प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों के बीच प्रगाढ़ मित्रता और आपसी समझ है (File Photo)
यह भारत की कूटनीतिक दक्षता ही मानी जाएगी कि एक बाद एक, विश्व के अनेक शक्तिशाली देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता दिए जाने की वकालत कर रहे हैं। सुरक्षा परिषद के पी5 देशों में से बस चीन ही एक ऐसा देश है जो वैसे तो भारत से एक बार फिर निकटता बढ़ाने की आतुरता दिखा रहा है तो दूसरी ओर सुरक्षा परिषद में भारत के शामिल होने की राह में रोड़े अटका रहा है। बीते दो दिन में रूस और फ्रांस द्वारा क्रमश: उस अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मंच पर भारत के होने के महत्व को रेखांकित करते हुए मजबूत वकालत की है। फ्रांस सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य है और अगर वह उस गुट में भारत के आने का समर्थन कर रहा है तो यह कोई छोटी बात नहीं है।
भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए विशेषज्ञ फ्रांस और रूस के समर्थन को एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं। फ्रांस ने सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा को पत्र लिखा है। इससे ठीक पहले रूस ने भी भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन व्यक्त किया था। दोनों प्रमुख देशों व अन्य देशों का समर्थन भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने और UNSC में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। भारत का तर्क है कि वर्तमान सुरक्षा परिषद 1945 में स्थापित की गई थी और यह 21वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती। भारत का कहना है कि वह एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति है और उसकी स्थायी सदस्यता से सुरक्षा परिषद अधिक प्रभावी और प्रतिनिधित्वपूर्ण बनेगी।
फ्रांस और रूस जैसे देशों का समर्थन भारत की दावेदारी को मजबूती प्रदान करता है। इसके अलावा, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम भी भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते आए हैं। यह समर्थन भारत की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत को मान्यता देता है।
लेकिन जैसा पहले बताया, चीन भारत की स्थायी सदस्यता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। चीन ने हमेशा भारत की दावेदारी का विरोध किया है। वह अब भी सुरक्षा परिषद में सुधार के किसी भी प्रस्ताव को रोकने के लिए अपने वीटो का उपयोग कर सकता है। स्पष्ट रूप से चीन का यह विरोध मुख्य रूप से भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से है।
भारत को ब्राजील, जर्मनी और जापान जैसे G4 देशों का समर्थन प्राप्त है, जो UNSC में सुधार और स्थायी सदस्यता के विस्तार की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा, अफ्रीकी देशों को भी स्थायी सदस्यता देने की मांग की जा रही है, जिससे सुरक्षा परिषद अधिक समावेशी बन सके। भारत खुद इस बारे में अनेक बार अपना मत व्यक्त कर चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने उद्बोधन में इस ओर संकेत करते हुए इसे समय की मांग बताया था।
हालांकि, UNSC में सुधार के लिए व्यापक सहमति की आवश्यकता है, जो वर्तमान भू राजनीतिक परिदृश्य में आसान नहीं दिखती। चीन और रूस जैसे देशों के साथ पश्चिमी देशों की प्रतिस्पर्धा और सतत तनाव इस प्रक्रिया को और जटिल बना देते हैं।
कहना न होगा कि सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की संभावना बढ़ रही है, लेकिन यह पूरी तरह से वैश्विक सहमति और चीन जैसे देशों के रुख पर निर्भर करती है। फ्रांस और रूस का समर्थन भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इसे वास्तविकता में बदलने के लिए भारत को कूटनीतिक प्रयासों को और तेज करना होगा।
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