धरती अब भी घूम रही है
July 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम धर्म-संस्कृति

धरती अब भी घूम रही है

पिछले कई दिनों से एक न्यायाधीश के घर में लगी आग और उससे जुड़े तमाम तथ्य खबरों में तैर रहे हैं। ऐसे में प्रस्तुत है, दिवंगत कहानीकार विष्णु प्रभाकर लिखित लघु कहानियों में से न्यायपालिका से जुड़ी प्रख्यात कहानी

by विष्णु प्रभाकर
Apr 16, 2025, 08:05 am IST
in धर्म-संस्कृति, जीवनशैली
फोटो एआई से निर्मित

फोटो एआई से निर्मित

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

आयु नीना की दस वर्ष की भी नहीं थी लेकिन बुद्धि काफ़ी प्रौढ़ हो गई थी। जैसा कि अक्सर मातृ-हीन बालिकाओं के साथ होता है, बुज़ुर्गी ने उसके लिए आयु का बंधन ढीला कर दिया था। इसलिए जब उसने सुना कि कुछ दूर पर सोया हुआ उसका छोटा भाई सुबक रहा है तो वह चुपचाप उठी। एक क्षण भयातुर दृष्टि से चारों ओर देखा, फिर उसके पास आकर बैठ गई।
तब रात आधी बीत चुकी थी और चांद कभी का अस्त हो चुका था, फिर भी कुछ दूर पर सोते हुए उनके मौसा के परिवार के दूध-से-धुले कपड़े अंधकार की कालस में चमक रहे थे जैसे तमसावृत्त श्मशान में अग्नि की स्फुलिंग। वही चमक नीना के नन्हे-से दिल में कसक उठी। किसी तरह रुलाई रोककर उसने धीरे से पुकारा, “कमल… ओ कमल…।”
कमल आठवें वर्ष में चल रहा था। उसके छोटे-से खटोले पर एक फटी-सी दरी बिछी थी। उस पर वह लेटा था गुड़मुड़, पैर उसने पेट से सटा रखे थे और मुंह को हाथों से ढक रखा था। रह-रहकर उसका पेट सिकुड़ता और सुबकियां निकल जातीं। उसने बहन की पुकार का कोई जवाब नहीं दिया। नीना भी इतनी सहमी हुई थी कि दूसरी बार पुकारने का साहस ना बटोर पायी। चुपचाप कमर सहलाती रही, देखती रही।
कई क्षण बीत गये, तो उसे सीधा करके उसका मुंह अपने दोनों हाथों में ले लिया। तब उसकी आंखे डबडबा आयीं और आंसू ढुलककर कमल के मुख पर जा गिरे। कमल कुनमुनाया, फिर आंखें बंद किये–किये बोला, “जीजी!”
नीना ने चौंककर कहा, “तू जाग रहा था रे?”
“नींद नहीं आती… जीजी, पिताजी कब आयेंगे? जीजी, पिताजी के पास चलो।”
“पिताजी…!”
“हां जीजी!… पिताजी के पास चलो। आज मुझे मौसाजी ने मारा था। जीजी, गिलास तोड़ा तो प्रदीप ने और मारा हमें… जीजी, यहां से चलो।”
नीना ने अनुभव किया कि कमल अब रोया, अब रोया। वह विह्लल हो उठी। उसने अपना मुंह उसके मुंह पर रख दिया और दोनों हाथों से उसे अपने वक्ष में समेटकर वह ‘शिशु-मां’ वहीं लेट गई। बोली वह कुछ नहीं। बस, उस स्तब्ध वातावरण में उसे ज़ोर-ज़ोर से थपथपाती रही और वह सुबकता रहा, बोलता रहा-
