति को अपनाया है, जिसका सीधा सा अर्थ है कि भारत न केवल आने वाले खतरे को निष्क्रिय करता है बल्कि भविष्य में ऐसे हमलों की संभावना को समाप्त करने के भी उपाय करता है। भारत की वायु रक्षा प्रणालियां ‘एयर डिफेंस ग्राउंड एनवायरनमेंट सिस्टम’ और ‘बेस एयर डिफेंस जोन’ के माध्यम से एकीकृत हैं। ये नेटवर्क व्यापक रडार कवरेज प्रदान करते हैं और मिसाइल प्रणालियों की तैनाती का समन्वय करते हैं, जिससे महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों और क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
वायु रक्षा प्रणाली की बहुस्तरीय संरचना
भारत की वायु रक्षा प्रणाली बहुस्तरीय संरचना है, जो विभिन्न प्रकार के हवाई खतरों जैसे कि ड्रोन, मिसाइल और लड़ाकू विमानों से देश की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। इस प्रणाली में विभिन्न रेंज की मिसाइलें और रडार तकनीकें सम्मिलित हैं, जो मिलकर एक सशक्त रक्षा कवच का निर्माण करती हैं। भारत द्वारा डीआरडीओ द्वारा विकसित की जा रही हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइलों की भी योजना है, जो आने वाले वर्षों में भारतीय रक्षा कवच को और मजबूत बना देंगी। इस पूरी प्रणाली की सबसे बड़ी ताकत है इसकी ‘सी3’ (कमांड, कंट्रोल और कम्युनिकेशन) संरचना, जो विभिन्न घटकों को एक साथ समन्वित रूप से संचालित करती है। जब दुश्मन की गतिविधि को एक रडार डिटेक्ट करता है तो वह जानकारी तुरंत पूरे नेटवर्क में साझा की जाती है, जिससे सभी संबंधित इकाईयां अलर्ट हो जाती हैं और आवश्यक कार्रवाई के लिए तैयार रहती हैं। इस व्यवस्था में देरी की कोई गुंजाइश नहीं होती क्योंकि कई बार मिसाइलें कुछ ही मिनटों में लक्ष्य तक पहुंच जाती हैं। ऐसे में यह सी3 संरचना भारत की वायु रक्षा प्रणाली को अत्यंत प्रतिक्रियाशील और प्रभावशाली बनाती है।
आत्मनिर्भर भारत का रक्षा रोडमैप
भारत एक ओर जहां अपनी सुरक्षा को पुख्ता कर रहा है, वहीं मित्र देशों के साथ तकनीकी सहयोग भी कर रहा है। इजराइल, रूस, अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों के साथ भारत ने उन्नत रक्षा उपकरणों के अधिग्रहण और साझा तकनीक विकास पर बल दिया है। इजराइल के साथ संयुक्त रूप से विकसित ‘बराक-8’ मिसाइल प्रणाली भारत की नौसेना और वायुसेना दोनों के लिए रक्षा कवच बन गई है। वहीं रूस से प्राप्त एस-400 प्रणाली ने देश की सामरिक शक्ति को नई ऊंचाई दी है। यही नहीं, भारत अब स्वदेशी तकनीक पर भी भरपूर ध्यान दे रहा है। डीआरडीओ ने जो एलआरएसएएम, एमआरएसएएम और एक्सआरएसएएम जैसी मिसाइलें विकसित की हैं, वे आने वाले वर्षों में भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना देंगी। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत वायु रक्षा के क्षेत्र में भी स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। आने वाले वर्षों में भारत की योजना है कि वह अपने रडार, मिसाइल और वायु रक्षा प्लेटफॉर्म्स का निर्माण स्वयं करे, जिससे न केवल आयात पर निर्भरता कम होगी बल्कि देश की तकनीकी क्षमता भी बढ़ेगी।
तकनीकी, कूटनीति और सामरिक शक्ति का अद्वितीय संगम
यदि हम वर्तमान भारत-पाक संघर्ष की पृष्ठभूमि में देखें तो भारत की वायु रक्षा प्रणाली इस संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभा रही है। पाकिस्तान द्वारा हर दिन ड्रोन, मिसाइल व रॉकेट हमले करना एक ओर जहां उसकी हताशा को दर्शा रहा है, वहीं भारत द्वारा उन्हें हवा में ही खत्म करना हमारी शक्ति और सतर्कता का प्रतीक है। भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह केवल कूटनीतिक स्तर पर ही नहीं, तकनीकी और सामरिक स्तर पर भी पूरी तरह सक्षम है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जिस प्रकार भारत की वायु रक्षा प्रणाली ने दुश्मन के मंसूबों को ध्वस्त किया है, वह आने वाले समय में दक्षिण एशिया की सामरिक राजनीति को नया मोड़ दे सकती है। भारत की यह तकनीकी श्रेष्ठता अब केवल रक्षा तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक मनोवैज्ञानिक युद्ध में भी विजय का कारण बन रही है। दुश्मन अब जानता है कि भारत के ऊपर एक अदृश्य लेकिन अपराजेय कवच तैनात है, जिसे भेदना लगभग असंभव है। इस सशक्त और संगठित वायु रक्षा प्रणाली के कारण भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं देता बल्कि संभावित खतरे की पूर्व सूचना पर ही कार्यवाही कर उसे मिटा देता है। भारतीय वायु रक्षा प्रणाली तकनीकी दृष्टिकोण से तो श्रेष्ठ है लेकिन इसका संचालन करने वाले सैनिकों का कौशल, तत्परता और निष्ठा ही इसकी असली शक्ति है।
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