पोखरा हवाईअड्डा परियोजना न केवल नेपाल की आर्थिक स्थिति पर खराब असर डाल रही है, बल्कि चीन की कर्ज जाल की रणनीति को भी उजागर कर रही है
भारत के पड़ोसी हिमालयी देशों के कम्युनिस्ट नेताओं के रास्ते काठमांडू को अपन कर्ज के शिकंजे में जकड़ने और अनेक परियोजनाओं को अपनी कंपनियों से कराने का करार करके चीन ने नेपाल के खजाने पर ही डाका डाला है। पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण चीन की सरकारी कंपनी सीएएमसी इंजीनियरिंग ने किया था। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के अंतर्गत यह एक प्रमुख परियोजना मानी जा रही थी। लेकिन अब इस परियोजना को लेकर अनेक विवादों के सामने आने और बीजिंग पर घोटाले के आरोप लगने से नेपाल सरकार सकते में है। एक तरफ, इन आरोपों के निशाने पर चीन की निर्माण प्रक्रिया है। तो दूसरी तरफ, चीन और नेपाल के बीच संबंधों को भी लेकर सवाल उठे हैं।
नेपाल के दूसरे सबसे बड़े शहर में स्थित पोखरा हवाईअड्डे को पर्यटन को बढ़ावा देने और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। नेपाल को उम्मीद थी कि यह एयरपोर्ट देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाएगा। लेकिन, इसके निर्माण और संचालन में कई समस्याएं सामने आ चुकी हैं। ऐसे में अब चीन की शह पर शुरू हुई यह परियोजना नेपाल के लिए सफेद हाथी पालने जैसी साबित हो रही है।
नेपाल की संसदीय जांच समिति ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में चीन की उक्त कंपनी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की सीएएमसी इंजीनियरिंग कंपनी ने हवाईअड्डे के निर्माण में घटिया गुणवत्ता वाले उपकरणों का इस्तेमाल किया है और तय मानकों का भी पालन नहीं किया गया है। इसके अलावा, कंपनी ने परियोजना की मंजूरी के लिए नेपाल के अधिकारियों और सांसदों को रिश्वत दी थी। यह बात साबित करती है कि चीनी प्रभाव वाले नेताओं और अधिकारियों ने इस हवाईअड्डे के रास्ते अपने ही देश के खजाने से अपनी जेबें गर्म की हैं।
इस परियोजना की लागत शुरू में 12 अरब नेपाली रुपये आंकी गई थी, लेकिन बाद में यह बढ़कर 24 अरब कर दी गई। चीन के निर्यात-आयात बैंक से 20 साल के कर्ज के साथ इस हवाईअड्डे का निर्माण किया गया था। लेकिन चालाक चीन ने बाद में ब्याज दर बढ़ा दी, जिससे नेपाल पर कर्ज का बोझ और बढ़ गया। नेपाल की सरकार ने चीन से इस कर्ज को अनुदान में बदलने की मांग तो की है लेकिन वह मान ली जाएगी, इसमें संशय है।
आज हालत यह है कि पोखरा हवाईअड्डे से सप्ताह में केवल एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान संचालित होती है, जो इसके निर्माण के उद्देश्य को कामयाबी से बहुत दूर दिखाती है। इसके अलावा, हवाईअड्डे पर टेकऑफ और लैंडिंग के लिए दो अलग अलग रनवे बनाए जाने थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से अभी केवल एक रनवे का उपयोग हो रहा है।
जैसा पहले बताया, इस परियोजना में नेपाल के कुछ राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के आर्थिक स्वार्थ भी जुड़े रहे हैं। समिति की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन की कंपनी को सीमा शुल्क और वैट में छूट दी गई थी, जबकि समझौते में ऐसा कुछ नहीं था।
पोखरा हवाईअड्डे के निर्माण को नेपाल और चीन के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ की उपमा दी जा रही थी। लेकिन यह परियोजना न केवल नेपाल की आर्थिक स्थिति पर खराब असर डाल रही है, बल्कि चीन की कर्ज जाल की रणनीति को भी उजागर कर रही है। नेपाल को इस परियोजना से सबक लेते हुए भविष्य में चीन के साथ व्यवहार में अधिक सतर्कता और पारदर्शिता लानी होगी, नहीं तो उस हिमालयी देश को अपने सामने घुटने टेकने को मजबूर करने के सपने नेपाल बैठा कम्युनिस्ट ड्रैगन पूरी निर्ममता के साथ कर्ज वसूलने के लिए कुख्यात है ही।
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