“जीजी! आज मौसी ने हमें बासी रोटी दी। सारा हलुआ प्रदीप और रंजन को दे दिया और हमें बस खुरचन दी; और जीजी, जब दोपहर को हम मौसाजी के कमरे में गये, तो हमें घुड़ककर निकाल दिया। जीजी, वहां हमें क्यों नहीं जाने देते? जीजी, तुम स्कूल से जल्दी आ जाया करो। जीजी, पिताजी को जेल में क्यों बंद कर दिया? वहां पिताजी को रोटी कौन खिलाता है? हम वहां क्यों नहीं रहते? प्रदीप कहता था, तेरे पिताजी चोर हैं।”
तब एकबारगी अपने को धोखा देती हूं, नीना ज़ोर से बोल उठी, “प्रदीप झूठा है।” और कहकर अपनी ही आवाज़ पर वह भय से थर-थर कांप गयी। उसने कमल को ज़ोर से भींच लिया। कमल को लगा, जैसे जीजी बड़े ज़ोर से हिल रही है, हिलती जा रही है, हिलती चली जा रही है। हालन आ गया क्या? उसने घबराकर कहा, “जीजी, जीजी, क्या है? तुम्हें बुख़ार आ गया है?”
“चुप चुप। मौसी आ रही हैं।”
सचमुच कोई उठकर जल्दी-जल्दी उनके पास आया और कड़ककर पूछा, “क्या है, क्या है नीना; कमल, क्या है रे?…ओहो! भाई से लाड़ लड़ाया जा रहा है! मैं कहती हूं नीना! तू यहां क्यों आयी? अरी बोलती क्यों नहीं?…ओहो, बड़े बेचारे गहरी नींद में सोये हैं। अभी तो बड़ी गटर-गटर मेरी शिकायत हो रही थी। जैसे मैं जानती ही नहीं… हाय रे मेरी क़िस्मत!… ओ बहन! तू ख़ुद तो मर गयी, पर मुझे इस नरक में छोड़ गयी…।”
सहसा मौसा हड़बड़ाकर उठ बैठे, पूछा, “क्या बात है?
क्या हुआ?”
“हुआ मेरा सिर। दोनों भागने की सलाह कर रहे हैं।”
“कौन भागने की सलाह कर रहा है? नीना-कमल? अरे, कुछ लिया तो नहीं? अलमारी की चाबी तो है? रात ही तो पांच सौ रुपये लाकर रखे हैं। अरे, तुम बोलती क्यों नहीं? क्यों री नीना! कहां है रुपया?” बोलते-बोलते मौसा उठकर वहीं आ गये, जहां दोनों बच्चे एक-दूसरे में सिमटे, सकपकाये, कबूतर की तरह आंखें बंद किए पड़े थे।
मौसी ने तुनककर कहा, “क्या पता, क्या-क्या निकालते, वह तो मेरी आंख खुल गयी।” और फिर झपटकर नीना को उठाते हुए कहा, “चल अपनी खाट पर! ख़बरदार, जो पास सोये! बाप तो आराम से जेल में जा बैठा, मुसीबत डाल गया मुझ पर। न लाती, तो दुनिया मुंह पर थूकती, बहन के बच्चे थे। शहर की शहर में, आंखों में लिहाज़ न आयी। लेकिन कहने वाले यह नहीं देखते कि हमारे घर में क्या सोने–चाँदी की ख़ान है? क्या खर्च नहीं होता? पढ़ाई कितनी महंगी हो गई है और फिर बच्चों की खुराक बड़ों से ज़्यादा ही है।”
रुपये नहीं निकाले, इस बात से मौसा को परम सन्तोष हुआ। उन्होंने खाट पर बैठते हुए कहा, “मैं कहता हूं तुम तो।”
“अब चुप रहो। भले ही चचेरी बहन हो, हैं तो मेरी बहन के बच्चे।”

