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‘वाटर स्ट्राइक’ से टूटेगी ‘आतंकिस्तान’ की रीढ़, ‘सिंधु’ की धार से भारत का प्रतिशोध

पहलगाम हमले के बाद PM मोदी की अध्यक्षता में करीब ढ़ाई घंटे चली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट की मीटिंग में चार बहुत बड़े फैसले लिए गए हैं।

by योगेश कुमार गोयल
Apr 24, 2025, 02:49 pm IST
in भारत
सिंधु जल संधि पर भारत का फैसला

सिंधु जल संधि पर भारत का फैसला

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पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में करीब ढ़ाई घंटे चली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट (सीसीएस) की मीटिंग में चार बहुत बड़े फैसले लिए गए हैं। भारत ने सख्त कदम उठाते हुए सिंधु जल समझौते पर रोक लगा दी है, अटारी-वाघा बॉर्डर को बंद कर दिया गया है, पाकिस्तानियों का वीजा तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है और पाकिस्तान में भारतीय दूतावास और भारत में पाकिस्तानी दूतावस बंद करने का निर्णय लिया गया है। भारत द्वारा अटारी-वाघा सीमा बंद करना, पाकिस्तानियों के वीजा पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाना और दोनों देशों के दूतावासों को बंद करने का निर्णय इस बात की गवाही देता है कि भारत की रणनीति अब प्रतिरोध नहीं बल्कि प्रतिशोध की है। खासतौर से, सिंधु जल समझौते पर रोक का भारत का फैसला तो पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका है। पाकिस्तान के लिए यह केवल कूटनीतिक नहीं, अस्तित्वगत संकट की आहट है। यह तय है कि भारत से पानी रोके जाने से पाकिस्तान की ऐसी कमर टूटेगी कि वह न अपनी जमीन पर आतंकियों को पालने-पोसने में समर्थ होगा और न घाटी में अलगाववादियों का समर्थन करने की उसकी हैसियत बचेगी।

सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य जानना भी बहुत जरूरी है। 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर मुहर लगाई थी। सिंधु जल संधि के तहत छह नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलुज, ब्यास और रावी) को भारत और पाकिस्तान के बीच इस तरह बांटा गया कि भारत को इन नदियों के कुल जल प्रवाह का केवल 20 प्रतिशत उपयोग का अधिकार मिला जबकि पाकिस्तान को 80 प्रतिशत पानी का लाभ मिलता रहा। पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास और रावी) का जल भारत को मिला जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का अधिकांश जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया। भारत की ओर से यह एकतरफा उदारता थी क्योंकि भारत के भूभाग से होकर बहने वाली नदियों का अधिकांश जल पाकिस्तान को मिला। सिंधु जल संधि के तहत भारत को कुल 168 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) जल में से केवल 20 प्रतिशत यानी लगभग 33 एमएएफ जल का उपयोग करने का अधिकार है जबकि पाकिस्तान को शेष 80 प्रतिशत यानी लगभग 135 एमएएफ जल मिल रहा है।

2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत अभी भी अपने हिस्से में से लगभग 30 एमएएफ जल का ही उपयोग करता है बाकी जल बिना उपयोग के पाकिस्तान की ओर बहता है। भारत, जिसकी नदियां हिमालय से निकलती हैं, ने इतने दशकों तक इस एकतरफा संधि का पालन करते हुए एक जिम्मेदार राष्ट्र की भूमिका निभाई जबकि पाकिस्तान ने इस उपकार के बदले भारत के विरुद्ध आतंकवाद को प्रायोजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पाकिस्तान में सिंधु प्रणाली की नदियां वहां की 80 प्रतिशत कृषि भूमि की सिंचाई करती हैं और उसकी 90 प्रतिशत आबादी की जल आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। विशेषकर पश्चिमी पंजाब, जहां देश की अधिकांश फसलें उगाई जाती हैं, वह पूरी तरह से इन नदियों पर निर्भर है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, कृषि क्षेत्र अभी भी पाकिस्तान की जीडीपी का करीब 19-21 प्रतिशत है और करीब 45 प्रतिशत श्रमिकों की आजीविका इस पर निर्भर है।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल समझौते पर रोक के भारत के निर्णय का सीधा प्रभाव पाकिस्तान की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर पड़ने जा रहा है, जो पहले से ही गंभीर संकटों से जूझ रही है। सिंधु प्रणाली की नदियों से सिंचित क्षेत्र विशेषकर पंजाब और सिंध में फैला हुआ है, जहां तीन नदियों का जल उपयोग महत्वपूर्ण है। इन नदियों पर निर्भर 17 लाख एकड़ भूमि के सूखने का अर्थ है, फसलें बर्बाद होना, खाद्यान्न संकट और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का चरमराना। हाल ही में पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश को जल संकट से जूझने में केवल 5-7 वर्ष शेष हैं और यदि जल की उपलब्धता ऐसे ही घटती रही तो पाकिस्तान 2030 तक ‘जल के अभाव वाला देश’ बन जाएगा। 2023 में इंटरनेशनल मॉनिटरिंग रिपोर्ट ने पाकिस्तान को ‘सर्वाधिक जल-अभावग्रस्त’ देशों की सूची में तीसरे स्थान पर रखा था। विश्व बैंक की 2022 की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि पाकिस्तान में जल भंडारण क्षमता केवल 30 दिनों की है जबकि भारत की क्षमता लगभग 200 दिनों की है।

