पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद हर प्रकार की प्रतिक्रियाएं आना जारी है। जहाँ कई टिप्पणियाँ पाकिस्तानियों के मनानुकूल हैं, तो वहीं सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी आई है राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला की। तहसीन पूनावाला ने काफिर शब्द के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग सरकार से की है। उन्होंने एक्स पर अपनी पोस्ट में लिखा कि वे भारत सरकार और सभी सांसदों से यह अनुरोध करते हैं कि वे सार्वजनिक बातचीत में काफिर शब्द का प्रयोग एक अपराध के रूप में करें।
उन्होंने लिखा कि इसे ऐसे ही अपराध बनाया जाए, जैसा कि कुछ शब्दों को एससी/एसटी अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित किया गया है। और विशेषकर तब, जब अपने ही साथी अन्य नागरिकों को भाषणों में या बातचीत में नीचा दिखाने की बात होती है। उन्होंने आगे लिखा कि पहलगाम आतंकी हमले में, जिसमें हिन्दू पुरुषों को इस्लामिस्ट आतंकियों द्वारा क्रूरतापूर्वक नाम पूछकर मार दिया गया था, और जिसे पाकिस्तान के सेना प्रमुख के विभाजनकारी नफरती भाषण से बढ़ावा मिला था, खुलकर यह कारण देता है कि इस शब्द पर प्रतिबंध लगाया जाए।
क्या है काफिर शब्द?
सबसे पहले यह समझना महत्वपूर्ण है कि काफिर शब्द क्या है? इस्लाम में काफिर शब्द का अर्थ क्या होता है? काफिर शब्द का अर्थ होता है अविश्वास करने वाला। इसे प्राय: गैर मुस्लिम को संदर्भित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। ऐसे व्यक्ति को काफिर कहा जाता है, जो खुदा में यकीन नहीं रखता है। काफिर का अर्थ अक्सर होता है जो ईमान लाने पर यकीन नहीं करता है।
काफिर को ईमान में लाने के लिए अक्सर कई दलीलें और भड़काऊ बातें सोशल मीडिया पर और यूट्यूब तक पर उपलब्ध हैं। जिनमें यही बार-बार कहा जाता है कि काफिर को ईमान में लाना ही सबसे बड़ा सबाब का काम है। काफिर का कत्ल जायज है, अगर वह ईमान में नहीं आता है तो।
काफिर शब्द का भारतीय फिल्मों में सरलीकरण
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि जहाँ एक ओर काफिर जैसा शब्द जिसके मूल में ही गैर मुस्लिमों के अस्तित्व के प्रति घृणा है, उसका सरलीकरण भारतीय या कहें हिन्दी फिल्मों में जमकर किया गया है। मगर उससे पहले यह भी देखें कि जिन पाकिस्तानी गायकों को भारत की काफिर जनता ने जमकर प्यार दिया, मोहब्बतें दीं, उन्होंने काफिर को लेकर क्या कहा है।
पाकिस्तान के एक बहुत बड़े गायक हुए हैं, नुसरत फतेह अली खान। उनकी एक कव्वाली कई वर्ष पहले बहुत ही अधिक वायरल हुई थी और अब एक बार फिर से होनी चाहिए। जिसमें वे साफ कह रहे हैं कि
“कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम,
काफिरों को न घर में बिठाओ,
लूट लेंगे ये ईमां हमारा,
इनके चेहरे से गेसू हटाओ!”
https://twitter.com/pakistan_untold/status/1467419911324528641?
इतना ही नहीं नुसरत फतेह अली खान, जिन्हें इसी काफिर जनता ने अपने सिर माथे पर बैठाया था, उन्होंने हैदर की तलवार भी गाई है। यह भी यूट्यूब पर मौजूद है और इसी हैदर की तलवार में वे एक जगह गाते हैं कि
“जरा सी देर में मैदान भरा काफिर की लाशों से!”
मगर वे लोग पाकिस्तानी हैं, गा सकते हैं और लिख भी सकते हैं, जैसा कि उनके सेनाध्यक्ष मुनीर ने कह ही दिया है कि पाकिस्तान बना ही इसलिए है क्योंकि हिन्दू और मुस्लिम कभी एक नहीं हो सकते। मुस्लिम हर रूप में हिंदुओं से अलग हैं। यह सोच वहाँ की है। काफिर शब्द को लेकर वे लोग स्पष्ट हैं। मगर भारत में काफिर जैसे शब्द को इतना सरल और सहज बना दिया गया है कि नई पीढ़ी काफिर दिल कहकर खुद ही गाना बना लेती है। काफिर का कान्सेप्ट ही उसे नहीं पता चल पाता है।
पता चल भी कैसे पाएगा जब उसके सामने ऐसे पुराने क्लासिकल गाने होंगे, जिनमें लगातार ही काफिर शब्द को ऐसे प्रस्तुत किया गया, जैसे कुछ विशेष है ही नहीं। एक फिल्म आई थी बॉबी! युवा दिलों की धड़कन थी वह मूवी। उस मूवी में एक गाने के बोल भी कुछ यूं थे-
“मैं काफिर तो नहीं
मगर ऐ हसीं
जब से देखा मैंने तुझको
मुझको बंदगी आ गयी”
ऐसे ही एक और मूवी का गाना है,
“ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहाँ, ढूंढती है काफिर आँखें किसका निशाँ!
महबूब की मेहंदी फिल्म का गाना
“पसंद आ गई है एक काफिर हसीना,
उम्र उसकी सोलह बरस छ महीना”
एक और गाना है दिल काफिर, जिसके बोल हैं
“तू कर दे रहम मेरे मौला,
है दिल काफिर मेरे मौला!”
ऐसे ये ही नहीं असंख्य गाने हैं, असंख्य कविताएं हैं, जिनमें हिंदुओं के अस्तित्व के सबसे बड़े शत्रु शब्द को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि जैसे यह बहुत ही सामान्य हो। परंतु यह सामान्य नहीं है। जिसका प्रमाण यूट्यूब पर मौजूद वे तमाम तकरीरें हैं, जो काफिरों के प्रति मुस्लिमों के मन में लगातार नफ़रतें भरती रहती हैं और जो लगातार यह कहती हैं कि काफिरों को इस्लाम में लाओ।
ऐसे में तहसीन पूनावला की यह मांग पूरी तरह से उचित है कि इस शब्द के प्रयोग पर कानूनी प्रतिबंध लगना ही चाहिए।
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