“हां, तुम्हारी बहन के बच्चे हैं, तभी तो बहनोई साहब को रिश्वत लेने की सूझी और रिश्वत भी क्या ली, बीस रुपये की। वह भी लेनी नहीं आयी। रंगे हाथों पकड़े गये। मैं रात पांच सौ लाया हूं। कोई कह दे, साबित कर दे।“
“इतनी बुद्धि होती, तो क्या अब तक तीसरे दरजे का क्लर्क बना रहता!” “और मज़ा यह कि जब मैंने कहा कि तीन सौ, चार सौ रुपये का प्रबन्ध कर दे, तुझे छुड़ाने का जिम्मा मेरा, तो सत्यवादी बन गये मैं रिश्वत नहीं दूंगा नहीं दूंगा, तो ली क्यों थी? अरे लेते हो, तो दो भी मैं तो…।”
मौसी ने सहसा धीमे पड़ते हुए कहा, “चुप भी करो, रात का वक़्त है। आवाज़ बहुत दूर तक जाती है …”
काफ़ी देर बड़बड़ाने के बाद जब वे फिर सो गये, तो दोनों बालक तब भी जागते पड़े थे। आंखों की नींद आंसू बनकर उनके गालों पर जमती जा रही थी और उसके धुंधले परदे पर बहुत-से चित्र अनायास ही उभरते आ रहे थे। एक चित्र मौसी का था, जो उन्हें रोत-रोते घर लायी थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रो-रोकर पागल हो गये थे। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गये, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गयी। दया, जो ऊंच-नीच की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया…। एक चित्र मौसा का था, जो तीसरे-चौथे दिन बहुत-से नोट लेकर आते और उन्हें लक्ष्य करके कहते, “मैं कहता हूं कि उसने रिश्वत ली, तो दी क्यों नहीं? अरे तीन सौ देने पड़ते, तो पांच सौ बटोरने का मार्ग भी तो खुलता…” एक चित्र पिता का था। पिता, जो प्यार करता था, पिता, जिसने रिश्वत ली थी, पिता, जिसे जेल में बन्द हुए दो महीने बीत चुके थे और अभी सात महीने शेष थे…।
नीना ने सहसा दोनों हाथों से अपना मुंह भींच लिया। उसकी सुबकी निकलने वाली थी। उसने मन-ही-मन विह्वल–विकल होकर कहा, “पिताजी! अब नहीं सहा जाता।”
अब नहीं सहा जाता। मौसा तुम्हारे कमल को पीटते हैं। पिताजी, तुम आ जाओ। अब हम उस स्कूल में नहीं पढ़ेंगे। अब हम बढ़िया कपड़े नहीं पहनेंगे। पिताजी, तुमने रिश्वत ली थी, तो देते क्यों नहीं… क्यों… क्यों…?”
इस प्रकार सोचते-सोचते उसकी बन्द आंखों के अन्धकार में पिता की मूर्ति और भी विशाल हो उठी…। एक अधेड़ व्यक्ति की मूर्ति, जिसकी आंखों में प्यार था, जिसकी वाणी में मिठास थी, जिसने दोनों बच्चों को नये स्कूल में भर्ती करवा रखा था, जहां उन्हें कोई मारता- झिड़कता नहीं था, जहां नाश्ता मिलता था, जहां वे तस्वीरें काटते थे, खिलौने बनाते थे… और घर में पिता उनके लिए खाना बनाता था, अच्छी-अच्छी किताबें लाता था, फल लाता था। उनकी मां के मरने पर उसने शादी तक नहीं की थी…। नीना ने ये सब बातें पड़ोसियों के मुंह से सुनीं। वे सब उसके पिता की बड़ी तारीफ़ करते। उसने अपने कानों से पिता को यह कहते सुना था कि रिश्वत लेना पाप है। लेकिन फिर उन्होंने रिश्वत ली… क्यों ली…, आखिर क्यों…?