भारत द्वारा अपने ही हिस्से का पानी रोकने का अर्थ है कि पाकिस्तान की जल आधारित परियोजनाएं जैसे कि मंगला, तरबेला, नीलम-झेलम और दासू हाइड्रोपावर परियोजना भी ठप्प पड़ सकती हैं। पाकिस्तान की कुल पनबिजली उत्पादन क्षमता का करीब 58 प्रतिशत इन्हीं परियोजनाओं पर निर्भर है, जो अब भारत के इस निर्णय से गहरे संकट में आ जाएंगी। ऊर्जा संकट की मार झेलते पाकिस्तान में, जहां पहले से ही बिजली कटौती आम है, वहां यह स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। यही नहीं, पाकिस्तान के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा जाएगी। पाकिस्तान के जल और ऊर्जा संसाधन प्राधिकरण की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और सिंध के लगभग 80 प्रतिशत खेतों की सिंचाई इन्हीं नदियों से होती है। सिंधु जल प्रवाह के रुकने का अर्थ है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन घटेगा, बेरोजगारी बढ़ेगी और खाद्य संकट उत्पन्न होगा। पाकिस्तान की खाद्य आयात निर्भरता पहले से ही बढ़ती जा रही है और भारत के इस निर्णय से यह निर्भरता आतंकिस्तान में विकराल रूप ले सकती है। सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देखें तो विभाजन के समय भारत ने मानवता की भावना से काम लेते हुए पाकिस्तान को निर्धारित समय सीमा के बाद भी पानी देना जारी रखा था लेकिन जब 1 अप्रैल 1948 को भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली दो नहरों का पानी रोक दिया था, तब पाकिस्तान की लगभग 17 लाख एकड़ भूमि बंजर हो गई थी। यही इतिहास अब दोहराए जाने की संभावना है लेकिन इस बार और व्यापक स्तर पर।

कुछ लोग आशंका जता रहे हैं कि सिंधु जल संधि पर रोक के भारत के फैसले के बाद भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के विरोध का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि संभवतः ऐसा नहीं होगा क्योंकि भारत संधि के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर रहा बल्कि अपने हिस्से के पानी का ही इस्तेमाल सुनिश्चित कर रहा है। दरअसल सिंधु जल संधि के अनुच्छेद 12 (4) में स्पष्ट है कि कोई भी पक्ष इस संधि को द्विपक्षीय संबंधों की बिगड़ी हुई स्थिति के आधार पर पुनर्विचार के लिए प्रस्तुत कर सकता है। अंतर्राष्ट्रीय जल संधियों में राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है और चीन इसका बड़ा उदाहरण है, जिसने साउथ चाइना सी पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने से इनकार कर दिया था। भारत भी अपने जल संसाधनों पर सम्प्रभु अधिकार रखते हुए यह निर्णय लेने में वैधानिक और नैतिक रूप से पूर्णतः सक्षम है। जल सुरक्षा अब केवल संसाधन से जुड़ा मुद्दा नहीं रहा बल्कि रणनीतिक शक्ति का प्रतीक भी बन चुका है।

‘वॉटर स्ट्राइक’ की अवधारणा अब भारत के कूटनीतिक शस्त्रागार में एक नया आयाम बनकर उभरी है। भारत जल के माध्यम से न केवल पाकिस्तान की आतंक प्रायोजक क्षमता को चुनौती दे रहा है बल्कि एक स्पष्ट संदेश भी दे रहा है कि अब परंपरागत प्रतिक्रियाओं का दौर समाप्त हो चुका है। सिंधु जल संधि पर रोक लगाकर भारत ने अपनी रणनीति में दीर्घकालिक सोच दिखाई है। यह निर्णय केवल तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालीन सामरिक नीति का हिस्सा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि भारत सिंधु के पानी को रोकता है और अपनी बांध परियोजनाओं को तेज करता है तो पाकिस्तान का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है। जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर भारत जहां अपनी कृषि, ऊर्जा और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है, वहीं पाकिस्तान की स्थिति इससे दिन-ब-दिन दयनीय होती जाएगी और ऐसे में भारत की ‘वाटर स्ट्राइक’ उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ देगी। भारत ने यदि भविष्य में इस संधि को पूरी तरह समाप्त करने का निर्णय लिया तो पाकिस्तान के लिए यह उसके राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय अस्तित्व की सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगा।

Topics: सिंधु जल विवादसिंधु जल संधि पर भारत का फैसलासिंधु जल समझौते का इतिहासभारत की वाटर स्ट्राइक नीतिपाकिस्तान जल संकटपाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाईभारत पाकिस्तान संबंधपहलगाम आतंकी हमलाPahalgam Terror Attackअटारी वाघा बॉर्डर बंदसिंधु जल संधि 2025
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