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भारत की अत्याधुनिक लेजर प्रणाली: अदृश्य वार, अचूक मार,लेजर हथियारों के युग में भारत की ऐतिहासिक छलांग

भारत ने 30 किलोवाट क्षमता की लेजर हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण कर रक्षा तकनीक में बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

Published by
योगेश कुमार गोयल

रक्षा तकनीकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण छलांग लगाते हुए भारत 30 किलोवाट क्षमता की लेजर हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण कर आधुनिकतम तकनीकों के क्षेत्र में इस अभूतपूर्व उपलब्धि के साथ ही उन गिने-चुने देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके पास अत्याधुनिक लेजर हथियार प्रणाली विकसित करने और उसका प्रदर्शन करने की क्षमता है। अभी तक अमेरिका, रूस, चीन तथा इजरायल ही इस क्षेत्र में अग्रणी रहे हैं लेकिन रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने इस परीक्षण के माध्यम से सिद्ध कर दिया है कि भारत भी उन्नत रक्षा तकनीकों के विकास और उपयोग में किसी से पीछे नहीं है। इससे रक्षा क्षेत्र में विदेशी निर्भरता में भारी कमी आएगी और देश की आर्थिक सुरक्षा भी सुदृढ़ होगी। भारत के लिए लेजर हथियार प्रणाली विकसित करना एक बड़ी उपलब्धि इसलिए भी है क्योंकि यह कोई सरल कार्य नहीं है बल्कि इसमें कई वैज्ञानिक और तकनीकी चुनौतियां शामिल होती हैं। इस अभूतपूर्व उपलब्धि से यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत अब केवल एक उपभोक्ता राष्ट्र नहीं रहा है बल्कि वह अब रक्षा विज्ञान में नवाचार करने वाला, निर्माण करने वाला और वैश्विक शक्ति संतुलन में निर्णायक भूमिका निभाने वाला देश बन चुका है।

डीआरडीओ द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित की गई 30 किलोवाट की लेजर आधारित हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण देश के लिए न केवल वैज्ञानिक उन्नति का प्रतीक है बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी मील का पत्थर है। इस हथियार प्रणाली को ‘हाई एनर्जी लेजर सिस्टम’ के नाम से जाना जा रहा है, जिसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बिना पारंपरिक गोला-बारूद के, केवल केंद्रित ऊर्जा किरणों के माध्यम से अपने लक्ष्य को निष्क्रिय करने में सक्षम है। यह प्रणाली फिक्स्ड विंग एयरक्राफ्ट, स्वार्म ड्रोन और मिसाइल जैसे उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों को 5 किलोमीटर की दूरी तक सटीकता से निष्क्रिय कर सकती है। यह केवल फिजिकल टारगेट को निष्क्रिय करने तक सीमित नहीं है बल्कि यह संचार और उपग्रह संकेतों को जाम करने जैसी उन्नत इलैक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताएं भी प्रदान करती है। इस लेजर प्रणाली को मल्टी-मोड इंटीग्रेशन की दृष्टि से डिजाइन किया गया है, जिसका अर्थ है कि इसे वायुयान, जलपोत, रेलगाड़ी अथवा सड़क पर चलने वाले वाहनों पर भी स्थापित किया जा सकता है। इसी विशेषता के कारण चाहे रेगिस्तानी इलाका हो या समुद्री सीमा, यह हथियार प्रणाली कहीं भी कम समय में तैनात की जा सकती है और त्वरित प्रतिक्रिया देने में सक्षम है। लेजर हथियार प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि यह केवल लक्ष्य को भौतिक रूप से निष्क्रिय करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके माध्यम से दुश्मन के संचार नेटवर्क, उपग्रह संकेतों और इलैक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली को भी बाधित किया जा सकता है। यह प्रणाली उन्नत इलैक्ट्रॉनिक वारफेयर क्षमताओं से युक्त है, जिससे दुश्मन के हवाई अभियानों, ड्रोन नियंत्रण प्रणाली और मिसाइल मार्गदर्शन सिस्टम को विफल किया जा सकता है।