पड़ोसिन कहती, “उसका खर्च बहुत था और आमदनी कम। वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था और तुम जानो अच्छी शिक्षा बहुत महंगी है…।”
महंगी थी, तो उसने रिश्वत ली। महंगी होना क्या होता है… और अब पिता कैसे छूटेंगे? मौसा कहते थे, “जज को रिश्वत देते, तो छूट जाते। एक जज ने तीन हज़ार लेकर एक डाकू को छोड़ दिया था। एक आदमी, जिसने एक औरत को मार डाला था, उसे भी जज ने छोड़ दिया था। पांच हज़ार लिये थे…।”
पांच हज़ार कितने होते हैं? सौ… हजार…, दस हजार…, लाख… ये कितने होते हैं… मौसा कहते थे, “रिश्वत और तरह की भी होती है। एक प्रोफेसर ने एक लड़की को एम. ए. में अव्वल कर दिया था, क्योंकि वह ख़ूबसूरत थी…।”
नीना ने सहसा दृष्टि उठाकर आसमान में देखा। तारे जगमगा रहे थे और आकाश गंगा का स्रोत धवल ज्योत्स्ना में लिपटा पड़ा था। उसने सोचा, यह सब कितना सुन्दर है! क्या यहां भी रिश्वत चलती है? उसकी सुबकियां अब बिलकुल बन्द हो चुकी थीं और वह बड़ी गम्भीरता से सुनी-सुनायी बातों को याद कर रही थी, पर समझ में उसकी कुछ नहीं आ रहा था।…
ख़ूबसूरत होना भी क्या रिश्वत है? मौसा कहते थे कि गंजे हाकिम के पास ख़ूबसूरत लड़की भेज दो और कुछ भी करवा लो…। खूबसूरत लड़की और रुपया, रुपया और ख़ूबसूरत लड़की – इन्हें लेकर जज और हाकिम काम क्यों कर देते हैं?
क्यों… क्यों और ख़ूबसूरत लड़की का वे क्या करते हैं? काम करवाते होंगे, पर काम तो सभी करते हैं … फिर ख़ूबसूरत लड़की ही क्या ?… और उसके मौसा बहुत–से रुपये लाते हैं, पर लड़की कभी नहीं लाते…। उसकी समझ में कुछ नहीं आया।
लेकिन इसी उधेड़–बुन में रात न जाने कहां चली गयी, यह जाना न जा सका। एकाएक मौसी की पुकार ने उसकी तन्द्रा को तोड़ दिया। हड़बड़ाकर आंखें खोलीं, तो मौसी कह रही थी, “नीना, ओ नीना! अरी नहीं उठेगी? पांच बजे हैं। ”
पांच…! अभी तो पहरुआ तीन की आवाज़ लगा रहा था और आकाश गंगा का मार्ग कैसा चमचम कर रहा था! इसी रास्ते तो स्वर्ग जाते हैं। मौसी फिर चीख़ी, “अरी सुना नहीं नीना? कब से पुकार रही हूं। दोनों भाई–बहन कुम्भकर्ण से बाज़ी लगा कर सोते हैं। चल जल्दी चौका–बासन कर। मैं आती हूं।” नीना ने अब अंगड़ाई लेने का नाट्य किया। फिर कुनमुनाती हुई उठी, “जा रही हूं मौसी।”
ज़ीने तक जाकर न जाने उसे क्या याद आया, वह कमल के पास गयी और बड़े प्यार से कान से मुंह लगाकर उसे पुकारा। फिर उत्तर की प्रतीक्षा न करके उसे कौली में समेटकर नीचे लिये चली गयी। और जब दो घण्टे बाद मौसी नीचे उतरी, तो स्तब्ध रह जाना पड़ा। रसोईघर जैसे दूध में धोया गया हो।
लकदक-लकदक, मैल की कहीं छाया तक नहीं। बरतन चांदी से चमचमा रहे थे। बार-बार अविश्वास से आंखें मलकर ठगी-सी मौसी बोली, “आज क्या बात है नीना?”
“कुछ नहीं मौसी।” नीना ने सकपकाकर उत्तर दिया।
“कुछ नहीं कैसे? ऐसा काम क्या तू रोज़ करती है?”
कमल ने एकदम कहा, “मौसी! आज पिताजी आवेंगे।”
“पिताजी”
“हां, जीजी कहती थी…।”
