दक्षिण के राज्य तमिलनाडु से एक ऐसी खबर आई है जो वहां की हिन्दू विरोधी स्टालिन सरकार की धर्म विरोधी मानसिकता का एक और उदाहरण देती है। इस दक्षिणी प्रदेश में डीएमके के सत्ता में आने के बाद से ही अनेक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों पर जैसे अनीश्वरवादी शासन प्रमुखों की गाज गिरनी शुरू हो गई थी। मुख्यमंत्री के नाते स्टालिन ने मंदिर प्रबंधन समितियों को बेअसर करना शुरू किया और उनके रखरखाव के लिए जाने वाले अनुदान पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। धर्मादा विभाग भी एक अनीश्वरवादी के हाथ में सौंप दिया। अब धीरे धीरे प्राचीन मंदिरों की हालत जर्जर होती जा रही है। लेकिन ताजा जानकारी चौंकाने वाली है। स्टालिन सरकार की शुरू से मंदिरों की तिजोरी पर रही है। अब उन्हीं तिजोरियों से ईश्वर को अर्पण किए गए गहने आदि स्वर्णाभूषणों को गलाकर सरकार ने छड़ें बनाईं और उन्हें बैंकों में जमा किया है। यह जानकारी तमिलनाडु के ही नहीं, देशभर के हिन्दू आस्थावानों को आहत कर रही है।
पता चला है कि तमिलनाडु सरकार द्वारा मंदिरों में चढ़ाए गए सोने को पिघलाकर 24 कैरेट की छड़ों में बदलकर उन्हें बैंकों में जमा कराया गया है। सरकार की इस ‘योजना’ के अंतर्गत राज्य के 21 मंदिरों से लगभग 1,000 किलोग्राम सोने को मुंबई स्थित सरकारी टकसाल में पिघलाया गया था। बाद में इसे भारतीय स्टेट बैंक में स्वर्ण निवेश योजना के तहत जमा किया गया।

प्रदेश सरकार का दावा है कि इस निवेश से अर्जित ब्याज का उपयोग संबंधित मंदिरों के विकास और रखरखाव के लिए किया जाएगा। उदाहरण के तौर पर, इस योजना से हर साल लगभग 17.81 करोड़ रुपये का ब्याज प्राप्त हो रहा है, जिसे मंदिरों की संपत्ति को सुरक्षित रखने और उनके विकास में लगाया जा रहा है। लेकिन सरकार की इन बातों पर किसी आस्थावान हिन्दू को भरोसा नहीं है। उसे लगता है, यह सीधे सीधे मंदिरों के खजाने पर ‘सरकारी डाका’ ही है। जो सरकार नियम के अनुसार, मंदिरों के रखरखाव, पुजारियों के वेतन आदि के लिए पैसे देने में आनाकानी करती आ रही है, उससे इस प्रकार की कोई अपेक्षा रखना बेमानी होगी।
स्वाभाविक रूप से प्रदेश की कथित हिन्दू विरोधी सरकार के इस कदम से एक विवाद खड़ा हुआ है। धार्मिक, सामाजिक संगठनों ने इसे “हिंदू विरोधी” करार दिया है और आरोप लगाया है कि यह हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का अपमान है। वहीं, सरकार ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि यह योजना मंदिरों की संपत्ति को सुरक्षित रखने और उनके विकास में योगदान देने के उद्देश्य से बनाई गई है।
यह मुद्दा धार्मिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से जटिल है। एक ओर, यह कदम मंदिरों की संपत्ति के ‘बेहतर उपयोग’ और उनके ‘विकास’ के लिए एक सकारात्मक पहल बताया जा रहा है तो दूसरी ओर, इसे धार्मिक भावनाओं और परंपराओं के साथ छेड़छाड़ के रूप में भी देखा जा रहा है। इसी सेकुलर प्रदेश सरकार ने राज्य के चर्चों और मस्जिदों के संबंध में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है। उसकी ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं है। मुल्ला—मौलवियों और पादरियों को तो प्रदेश में खास तरजीह दी जाती है। स्टालिन की ‘मंंदिरों की तिजौरी लूटो’ की योजना प्रदेश में हिन्दुओं को और आक्रोशित कर सकती है। कहना न होगा, इस प्रकार की योजनाएं एकपक्षीय और हिन्दू विरोधी ही हैं।
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