आपरेशन सिंदूर की मार सहने से ठीक पहले तक जिन्ना के देश की सेना बलूचिस्तान में बलूच विद्रोहियों से पिट रही थी। कई जवान मारे जा चुके थे, सरकारी इमारतों को जलाया जा रहा था। सेना बलूचों के आगे नाकारा साबित हो चुकी है, इसलिए इस्लामाबाद की सत्ता ने बलूचों को कुछ शांत करने की गरज से 150 कार्यकर्ताओं को हिरासत से रिहा कर दिया है। लेकिन बलूच यकजहती समिति की प्रमुख महरंग बलोच और उसके छह अन्य साथी कार्यकर्ताओं को अभी भी कैद ही रखा गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान सरकार के इस कदम से बलूच शांत होंगे? विशेषज्ञों के अनुसार, बलूचों में पाकिस्तान सरकार के विरुद्ध इतना आक्रोश है कि इन छिटपुट कामों से उसे संतोष होना मुश्किल है।
बलूच नेता और इस समय वहां की सबसे प्रमुख आंदोलनकारी महरंग बलोच एक लंबे समय से बलूचिस्तान में अगवा किए गए लोगों के लिए न्याय की मांग कर रही हैं। महरंग क्वेटा जिला जेल में कैद है। उस पर आतंकवाद, हत्या, हत्या के प्रयास, हिंसा भड़काने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पुलिस का कहना है कि महरंग और उनके साथियों ने क्वेटा के सिविल अस्पताल के शवगृह से शव जबरन ले जाने, पुलिस पर गोलीबारी करने और देश-विरोधी नारे लगाने जैसी हरकतें की हैं। लेकिन बलूच यकजहती समिति और महरंग बलोच के समर्थकों का दावा है कि यह सरकार की साजिश है, इसका मकसद बलूचों की आवाज को कुचलना है।
पाकिस्तान की सरकार ने जिन 150 बलूच कार्यकर्ताओं को हिरासत से रिहा करके अपने को उजला दिखाने की कोशिश की है उसे लेकर बलूचिस्तान में उसके लिए कोई बड़ी हमदर्दी नहीं दिख रही है। बलूच समुदाय को शांत करने की जहां तक बात है तो सरकार को उन पर किए अत्याचारों को सिरे से बंद करना होगा। इस मांग को लेकर बलूचिस्तान में लगातार विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं, अनेक शहरों में इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं। बलूच प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार बलूचों के अधिकारों का हनन कर रही है और पुलिस जब जिसे चाहे पकड़ कर ले जा रही है।
हालांकि महरंग बलोच की गिरफ्तारी और 150 बलूच कार्यकर्ताओं को रिहा करने को लेकर अनेक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जताई है। कई संगठनों ने पाकिस्तान सरकार से महरंग बलोच और अन्य बलूच कार्यकर्ताओं की हिरासत को खत्म करके उन्हें भी रिहा करने की मांग की है। फिलहाल बलूचिस्तान में स्थिति तनावपूर्ण ही बनी हुई है।
यह पूरा मामला बलूचिस्तान में मानवाधिकारों को सम्मान करने और राजनीतिक स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पाकिस्तान सरकार इस मुद्दे को कैसे संभालती है। लेकिन अभी तो लगता है, कुछ दिन वह आपरेशन सिंदूर के सदमे से ही नहीं उबर पाएगी।
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