लेजर हथियार प्रणाली एक निर्देशित ऊर्जा हथियार है, जो उच्च तीव्रता की प्रकाश तरंगों को केंद्रित कर किसी लक्ष्य पर अत्यधिक तीव्रता की ऊर्जा किरण उत्पन्न करती है, जिससे वह लक्ष्य या तो नष्ट हो जाता है या उसकी कार्यशीलता खत्म हो जाती है। लेजर तकनीक आधारित इस प्रणाली में पारंपरिक बारूद या विस्फोटक सामग्री की कोई आवश्यकता नहीं होती। इस प्रक्रिया में ध्वनि प्रदूषण या विस्फोट जैसी घटनाएं नहीं होती, जिससे यह प्रणाली न केवल शांत और सटीक है बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है। इस प्रणाली में जो सबसे उल्लेखनीय तकनीकी विशेषता है, वह है इसके 360 डिग्री कवरेज क्षमता से युक्त इलैक्ट्रो-ऑप्टिकल और इन्फ्रारेड सेंसर। ये सेंसर हवाई लक्ष्यों की पहचान, ट्रैकिंग और अंततः लक्ष्य भेदन के लिए आवश्यक सभी आंकड़े प्रणाली को उपलब्ध कराते हैं। यह सेंसर टेक्नोलॉजी लक्ष्य की सटीक स्थिति, गति और दिशा की गणना करते हैं और फिर लेजर बीम को उसी निर्देशांक की ओर निर्देशित करते हैं। इस प्रक्रिया में अत्याधुनिक ट्रैकिंग एल्गोरिद्म और रीयल-टाइम डाटा प्रोसेसिंग यूनिट्स कार्य करती हैं, जो इसे उच्च स्तरीय स्मार्ट हथियार प्रणाली बनाती हैं।

लेजर हथियार प्रणाली को विकसित करना केवल एक तकनीकी प्रयोग नहीं है बल्कि एक वैज्ञानिक संघर्ष भी है, जिसमें ऊर्जा, ताप प्रबंधन, लक्ष्यीकरण और संचार का अत्यधिक समन्वय आवश्यक होता है। लेजर हथियार प्रणाली के लिए आवश्यक 30 किलोवाट ऊर्जा का स्थिर, पोर्टेबल और विश्वसनीय स्रोत विकसित करना बड़ी चुनौती थी। डीआरडीओ ने इसके लिए विशेष ऊर्जा भंडारण यूनिट्स, सुपरकैपेसिटर और अत्यधिक दक्ष पॉवर जनरेशन सिस्टम तैयार किए, जो न केवल स्थिर ऊर्जा प्रदान करते हैं बल्कि उन्हें युद्ध के दौरान कई बार दोहराया जा सकता है। इतनी तीव्र ऊर्जा उत्पन्न होने से सिस्टम के भीतर भारी मात्रा में ताप पैदा होता है, जिससे ऑप्टिकल और इलैक्ट्रॉनिक घटकों को क्षति पहुंचने की आशंका रहती है। डीआरडीओ ने इसके समाधान हेतु पंखे-आधारित परंपरागत कूलिंग प्रणाली से कहीं अधिक उन्नत तरल-आधारित थर्मल मैनेजमेंट तकनीक विकसित की है, जिसमें फेज-चेंज मैटेरियल का उपयोग कर ताप को नियंत्रण में रखा जाता है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि ऑप्टिकल लेंस और फाइबर लेजर किसी भी प्रकार की हीट डैमेज से सुरक्षित रहें। वायुमंडलीय हस्तक्षेप भी लेजर किरणों की प्रभावशीलता को कम कर सकता है। धूल, नमी, तापमान में परिवर्तन और हवा की गति लेजर बीम को बिखेर सकती है, जिससे सटीकता में कमी आती है। इसके लिए डीआरडीओ ने अडैप्टिव ऑप्टिक्स और बीम डायरेक्शन कंट्रोल जैसी तकनीकों को प्रणाली में एकीकृत किया है, जो वातावरण की परिस्थिति के अनुसार लेजर बीम की दिशा और फोकस को त्वरित रूप से समायोजित करती हैं।

