देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में धड़ल्ले से मस्जिदों के निर्माण का काम चल रहा है। जबकि कानून ये कहता है कि बिना जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति के किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण अथवा उसकी मरम्मत का काम नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड में पिछले दिनों हरिद्वार जिले में, उधम सिंह नगर, देहरादून और नैनीताल जिले में अवैध रूप से मस्जिदों के निर्माण के मामले सामने आए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 29.09.2009 के एक मामले में ऐसा निर्देश दिया गया है कि बिना डीएम प्रशासन की अनुमति से किसी भी धार्मिक स्थल पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। इस बारे में पुनः 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए और इस आदेश की मॉनिटरिंग के लिए हाई कोर्ट को नियुक्त कर दिया। हाई कोर्ट के निर्देशों पर हर जिले में डीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी गई जो कि इस तरह के निर्माणों के बारे में निर्णय लेगी।
विधि विशेषज्ञों से मिली जानकारी के मुताबिक, कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया कि एक तो सरकारी भूमि पर ऐसे किसी भी तरह के अवैध धार्मिक निर्माण न हो सकें। दूसरा ये कि जब भी कोई पुराने धार्मिक स्थलों की मरम्मत या विस्तार करे तो उसके लिए उसे वैध दस्तावेज दिखाने पड़ेंगे तभी उसे अनुमति मिलेगी। इससे पूर्व ऐसा होता आया है कि धार्मिक स्थलों के निर्माण की कोई प्रशासनिक अनुमति नहीं ली जाती थी और जहां-तहां धार्मिक संरचनाएं खड़ी कर ली जाती थी, बाद में तुष्टिकरण की राजनीति के कारण ये धार्मिक स्थल आलिशान भवनों में तब्दील हो जाते रहे हैं।
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देवभूमि उत्तराखंड में बहुत सी मस्जिदें ऐसी सामने आ रही हैं, जिनके पास कोई भूमि दस्तावेज नहीं है और उन्होंने अवैध रूप से निर्माण कार्य किए। यूपी से लगे उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में ऐसे कई मामले देखने में आए है, जहां प्राधिकरण ने अब नोटिस दिए है। हरिद्वार की एक मस्जिद के बाहरी गेट को प्राधिकरण ने रातों रात गिरवाया। काशीपुर में एक मस्जिद को प्राधिकरण ने नोटिस दिया हुआ है, उधम सिंह नगर जिले में एक मदरसे को सरकारी जमीन पर कब्जा कर बना दिया गया।
इसी तरह का एक नोटिस विकास नगर सहस पुर परगना क्षेत्र में भी एक मदरसे को दिया गया है। नैनीताल जिले में चौंसला क्षेत्र में एक मस्जिद बना दी गई और इसकी अनुमति प्रशासन से नहीं ली गई। हल्द्वानी बनभूलपूरा में कुछ समय पहले हुए एक सर्वे में ऐसे मामले सामने आए हैं। एक खबर ये भी है कि वक्फ बोर्ड में अवैध धार्मिक स्थलों के पंजीकरण करवा कर उनमें बिना प्रशासनिक अनुमति के अवैध निर्माण कराए गए हैं।
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बहरहाल उत्तराखंड शासन इन मामलों पर जांच पड़ताल करवा रहा है कि आखिर कैसे बिना अनुमति के निर्माण हुए और यदि निर्माण हुए तो क्या उनके भू दस्तावेज जांचे परखे गए? जानकारी के मुताबिक, ऐसी मस्जिदों की बड़ी संख्या ऐसी है जो कि सरकारी भूमि पर कब्जे कर बनाई गई और इनके निर्माण की कोई अनुमति भी डीएम से नहीं ली गई है। जानकार मानते हैं कि यदि वो डीएम अथवा प्रशासनिक अनुमति के लिए जाते तो उनके पास अनुमति पाने संबंधी दस्तावेजों का अभाव रहता, उन्हें अनुमति नहीं मिलती और उन्हें नोटिस अलग से दे दिया जाता।
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