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‘ऑपरेशन सिंदूर’ : सेना का गर्वीला अभियान, लेकिन फेमिनिस्टों को सिंदूर नाम से परेशानी, कर रहीं ‘विलाप’

ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर भारत में जहां वीरांगनाएं गौरवान्वित हैं, वहीं कुछ फेमिनिस्ट वर्ग ने इसे पितृसत्ता से जोड़कर आलोचना शुरू कर दी है। जानिए क्यों सिंदूर बना बहस का विषय..?

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सोनाली मिश्रा

7 मई की सुबह जब लोग सोकर उठे तो उनका स्वागत एक ऐसे संदेश ने किया जिसकी वह लगभग दस दिनों से प्रतीक्षा कर रहे थे। यह संदेश उन महिलाओं के प्रति न्याय को लेकर था, जिनकी मांग का सिंदूर आतंकवादियों ने पोंछ दिया था। जिन महिलाओं की मांग का सिंदूर आतंकवादियों ने नाम और धर्म पूछकर मिटा दिया था, उनका प्रतिशोध लेने के लिए ही इस अभियान का नाम ऑपरेशन सिंदूर रखा गया होगा।

वैसे तो सिंदूर का भारत की संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। आदि शक्ति से लेकर माता सीता तक सिंदूर की शक्ति का प्रदर्शन सभी ने किया है। सिंदूर मात्र धार्मिक प्रतीक ही नहीं है, अपितु यह हिन्दू पहचान का प्रतीक है। यह भी गौरतलब है कि कश्मीर में जब आतंक अपने चरम पर था, उस समय हिन्दू महिलाओं के माथे से बिंदी हटवा दी जाती थी। अभी भी पहलगाम में हुए आतंकी हमले में एक पीडिता ने कहा था कि कैसे उनसे कहा गया कि वह बिंदी हटा दें और सिंदूर मिटा दें, तो बच सकती हैं। जो आतंकी ताकते हैं वे हर हाल में सिंदूर मिटाना चाहती हैं, फिर उसका माध्यम कोई भी हो।

पुरुषों को मारना अर्थात सिंदूर मिटाना, अर्थात एक पूरी पीढ़ी समाप्त कर देना। सिंदूर का महत्व उन महिलाओं से पूछना चाहिए, जिनकी मांग का सिंदूर असमय मिट जाता है और वह भी आतंकियों द्वारा। नवरात्रि में माँ के साथ भी सिंदूर खेला होता है और विघ्नहर्ता गणेश जी को लाल सिंदूर चढ़ाया जाता है। हनुमान जी तो पूरे ही सिंदूर में रंगे हुए हैं। तो सिंदूर के हिन्दू धर्म या कहें भारतीय संस्कृति में एकाधिक पहलू हैं। इसलिए इस अभियान का नाम ऑपरेशन सिंदूर रखने से, भारत का लोक गौरवान्वित हुआ। उसके कलेजे को ठंडक पहुंची।

मगर फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें इस नाम से समस्या है। उन्हें इस नाम से क्यों समस्या है, वह समझना कठिन नहीं है। दरअसल एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसके लिए भारत के लोक का सिंदूर तो शोषण का प्रतीक है, परंतु उसके लिए हिजाब और नकाब और बुर्का आदि औरतों की आजादी के प्रतीक हैं। यह ऐसा वर्ग है, जिसे भारत की हिन्दू पहचान से घृणा है और सिंदूर, बिंदी लगाने वाली महिलाएं उसके लिए सबसे पिछड़ी महिलाएं हैं। यह वह वर्ग है, जिसका एकमात्र उद्देश्य हिंदुओं की महिलाओं को सिंदूर और बिंदी आदि के विषय में भड़काना ही होता है।

जैसे ही ऑपरेशन सिंदूर की तस्वीरें और वीडियोज़ वायरल होने लगे, यह लाबी सक्रिय हो उठी। इसका बीड़ा उठाया सबसे पहले द हिन्दू ग्रुप की पत्रिका फ्रंटलाइन की संपादक वैष्णा रॉय ने। उन्होनें एक्स पर एक पोस्ट लिखा और उसके तुरंत बाद अपना प्रोफ़ाइल प्रोटेक्टेड कर दिया। मगर तब तक स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया पर छा  चुके थे। इन्होनें लिखा “सैद्धांतिक रूप से मैं ऑपरेशन सिंदूर के लेबल का विरोध करती हूँ। यह पितृसत्ता, महिलाओं की मल्कियत, “इज्जत” के नाम पर कत्ल, पवित्रता, विवाह संस्थान को पवित्र बताने और ऐसे ही और हिन्दुत्व अब्सेशन को बताता है।