हाल के वर्षों में दुनियाभर में ड्रोन आधारित हमले बढ़े हैं। लेजर हथियार इन्हें बिना किसी शोर या एक्सप्लोजन के, हवा में ही समाप्त कर सकते हैं। भविष्य में इसका उपयोग मिसाइलों को उनके प्रारंभिक चरण में ही नष्ट करने के लिए किया जा सकता है, जिससे पारंपरिक इंटरसेप्टर मिसाइलों की आवश्यकता कम होगी। एक साथ कई छोटे ड्रोनों के समूह (स्वार्म) से होने वाले हमलों को पारंपरिक हथियार संभाल नहीं पाते जबकि लेजर प्रणाली तेजी से अनेक लक्ष्यों को क्रमिक रूप से निष्क्रिय कर सकती है। लेजर हथियार प्रणाली का उपयोग स्वार्म अटैक यानी एक साथ कई ड्रोन के हमले को विफल करने में अत्यंत प्रभावी है। पारंपरिक प्रणाली में एक लक्ष्य पर एक मिसाइल दागी जाती है, जो स्वार्म हमलों के लिए उपयुक्त नहीं होती। लेजर सिस्टम बिना गोला-बारूद खर्च किए एक के बाद एक लक्ष्यों को त्वरित गति से निष्क्रिय कर सकता है, जिससे यह प्रणाली भविष्य के युद्धों में एक आवश्यक हथियार बन जाती है। भारत की यह उपलब्धि वैश्विक सामरिक परिदृश्य में एक संदेश भी देती है। यह उन शत्रु देशों के लिए स्पष्ट संकेत है, जो भारत की सीमाओं पर बार-बार ड्रोन हमलों या हवाई घुसपैठ का प्रयास करते हैं। अब भारत के पास एक ऐसा हथियार है, जो बिना समय गंवाए आकाश में ही खतरे को खत्म कर सकता है। यह प्रणाली भारत को सीमाओं पर अधिक सुरक्षित बनाती है और उसकी जवाबी क्षमता को तीव्रता प्रदान करती है। अब भारत केवल प्रतिरोध की रणनीति तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि संभावित खतरे को पहले ही निष्क्रिय करने की स्थिति में आ गया है। यह रणनीतिक बढ़त भविष्य के किसी भी संघर्ष में निर्णायक सिद्ध हो सकती है। साथ ही, इससे भारत को वैश्विक रक्षा निर्यातक बनने की दिशा में भी बल मिलेगा क्योंकि इस प्रकार की प्रणाली की मांग आने वाले वर्षों में विश्वभर में बढ़ेगी।

आज के आधुनिक युद्ध परिदृश्य में लेजर हथियार प्रणाली का महत्व कई गुना बढ़ गया है। यह प्रणाली न केवल तत्काल प्रतिक्रिया क्षमता प्रदान करती है बल्कि इसमें प्रति लक्ष्य लागत भी अत्यंत कम होती है। पारंपरिक मिसाइल प्रणाली में प्रत्येक प्रक्षेपण पर लाखों रुपये खर्च होते हैं जबकि लेजर प्रणाली में केवल ऊर्जा की खपत होती है, जो दीर्घकालिक दृष्टि से अत्यंत किफायती है। साथ ही इसमें गोला-बारूद के भंडारण, परिवहन और सुरक्षा की कोई आवश्यकता नहीं होती, जिससे लॉजिस्टिक भार भी घटता है। भविष्य की दृष्टि से देखें तो भारत इस प्रणाली को और अधिक उन्नत बनाने की दिशा में अग्रसर है। 30 किलोवाट की लेजर प्रणाली के परीक्षण के साथ ही डीआरडीओ ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह इससे अधिक शक्तिशाली लेजर प्रणाली पर भी कार्य कर रहा है, जिसे ‘सूर्य’ नाम दिया गया है, जिसकी ऊर्जा क्षमता 300 किलोवाट होगी। वह प्रणाली 20 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को भी प्रभावी रूप से भेदने में सक्षम होगी। सूर्य प्रणाली का मुख्य उद्देश्य हाइपरसोनिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल और मानव रहित हवाई प्रणालियों जैसे उन्नत खतरों को निष्क्रिय करना होगा। इसके लिए डीआरडीओ अत्याधुनिक बीम कंबिनेशन तकनीक, कोहेरेंट फेजिंग और उच्च शक्ति फाइबर लेजर तकनीक का उपयोग कर रहा है, जिससे उसकी ऊर्जा का केंद्रण और प्रभावशीलता कई गुना बढ़ जाएगी। आने वाले वर्षों में भारत अंतरिक्ष आधारित लेजर हथियार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित लक्ष्य पहचान प्रणाली और स्वायत्त लेजर युक्त मानव रहित यान जैसी तकनीकों पर भी कार्य कर सकता है। यह वह युग होगा, जहां युद्ध केवल बारूद पर नहीं बल्कि प्रकाश की तीव्र किरणों पर लड़े जाएंगे और भारत उस युग का अग्रदूत बनकर उभरेगा।

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