मौसी ने अविश्वास और आशंका से देखा कि कमल सहमकर पीछे हट गया। कई क्षण उस स्तब्ध वातावरण में वे प्रस्तर प्रतिमा बने रहे, फिर जैसे जागकर मौसी बोली, “तो यह बात है! बाप के स्वागत के लिए रसोईघर सजाया गया है!” फिर एकबारगी बड़े ज़ोर से हंसी और बोली, “पर रानी जी, अभी तो पूरे सात महीने बाक़ी हैं।”
सात महीने। वाह रे, बाप के लिए दिल में कितना दर्द है! इसका पासंग भी हमारे लिए होता, तो…।”
नीना की काया एकाएक पीली पड़ गयी । आग्नेय नेत्रों से कमल की ओर देखती हुई वह वहां से चली गयी। उस दृष्टि से कमल सहम गया, पर उसे अपने अपराध का पता तब लगा, जब वह हो चुका था।
स्कूल जाते समय रास्ते में नीना ने इस अपराध के लिए कमल को खूब डांटा। इतना डांटा कि वह रो पड़ा। रो पड़ा, तो उसे छाती से लगाकर ख़ुद भी रोने लगी। इसी समय वहां से बहुत दूर एक सुसज्जित भवन में मुक्त अट्टहास गूंज रहा था।
छोटे न्यायमूर्ति आज विशेष प्रसन्न थे। उनकी छोटी पुत्री मनमोहिनी को कमीशन ने सांस्कृतिक विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद के लिए चुन लिया था। मित्र बधाई देने आये हुए थे। उसी हर्ष का यह अट्टहास था। यद्यपि बाक़ायदा चाय-पार्टी का कोई प्रबन्ध नहीं था, तो भी मेज़ पर अच्छी भीड़भाड़ थी। अंग्रेज़ लोग चाय पीते समय बोलना पसन्द नहीं करते थे, पर भारतवासी क्या अब भी उनके गुलाम हैं! वे लोग ज़ोर-ज़ोर से बातें करते थे। मनमोहिनी ने चाय पीते हुए कहा, “मुझे तो आशा नहीं थी, पर सचिव साहब की कृपा को क्या कहूं।”
सचिव साहब बोले, “मेरी कृपा! आपको कोई ‘न’ तो कर दे? आपकी प्रतिभा।”
डायरेक्टर कह उठे, “हां, इनकी प्रतिभा। सांस्कृतिक विभाग तो है ही नारी की प्रतिभा का क्षेत्र।”
सचिव साहब के नेत्र जैसे विस्फारित हो आये। प्याले को ठक से मेज़ पर रखते हुए उन्होंने कहा, “क्या बात कही है आपने! संस्कृति और नारी दोनों एक ही हैं। नाट्य, नृत्य, संगीत और कविता…।”
“और प्रचार?”
“अरे, नारी से अधिक प्रचार कर पाया है कोई !”
इसी समय बैरे ने आकर सलाम झुकायी। तार आया था। खोलने पर जाना उसे मद्रास जाना होगा।
“क्या, क्या…”- कहते हुए सब तार पर झपटे। हर्ष और भी मुखर हो उठा। छोटे न्यायमूर्ति के बड़े बेटे की नियुक्ति इन्कमटैक्स ऑफ़िसर के पद पर हो गयी है।
छोटे जज ने अट्टहास करते हुए अपनी पत्नी से कहा, “देखा निर्मल! मुझे पूरा विश्वास था, शर्मा मेरी बात नहीं टाल सकता और मेरी बात भी क्या! असल में वह तुम्हारा मुरीद है। कहता था, औरत..”
बात काटकर सचिव साहब बोले, “जी नहीं, यह न आप हैं और न श्रीमती निर्मल। यह तो आपकी कौटुम्बिक प्रतिभा है।”
इस पर सबने स्वीकृतिसूचक हर्ष-ध्वनि की। छोटे न्यायमूर्ति इसका प्रतिवाद कर पाते कि बैरे ने आकर फिर सलाम किया। विस्मित से डायरेक्टर बोले, “इस बार किसकी नियुक्ति होने
वाली है?”
बैरे ने कहा, “दो बच्चे हुज़ूर से मिलने आये हैं।”
“हमसे?” न्यायमूर्ति अचकचाकर बोले।
“जी।”
“किसके बच्चे हैं?”
“जी मालूम नहीं भाई–बहन हैं। गरीब जान पड़ते हैं।“
“अरे तो बेवकूफ़ कुछ दे – दिवाकर लौटा दिया होता।“
