चंदन की मां पारुल दास (65) अपने बेटे और पति हरगोविंद दास की हत्या के बाद बेसुध हैं। पत्नी पिंकी के आंखों से आंसू झरते रहते हैं। रो-रोकर गला बैठ चुका है। डबडबाई आंखों और भरे गले से एक ही बात बोलती हैं कि हिन्दू थे, इसलिए मार डाला। अब हमारे परिवार का क्या होगा? पाञ्चजन्य के विशेष संवाददाता अश्वनी मिश्र ने चंदन की मां पारुल दास और पत्नी पिंकी से विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के संपादित अंश–
जब कट्टरपंथियों ने आपके घर पर हमला करके आपके पति चंदन और ससुर गोविंद दास की निर्मम हत्या की तब आप कहां थीं?
हम सभी घर पर ही थे। लेकिन एकाएक मुसलमानों ने हमारे घर पर धावा बोल दिया। भीड़ में करीब 20 हजार से ज्यादा लोग थे जो टोपी लगाए थे और अल्लाह हू अकबर बोलते हुए आगे बढ़ रहे थे। मुंह पर कपड़ा बंधा हुआ था। हाथ में तलवार, लाठी, डंडे और धारदार हथियार के अलावा बम भी थे। वे सभी हिन्दुओं के घरों में लूटपाट करते हुए हम धमाके कर रहे थे। हमारे पड़ोस के लोगों ने पहले तो उनका सामना लिया लेकिन वे इतने ज्यादा थे कि हिन्दुओं को चुन-चुनकर मारने लगे। उन्होंने मेरे पति और ससुर को घर में घेर लिया। एक तरफ भीड़ ने घर में तोड़फोड़ और लूटपाट शुरू कर दी।
तो दूसरी तरफ कुछ लोग उन्हें बाहर घसीटते हुए ले गए। जहां उनके शरीर पर बहुत से लोगों ने धारदार हथियार से कई वार किए। वह तड़प रहे थे लेकिन निर्मम भीड़ उन्हें मार रही थी। उनके शरीर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं था, जो चाकू और तलवार से गोदा न गया हो। हाथ काट दिए, पैर काट दिए, शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं था, जहां घाव के निशान नहीं थे। पूरी सड़क खून से सन चुकी थी, लेकिन भीड़ को कोई दया नहीं आ रही थी। हम सब चीख पुकार कर रहे थे पर कुछ कर नहीं पा रहे थे। आखिरकार मुसलमानों ने मेरे पति और ससुर को मार डाला। मैंने और मेरे छोटे-छोटे बच्चों ने सब अपनी आंखों से देखा है।
राज्य सरकार और उनके अधिकारी बार-बार आपसे बातचीत कर रहे हैं। उनका कहना है कि हम लोग पैसा और अन्य संसाधन देकर परिवार की पीड़ा को कम करना चाहते हैं। क्या कहेंगी आप इस पर?
हमें उनके पैसे और घर की कोई जरूरत नहीं है। मैंने अधिकारियों को साफ कर दिया कि मुझे एक रुपया भी नहीं चाहिए। उलटे हम उन्हें अपना सब कुछ बेचकर 20-25 लाख रुपए दे देंगे। अगर उन्हें कुछ देना है तो सिर्फ न्याय दें कि टाका थिके आमार पति एवं बेटा घुरे आसबे…(पैसा लेने से मेरे पति और बेटा वापस आ जाएंगे क्या?)। ममता बनर्जी हमें खरीदना चाहती हैं पर हम एक रुपया भी नहीं लेंगे। हमें अगर कुछ देना है तो न्याय दें। हम खुद उन्हें दस लाख रुपए देने को तैयार हैं। बाड़ी चाई ना, टाका चाई ना, सुधू होत्ताकारीर देर फांसी चाई (हमें न घर चाहिए, न पैसा चाहिए। जिन दरिंदों ने दोनों लोगों को मारा है, उनकी फांसी चाहिए।) हमारी क्या गलती थी जो हमारे बेटे और पति मार डाला? सिर्फ इसलिए न कि हम हिन्दू हैं? क्यों ममता बनर्जी अभी तक यहां के हिन्दुओं की पीड़ा सुनने नहीं आईं? सैकड़ों घरों को लूट लिया गया, आग लगा दी गई, महिलाओं के साथ अत्याचार किया गया लेकिन ममता दीदी को कोई दर्द ही नहीं हो रहा। हम हिन्दू हैं, इसलिए हमारे साथ ऐसा बर्ताव हो रहा है।
अब जीवन कैसे चलेगा?
आगे कोई रास्ता नहीं दिख रहा। घर में कोई भी कमाने वाला नहीं बचा। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी पढ़ाई-लिखाई, घर का खाना, अब कैसे होगा? अब भगवान ही हमें बचाए। क्या हिंदू होना गुनाह है, इस देश में? क्या हिंदुओं को देश में डर के साए में जीना पड़ेगा? हमारी तो किसी के साथ कोई लड़ाई नहीं थी। हमने तो किसी का कुछ भी तो नहीं बिगाड़ा था। एक दिन में मेरे घर से दो अर्थियां उठीं। सब कुछ इन आंखों ने देखा है। खून खौल रहा है दरिंदों पर। कोई तो सुने हमारी। कोई तो सुने यहां के हिन्दुओं की।
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