वक्फ संशोधन अधिनियम, जिसे संसद के दोनों सदनों ने पास कर दिया है और अब यह कानून बन चुका है, इस पर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में दो अहम बिंदु उठाए। पहला यह कि क्या इस मामले को किसी उच्च न्यायालय के पास भेजा जाना चाहिए? और दूसरा यह कि याचिकाकर्ता वास्तव में क्या मांग रहे हैं और उनका तर्क क्या है?
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि कुछ बड़े संस्थान जैसे दिल्ली हाईकोर्ट और ओबेरॉय होटल वक्फ की जमीन पर बने हैं। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी वक्फ संपत्तियों पर संदेह नहीं है, लेकिन कुछ मामलों में वास्तविक चिंता का विषय हैं।
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कानून बनाने से पहले एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने 38 बैठकें कीं और करीब 98 लाख लोगों से राय ली गई। इसके बाद ही यह कानून बनाया गया, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है।
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वक्फ एक बहुत पुरानी व्यवस्था है, जिसे अयोध्या मामले के फैसले में भी स्वीकार किया गया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर संसद भवन को भी वक्फ घोषित कर दिया जाए, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि वक्फ की पूरी अवधारणा ही गलत है।
वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि वक्फ संपत्ति के लिए किसी रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि कोई भी अपनी संपत्ति को धार्मिक उपयोग में ले सकता है।
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, डीएमके, एआईएमआईएम और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठनों ने इस कानून के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की हैं। सुप्रीम कोर्ट अब इस पर आगे की सुनवाई करेगा।
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