“बहुत कोशिश की, पर वे कुछ मांगते ही नहीं, बस आपसे मिलना चाहते हैं।“
छोटे न्यायमूर्ति तेज़ी से उठे। मुख उनका विकृत हो आया, पर न जाने क्या सोचकर वह फिर बैठ गये। कहा, “आज ख़ुशी का दिन है। यहीं ले आ।” दो क्षण बाद, बुरी तरह सहमे-सकपकाये जिन दो बच्चों ने वहां प्रवेश किया, वे नीना और कमल थे। आंसुओं के दाग अभी गालों पर शेष थे। दृष्टि से भय झरा पड़ता था। एकसाथ सबने उनको देखा, जैसे मदिरा के प्याले में मक्खी पड़ गयी हो। छोटे न्यायमूर्ति ने पूछा, “कहां से आये हो?”
“जीजी… जी…, नीना ने कहना चाहा, पर मुंह से शब्द नहीं निकले और बावजूद सबके आश्वासन के वे कई क्षण हतप्रभ, विमूढ़, अपलक देखते ही रहे, बस, देखते ही रहे।
आखिर मनमोहिनी उठी। पास आकर बोली, “कितने प्यारे, कितने सुन्दर बच्चे हैं…!..
इन शब्दों में न जाने क्या था। नीना को जैसे करंट छू गयी। एकबारगी दृढ़ कण्ठ से बोल उठी, “आपने हमारे पिताजी को जेल भेजा है। आप उन्हें छोड़ दें…।”
कमल ने उसी दृढ़ता से कहा, “हमारे पास पचास रुपये हैं। आपने तीन हज़ार लेकर एक डाकू को छोड़ा है……”
नीना बोली, “लेकिन हमारे पिताजी डाकू नहीं हैं। महंगाई बढ़ गयी थी। उन्होंने बीस रुपये की रिश्वत ली थी।”
कमल ने कहा, “रुपये थोड़े हों, तो…।”
नीना बोली, “तो मैं एक-दो दिन आपके पास रह सकती हूं।”
कमल ने कहा, “मेरी जीजी खूबसूरत है और आप ख़ूबसूरत लड़कियों को लेकर काम कर देते हैं…।”
रटे हुए पार्ट की तरह एक के बाद एक जब वे दोनों इस प्रकार बोल रहे थे, तो न जाने हमारे कथाकार को क्या हुआ, वह वहां से भाग खड़ा हुआ। उसे ऐसा लगा, जैसे धरती सूर्य की चुम्बक-शक्ति से अलग हो रही है। लेकिन ऐसा होता, तो क्या हम यह ‘पुनश्च’ लिखने को बाक़ी रहते? धरती अब भी उसी तरह घूम रही है।

Topics: पाञ्चजन्य विशेषनन्हे-से दिल में कसकक्षण भयातुर दृष्टिभारतवासीआकाश गंगा का मार्गरती सूर्य की चुम्बक-शक्तिकहानीन्यायाधीशन्यायपालिका
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: छात्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय यात्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

India democracy dtrong Pew research

राहुल, खरगे जैसे तमाम नेताओं को जवाब है ये ‘प्‍यू’ का शोध, भारत में मजबूत है “लोकतंत्र”

कृषि कार्य में ड्रोन का इस्तेमाल करता एक किसान

समर्थ किसान, सशक्त देश

उच्च शिक्षा : बढ़ रहा भारत का कद

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

‘अचानक मौतों पर केंद्र सरकार का अध्ययन’ : The Print ने कोविड के नाम पर परोसा झूठ, PIB ने किया खंडन

UP ने रचा इतिहास : एक दिन में लगाए गए 37 करोड़ पौधे

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

NIA filed chargesheet PFI Sajjad

कट्टरपंथ फैलाने वाले 3 आतंकी सहयोगियों को NIA ने किया गिरफ्तार

उत्तराखंड : BKTC ने 2025-26 के लिए 1 अरब 27 करोड़ का बजट पास

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies