हरियाणा

“जिसने भाई को मारा, मुझे उसका सिर चाहिए” : पहलगाम से तिरंगे में लिपटे आए विनय नरवाल, बहन की चीख बना राष्ट्र की पुकार

पहलगाम में बलिदान हुए नौसेना अधिकारी विनय नरवाल का करनाल में अंतिम संस्कार। बहन मांग को देशभर से समर्थन, मजहबी आतंक पर आक्रोश

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SHIVAM DIXIT

“जिसने मेरे भाई को मारा, मुझे उसका सिर चाहिए…” यह चीख थी उस बहन की जिसने तिरंगे में लिपटे अपने भाई – भारतीय नौसेना के बलिदानी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल – को मुखाग्नि दी। बहन सृष्टि ने भाई की अर्थी को कंधा दिया, और पूरे गर्व के साथ अपने भाई को अंतिम विदा दी।

पहलगाम का आतंकी हमला कोई हादसा नहीं था– यह एक मजहबी आतंक का सोचा-समझा हमला था, जिसमें एक नवविवाहित नौसेना अधिकारी को उसके हनीमून के दौरान पत्नी के सामने गोली से छलनी कर दिया गया।

हरियाणा के करनाल में बुधवार देर शाम जब बलिदानी विनय का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया गया, तब पुलिस और नौसेना के जवानों ने सलामी दी, इस दौरान वहां मौजूद हजारों की भीड़ की आँखों में आंसुओं के अलावा, इस्लामिक आतंकियों के विरुद्ध आक्रोश उमड़ रहा था।

इस दौरान जब मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जब परिजनों से मिलने पहुंचे, तब बहन सृष्टि ने उनसे सीधी और तीखी मांग करते हुए कहा-  “जिसने मेरे भाई को मारा, मुझे उसका सिर चाहिए।” मुख्यमंत्री ने भी सृष्टि को आश्वासन देते हुए कहा- “चिंता ना कर बहन, जिसने मारा है… वो भी मरेगा।”

वहीं बलिदानी विनय की पत्नी हिमांशी, जो पीएचडी कर रही हैं, ने अपने पति के ताबूत से लिपटकर कहा — “I am proud of you.” उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन आंसुओं से ज्यादा आँखों में गर्व था। इस नवविवाहित जोड़े की शादी 16 अप्रैल को हुई थी और 21 अप्रैल को वे पहलगाम पहुंचे। जिसके अगले ही दिन विनय को मजहबी आतंकियों ने गोलियां मारकर उन्हें बलिदान कर दिया। इसके बाद जो चित्र देश के सामने आया उसने पूरे देश को आतंकियों के मजहब के बारे में बता दिया, चित्र में विनय नरवाल की पत्नी अपने बलिदानी पति के पार्थिव शरीर के पास बेबस बैठी हुईं थीं।

उस चित्र से स्पष्ट था कि यह हमला केवल विनय पर नहीं था — यह एक सोच, एक योजना और मजहबी उन्माद का परिचायक है, जिसका जवाब सिर्फ राजनीतिक बयानों से नहीं, सीधा एक्शन लेकर देना होगा।

वहीं बलिदानी विनय के दादा हवा सिंह, जो खुद बीएसएफ और हरियाणा पुलिस में सेवा दे चुके हैं, ने बताया कि विनय पहले घुमने के लिए यूरोप जाना चाहते थे, उन्होंने कहा— “काश विनय को यूरोप का वीजा मिल जाता, तो आज विनय हमारे बीच होता।”

बता दें कि विनय का जन्मदिन 1 मई को था और 3 मई को उन्हें कोच्चि ड्यूटी पर लौटना था। पर उससे पहले मजहबी अत्नाकियों ने भारत के एक वीर सपूत को छीन लिया।

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