रूस के निकटवर्ती मित्र देश बेलारूस और जिन्ना के देश के बीच जो खिचड़ी पक रही है, उसके पीछे मकसद को लेकर दुनिया भर के विशेषज्ञों में चर्चा चल रही है। बेलारूस ने हाल ही में पाकिस्तान से डेढ़ लाख मजदूरों की मांग की है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से अपनी वार्ता में बेलारूस के तानाशाह राष्ट्रपति लुकाशेंको ने इस बारे में बात की और दोनों के बीच हुए इस बाबत समझौते पर शाहबाज शरीफ बल्लियों उछल रहे हैं। उनकी इस खुशी के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण और रणनीतिक पहलू हैं। दरअसल शरीफ को लग रहा है कि पाकिस्तानी मजदूरों के बेलारूस में काम करने को लेकर हुआ यह समझौता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का प्रतीक है। शरीफ इस खुशफहमी में हैं कि इस ‘निकटता’ के कई आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक लाभ हो सकते हैं।
बेलारूस वर्तमान में यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। इन प्रतिबंधों के चलते उसे घरेलू ‘वर्कफोर्स’ की कमी और निर्माण, कृषि, और लॉजिस्टिक सेक्टर में कुशल मजदूरों की भारी आवश्यकता है। पाकिस्तान के मजदूर कम मेहनताने पर काम करने के लिए तैयार हैं, जो बेलारूस के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी स्थिति है। इसके अलावा, बेलारूस पाकिस्तान को “गेटवे टू एशिया” मानता है और चीन तथा रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करना चाहता है।

पाकिस्तान, जो कि इस समय भयंकर आर्थिक संकट और बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है, इस प्रस्ताव को ‘सोने पर सुहागा’ मान रहा है। अगर मिले तो इस समझौते से पाकिस्तान को दो प्रमुख लाभ मिल सकते हैं। एक, उसके ‘रेमिटेंस’ में बढ़ोतरी हो सकती है। विदेशों में काम करने वाले मजदूरों द्वारा अपने देश में भेजे गए धन से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को तिनके का सहारा मिल सकता है। दूसरे, बेरोजगार युवाओं की संख्या थोड़ी कम हो सकती है, कुछ को इस रास्ते रोजगार मिल सकता है। शरीफ को लगता है कि डेढ़ लाख पाकिस्तानी मजदूरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार मिलने से बेरोजगारी की समस्या कम होगी।
प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने इस प्रस्ताव को ‘पाकिस्तानी जनता के लिए एक तोहफा’ बताया है। यह समझौता उनकी सरकार के लिए राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह बेरोजगारी पर चौतरफा आलोचना झेल रहे हैं। इसके अलावा, यह पहल पाकिस्तान की ‘लेबर डिप्लोमेसी’ को यूरोप में विस्तार देने का एक अवसर है।
हालांकि यह समझौता दोनों देशों की नजर में उनके लिए कई फायदे प्रदान कर सकता है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। पहली, मानवाधिकारों का उल्लंघन। बेलारूस के घरेलू कानून काफी सख्त हैं और पाकिस्तान को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके नागरिक वहां किसी प्रकार के मानवाधिकारों का उल्लंघन न झेलें। दूसरी, सामाजिक और सांस्कृतिक तालमेल। पाकिस्तानी मजदूरों को बेलारूस की संस्कृति और कार्यशैली के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई हो सकती है।
दोनों देश इस समझौते को एक रणनीतिक कदम मान रहे हैं। बेलारूस को कुशल मजदूरों की आवश्यकता है, जबकि पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबरने और बेरोजगारी कम करने का अवसर मिला है। हालांकि, इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश इन चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं और अपने नागरिकों के हितों की रक्षा कैसे करते हैं। पाकिस्तान की यह भी सोच हो सकती है कि वह रूस के मित्र को खुश करके रूस से और नजदीकी दिखा सकता है और इस रास्ते उस महाशक्ति का रणनीतिक लाभ ले सकता है।
टिप्पणियाँ