स्नो व्हाइट (Snow White) की कहानी पढ़कर एक बहुत बड़ा वर्ग बड़ा हुआ है और अभी भी बच्चों की प्रिय कहानियों में यह शामिल है। स्नोव्हाइट एक राजकुमारी की कहानी है, जिसपर उसकी सौतेली मां जो कि रानी बन जाती है, अत्याचार करती है। फिर जब उसका जादूई आईना यह कहता है कि स्नोव्हाइट सबसे सुंदर है तो रानी उसे मारने के लिए एक आदमी को भेजती है।
रानी का वह गुलाम स्नोव्हाइट को मार नहीं पाता और उसे सच्चाई बताकर जंगल में भगा देता है। वहां से वह ऐसी जगह पर पहुंचती है, जहां पर उसकी मुलाकात सात बौनों से होती है। वह उनके साथ रहने लगती है। सात बौनों के साथ जब वह रहने लगती है, तो उसकी सौतेली मां फिर अपने जादूई आईने से पूछती है कि कौन सबसे सुंदर है। आईना फिर से स्नोव्हाइट का नाम बताता है।
अब वह एक बूढ़ी महिला का रूप रखकर आती है और स्नोव्हाइट को जहर से भरा हुआ सेब देती है। उस सेब का जहर तभी निकल सकता था, जब कोई लड़की को पहली बार चुंबन करे। स्नोव्हाइट उस सेब को खाती है और फिर बेहोश हो जाती है। सातों बौने और सारा जंगल रोने लगता है और वह इतनी सुंदर लग रही होती है कि कोई यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि वह मर गई है।
स्नोव्हाइट को खोजता हुआ राजकुमार आता है, वह उसे इस तरह लेटा हुआ देखकर दुखी होता है और रोते हुए अंतिम चुंबन देता है। मगर चुंबन के साथ ही वह उठ जाती है और राजकुमार के साथ चली जाती है। बौने और जंगल के हर पशु-पक्षी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
यह बहुत ही प्यारी कहानी है, और वर्ष 1937 में इस कहानी पर एक ऐनिमेटिड फिल्म भी बनी थी। वह फिल्म अभी यूट्यूब और डिज्नी दोनों पर ही है। इस वर्ष इस कहानी को स्पेशल इफेक्ट के साथ दोबारा से डिज्नी ने रिलीज किया। इस फिल्म में कलाकारों का चयन ही विवादास्पद रहा था। और इस कहानी के साथ भी फिल्म में छेड़छाड़ की गई।
इस कहानी में जहां नायक राजकुमार था, तो वहीं जो फिल्म डिज्नी ने (Disney’s Snow White ) इस वर्ष रिलीज की, उसमें एक साधारण चोर नायक था। और स्नोव्हाइट के नाम से जो छवि सामने आती है, इतनी श्वेत जैसे कि बर्फ! अर्थात गोरी। परंतु विविधता अर्थात डाइवर्सिटी का एजेंडा चलाने के नाम पर ऐसी अभिनेत्री का चयन किया गया, जो कहीं से भी उस छवि पर खरी नहीं उतरती थीं, जो दशकों से स्नो व्हाइट की बनी हुई है।
रेचल जेगलर का चयन ही अपने आप में चौंकाने वाला था। और उसके बाद इस निर्णय को सही ठहराने के लिए हर प्रकार की बयानबाजी की गई। स्नो व्हाइट एक कोमल लड़की थी। उसमें परिस्थितियों से लड़ने और जूझने का साहस था, परंतु वह फेमिनिस्ट नहीं थी और उसे अपने राजकुमार का इंतजार था। उसमें स्त्रियोचित गुण थे। मगर रेचल जेगलर के चेहरे से वह स्त्रियोचित भाव ही पूरी फिल्म में नदारद थे। उन्होंने एक ऐसी फेमिनिस्ट के रूप में स्नोव्हाइट को बदल दिया, जो अपनी सौतेली मां से बदला लेने के लिए अपने आप ही सारे काम करती है, जैसे सेना का गठन आदि। और इसमें स्नो व्हाइट की कथित आजादी पर अधिक महत्व दिया गया। इसमें प्यार और परिवार जैसी परंपरागत भावनाओं के स्थान पर पूरी तरह से आजाद ख्याल वाली महिलाओं का चरित्र गढ़ने का प्रयास किया गया।
जब इसका ट्रेलर आया था, तभी इसे लेकर लोगों ने आलोचना करनी आरंभ कर दी थी। स्वतंत्र विचारों की महिलाओं से किसी को कोई समस्या नहीं हो सकती है, परंतु एक चरित्र जो दशकों से बच्चों की कल्पनाओं का हिस्सा बना हुआ है, उसे विकृत करने का कोई औचित्य समझ नहीं आया। स्नोव्हाइट एक ऐसा चरित्र है, जो इतनी मजबूत है कि वह अपनी सौतेली मां से दूर चली जाती है और उसका स्वभाव इतना प्यारा है कि जंगल के तमाम पशु-पक्षी उसके मित्र बन जाते हैं। वे बौने भी उसके साथी बन जाते हैं। अर्थात वह सभी को साथ लेकर चलने वाली लड़की है, परंतु इसके लिए वह किसी एजेंडे का सहारा नहीं लेती। वह रोती नहीं है, बल्कि अपने सामने आने वाली हर चुनौती का सामना करती है, परंतु अपने स्त्रियोचित गुणों को बचाते हुए।
दशकों से स्मृतियों में बसी हुई कहानियों को वोकिज़्म के चलते दूषित नहीं किया जा सकता है। इस विषय में जब स्नो व्हाइट का चरित्र निभा रही जेगलर का यह बयान सामने आया था कि स्नो व्हाइट को केवल “सच्चे प्यार” जैसी चीजों पर ही केंद्रित नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे ऐसा लीडर बनना चाहिए, जो वह जानती है कि वह हो सकती है।
लोगों ने उसी समय इसका विरोध किया था, इसलिए नहीं कि वे स्नोव्हाइट से प्रेम नहीं करते, बल्कि इसलिए क्योंकि स्नोव्हाइट का चरित्र प्यार का प्रतीक माना जाता है। इस प्रकार के चित्रण को लेकर आलोचना लगातार होती जा रही थी, परंतु निर्माताओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया था।
इसके साथ डाइवर्सिटी, इन्क्लूसिवनेस की बात करने वाली डिज्नी की टीम ने सात बौनों के चरित्र को कंप्यूटर से चरित्रों द्वारा प्रस्तुत किया था। बॉलीवुड के बौने कलाकारों ने इस बात को लेकर काफी विरोध प्रदर्शन किया था। बौने कलाकारों के लिए वैसे ही अभिनय के अवसर कम होते हैं, और जब ऐसी फिल्में बनें तो उन्हें ही बाहर कर दिया जाए, यह तो इन्क्लूसिवनेस और डाइवर्सिटी नहीं हुई।
इसके साथ इसके अंत को लेकर भी विरोध हुआ था। इसे लेकर लोगों के मन में इतना गुस्सा था कि इसे आईएमडीबी पर एक स्टार की रेटिंग दी गई है। किस प्रकार से एक कहानी को वोकिज़्म के कारण बर्बाद किया जा सकता है, स्नो व्हाइट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हालांकि भारत में भी ऐसा होता आया है, और ऐतिहासिक कहानियों को अपने एजेंडे के साथ विकृत करने का लंबा इतिहास रहा है।
परंतु स्नो व्हाइट के साथ जो हुआ है, वह अकल्पनीय इसलिए है क्योंकि बार्बी जैसी फिल्मों के माध्यम से अत्यधिक फेमनिस्ट एजेंडा जब प्रस्तुत किया था, तो दर्शकों ने हाथों-हाथ लिया था। स्नो व्हाइट में जो एजेंडा परोसा गया, उसे लोग सहन नहीं कर पाए, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तो यही कि ऐसी लड़की का चयन जिसकी छवि बर्फ जैसी सफेद कहीं से नहीं थी और राजकुमार के स्थान पर साधारण चोर और स्नो व्हाइट द्वारा लोगों को इकट्ठा करके जाना।
दुष्ट रानी जिस गुलाम को स्नो व्हाइट को मारने के लिए भेजती है, उसका भी पूरा रूप बदल दिया था। उसे एक अश्वेत सैनिक के रूप में दिखाया गया था। कहा जाता है कि यह बहुत महंगी फिल्म बनी थी। डिज्नी ने भी यह कल्पना नहीं की होगी कि यह फिल्म इतनी बड़ी फ्लॉप होगी।
निर्माण और मार्केटिंग सहित इसकी लागत 350 मिलियन डॉलर थी, जिसे वह पूरा तो क्या उसके आसपास भी पहुंचने में सफल नहीं रही थी। इसकी आलोचनाओं से यूट्यूब भरा पड़ा है। स्नो व्हाइट पर बने वोक मीम से सोशल मीडिया भर चुका है।
लोगों का प्रश्न यही है कि कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर क्या एक ऐसी कहानी और चरित्र से छेड़छाड़ की जा सकती है जो दशकों से, कई पीढ़ियों के मस्तिष्क में बसी हुई है।
टिप्पणियाँ