खालिस्तानी तत्वों की एक प्रकार से पनाहगाह बना दिए गए कनाडा की जनता लगता है खालिस्तान की असलियत जान चुकी है। शायद यही वजह है कि उसने खालिस्तान को पोसने और भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देते आ रहे सिख नेता जगमीत सिंह को करारी चोट दी है। कनाडा चुनाव के ताजा रुझान बताते हैं कि जगमीत की पार्टी लगभग हार चुकी है और मार्क कार्नी की पार्टी जीत की ओर बढ़ रही है।
चुनाव के नतीजों में खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की पार्टी एनडीपी को 12 सीटें भी नहीं मिली हैं। अपनी पार्टी के अध्यक्ष जगमीत सिंह जनता का फैसला सिर माथे बैठाकर घोषणा कर चुके हैं कि देश के आम चुनाव में उनकी पार्टी के पास पर्याप्त समर्थन नहीं होने की वजह से और अपनी सीट तक न बचा पाने के कारण वे अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो को सत्ता चलाने में अपनी शर्तों पर सहयोग देने वाली खालिस्तान के पोषक जगमीत सिंह को लेकर जनता ने आम चुनाव के पहले से मन बना लिया था कि देश को गर्त में धकेल कर अपना एजेंडा चलाने वालों को जीतने नहीं देना है। जगमीत सिंह को शायद यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि उन्हें इतनी सीटें भी नहीं मिलेंगी कि अपनी पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा कायम रख पाएंगे। राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए उनकी पार्टी को 12 सीटें जीतनी थीं, लेकिन उन्हें उतना समर्थन भी नहीं मिला है। अब उनकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) राष्ट्रीय स्तर की पार्टी नहीं रहने वाली। जगमीत सिंह को उनकी सीट पर भी जीत नहीं मिल पाई है।

आम चुनावों के नतीजों की दिशा साफ होते ही खालिस्तानी तत्वों को पोसने वाले एनडीपी अध्यक्ष जगमीत सिंह यह कहने को मजबूर हो गए कि अब वे न पार्टी अध्यक्ष रहेंगे, न उनकी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी रहेगी। यह हाल किया है कनाडा की जनता ने उनका। जब वे त्रूदो के साथ सरकार का हिस्सा थे, तब उन्होंने खालिस्तानियों को खुली छूट दी हुई थी। वे तत्व वहां मनमानी करते थे और देश के कानून को ठेंगे पर रखते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री त्रूदो भी जगमीत के बहकावे और राजनीतिक दबाव में आकर हिन्दू विरोध को प्रश्रय देते थे और भारत विरोधी दुष्प्रचार को हवा देते थे। 2019 से ही जगमीत सिंह हाउस ऑफ कॉमन्स में सदस्य रहे थे। वे बर्नबी सेंट्रल सीट से जीत कर आते थे। लेकिन इन चुनावों में जनता ने उन्हें पहले से तीसरे स्थान पर ला पटका है।
विशेषज्ञों को आम चुनाव में स्पष्ट रूप से विजेता बन कर उभर रहे प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के ही आगे कुर्सी पर बैठने और लिबरल पार्टी की सरकार बनने का आभास हो रहा है। अभी तक के हिसाब से लिबरल पार्टी को इन चुनावों में पर्याप्त सीटें मिलने की उम्मीद है। इस बार कनाडा के आम चुनाव अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के बीच हुए हैं। टैरिफ की गाज गिरने की आशंका और त्रूदो की हेकड़ी के कारण अर्थव्यवस्था के डावांडोल होते जाने का खतरा भी था। ट्रंप तो कनाडा के अमेरिका में विलय तक का विचार सामने रख चुके थे। कार्नी ने भी चुनाव के नतीजों के बीच अपने वक्तव्य में अमेरिका की ओर संकेत करते हुए अपनी जनता को वहां से आ सकने वाले खतरे के प्रति आगाह किया है।
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