इसे लेकर लोगों ने इसका विरोध भी किया। एक यूजर ने लिखा कि सिंदूर शक्ति का प्रतीक है। सिंदूर स्त्री शक्ति का प्रतीक है।

यह याद रखना चाहिए कि यह वही वैष्णा रॉय है, जिनके लिए हिजाब को प्रतिबंधित करना एक समस्या थी।

मगर ऐसा नहीं है कि केवल वैष्णा रॉय को इस शब्द पर आपत्ति है। कई कथित रचनाकार भी ऑपरेशन सिंदूर के नाम के विरोध में उतर आई हैं। उनका कहना है कि सिंदूर तो महिलाओं के शोषण का प्रतीक है, यह महिलाओं को याद दिलाता है कि वे किसी की नौकर हैं, और बंधी हुई हैं। इसलिए सिंदूर नाम नहीं रखना चाहिए था।

भारत की फेमिनिस्ट जहाँ इस सिंदूर नाम से परेशान हैं तो वहीं पाकिस्तान की कई मुस्लिम महिलाएं भी सिंदूर को लेकर बिफर रही हैं। जोहा नामक एक यूजर ने लिखा कि ऑपरेशन सिंदूर बहुत ही बेचैन करने वाला और भयानक है, यदि आप इसके प्रभाव के बारे में एक क्षण को रुककर ठहर कर सोचते हैं। हिन्दुत्व विचारधारा खुद को इस उप महाद्वीप की मालिक मानने का दावा करती है और वह इसके प्रति बहुत जुनूनी है और यह नाम कोई इत्तेफाक नहीं है। यह महिलाविरोधी भी है।

ऐसी ही एक पाकिस्तानी कामन्टैटर सबहत ज़ाकरिया ने लिखा “धार्मिक कारक से परे यह बेवकूफी वाला नाम क्यों? मतलब सिंदूर क्यों? सहदाई किस की हो रही है? तिलक की फिर भी कोई सेंस थी!”

भारत से लेकर पाकिस्तानी फेमिनिस्ट अचानक से ही सिंदूर शब्द के विरोध में आ गई हैं। भारत की ही एक महिला ने एक्स पर पोस्ट लिखा कि जाहिर है कि यह सिंदूर है, जाहिर है कि यह भारत माता है, जिसकी रक्षा पुरुषों को दूसरे पुरुषों से करनी है, जब तक कि असली में लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को युद्ध से बचाने की बात न आ जाए।

हेमंत सोरेन की पार्टी की सांसद को भी परेशानी

हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा की सांसद महुआ माजी को भी सिंदूर नाम से परेशानी हुई। उन्होंने कहा कि यह नाम उन महिलाओं के लिए चुना गया, जिनकी पतियों की हत्या कर दी गई। कुछ और भी नाम हो सकता था। जब तीनों सेनाओं को खुली छूट दी गई थी। कि वह वे अपने टार्गेट और समय को खुद चुनें तो ऐसे में प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर नाम रखा। इसलिए इसमें कुछ राजनीति शामिल है।

 

ऑपरेशन सिंदूर की पूरी जानकारी महिला सैन्य अधिकारियों ने दी

जहां एक ओर ये फेमिनिस्ट महिलाएं ऑपरेशन सिंदूर के नाम को लेकर रो रही थीं तो वहीं दूसरी ओर ऑपरेशन सिंदूर के विषय में पूरी जानकारी कर्नल सोफिया कुरैशी एवं विंग कमांडर व्योमिका सिंह दे रही थीं। भारत सरकार ने आज बताया है कि सिंदूर का महत्व क्या है और ऑपरेशन सिंदूर को जिस प्रकार कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया, उससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि भारत की भूमि की महिलाएं सिंदूर के महत्व को जानती हैं, और समझती हैं। यही स्त्री शक्ति है, जिसका परिचय आज भारत ने सम्पूर्ण विश्व को दिया है।

 

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