UK: ट्रांसजेंडर मामले में सुप्रीम कोर्ट और NHS के बीच रार
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ट्रांसजेंडर अधिकार विवाद: UK के एनएचएस ने सुप्रीम कोर्ट के महिला स्थान नियम को मानने से किया इंकार

यूके सुप्रीम कोर्ट के इक्वालिटी एक्ट 2010 के तहत ‘महिला’ को जैविक महिला के रूप में परिभाषित करने के फैसले का 28 एनएचएस अस्पताल ट्रस्टों ने विरोध किया है, जो ट्रांसजेंडर महिलाओं को महिला स्थानों में प्रवेश की अनुमति दे रहे हैं। इस विवाद के बारे में जानें।

by Kuldeep singh
Apr 22, 2025, 06:52 am IST
in विश्व
UK Transgender vivad

विरोध करता ट्रांस समुदाय (फोटो साभार: जीबी न्यूज)

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ब्रिटेन में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए पिछले सप्ताह वहां के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडर महिलाओं (पहले पुरूष फिर महिला) को महिला मानने से इनकार कर दिया था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यूके में लगातार विवाद हो रहा है। इसी क्रम में लंदन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है।

एनएचएस के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों ने एक सुर में कहा है कि अस्पतालों में आने वाले ट्रांसजेंडर भी महिलाओं के लिए बनाए गए स्थानों का इस्तेमाल कर सकते हैं। जीबी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, देश में वर्तमान में महिलाओं के लिए कोई स्पेशल ‘एकल लिंग’ स्थान नहीं है। इसका असर ये हो रहा है कि न केवल मरीजों, बल्कि कर्मचारियों और ट्रांसजेंडरों के साथ शौचालय और चेंजिंग रूम साझा करना पड़ रहा है।

28 अस्पताल ट्रस्टों ने खोला मोर्चा

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद लंदन के करीब 28 अस्पताल ट्रस्ट ऐसे हैं, जिन्होंने ‘सिंगल सेक्स’ स्पेस नियम को मानने से इंकार कर दिया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी के महिला होने की परिभाषा उसके जैविक लिंग के आधार पर तय होनी चाहिए। लेकिन, शीर्ष अदालत के फैसले को ठेंगा दिखाते हुए बार्किंग, हैवरिंग, रेडब्रिज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल समेत अन्य अस्पतालों ने अपने मरीजों से कहा है कि उन्हें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता है कि वो पहले क्या थे और अब क्या हैं। हमें केवल गोपनीयता की गरिमा में यकीन है।

क्या है पूरा मामला

हाल ही में यूके के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यूके के इक्वालिटी लॉ के अंतर्गत महिला की परिभाषा दी। यूके के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांस महिलाएं इक्वालिटी अधिनियम 2010 की परिभाषा के अंतर्गत महिलाओं की श्रेणी में नहीं आएंगी।

कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि इक्वालिटी अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत “महिला” की जो परिभाषा दी गई है, उसमें लिंग का निर्धारण जन्म से होता है अर्थात केवल जैविक लिंग ही लिंग निर्धारण कर सकते हैं। स्कॉटलैंड की सरकार के दिशानिर्देशों पर निर्णय देते हुए यूके के सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा, “इन सभी कारणों से, हम निष्कर्ष निकालते हैं कि स्कॉटिश सरकार द्वारा जारी किया गया मार्गदर्शन गलत है। महिला लिंग में जीआरसी वाला व्यक्ति इक्वालिटी अधिनियम 2010 की धारा 11 में लिंग भेदभाव के उद्देश्यों के लिए ‘महिला’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है।

इसका मतलब यह है कि 2018 अधिनियम की धारा 2 में ‘महिला’ की परिभाषा, जिसे स्कॉटिश मंत्री स्वीकार करते हैं कि इक्वालिटी अधिनियम 2010 की धारा 11 और धारा 212 में ‘महिला’ शब्द के समान अर्थ होना चाहिए, जैविक महिलाओं तक सीमित है और इसमें जीआरसी वाली ट्रांस महिलाएं शामिल नहीं हैं।”

इसी के खिलाफ यूके का ट्रांस समुदाय सड़कों पर भी उतर चुका है। ट्रांस समुदाय इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला बता रहा है।

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