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डॉ. भीमराव अंबेडकर की नजर में पं. नेहरू

27 सितंबर 1951 को कांग्रेस नेतृत्व और विशेषकर पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा कैबिनेट से त्यागपत्र देने के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर को विवश किया गया।

by WEB DESK
Apr 14, 2025, 10:20 am IST
in भारत
Baba saheb ambedkar

Baba saheb ambedkar

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27 सितंबर 1951 को कांग्रेस नेतृत्व और विशेषकर पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा कैबिनेट से त्यागपत्र देने के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर को विवश किया गया। संसद में अंबेडकर ने त्यागपत्र के साथ जो भाषण दिया (अंबेडकर राइटिंग, वॉल्यूम- 14 भाग 2, पृष्ठ 1317- 1327) वह कांग्रेस के एस सी / एसटी विरोधी असली चेहरे को उजागर करता है। डॉ. अंबेडकर के भाषण के प्रमुख अंश यहाँ प्रस्तुत किये जा रहें हैं-

अपने त्यागपत्र भाषण में डॉ. अंबेडकर ने उस पीडा को बयां किया है जो उन्होंने नेहरू के हाथों झेली-

वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य बनने पर मुझे मालूम था कि कानून मंत्रालय का प्रशासनिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। यह भारत सरकार की नीतियों को आकार देने का अवसर नहीं दे पाएगा। जब प्रधानमंत्री ने मुझे प्रस्ताव दिया तो मैंने उन्हें स्पष्ट बता दिया था कि अपनी शिक्षा और अनुभव के आधार पर एक वकील होने के साथ मैं किसी भी प्रशासनिक विभाग को चलाने में सक्षम हूँ।

पुराने वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में मेरे पास श्रम और लोकनिर्माण विभाग के प्रशासनिक दायित्व रहे, जिनमें मैंने कई परियोजनाओं को प्रभावी तरीके से कार्यान्वित किया। प्रधानमंत्री सहमत हो गए और उन्होंने कहा कि वह मुझे अलग से योजना का भी दायित्व देंगे। दुर्भाग्य से योजना विभाग बहुत देरी से मिला, जिस दिन मिला मैं तब तक बाहर आ चुका था।

मेरे कार्यकाल के दौरान कई बार एक मंत्री से दूसरे मंत्री को मंत्रालय दिए गए, मुझे लगता है कि उन मंत्रालयों में से भी कोई मुझे दिया जा सकता था लेकिन मुझे हमेशा इस दौड़ से बाहर रखा गया। कई मंत्रियों को दो-तीन मंत्रालय दिए गए जो उनके लिए अतिरिक्त बोझ भी बन गए थे। दूसरी ओर मैं था जो और अधिक काम चाहता था। जब कुछ दिन के लिए किसी मंत्रालय का प्रभारी मंत्री विदेश जाता था तो अस्थाई तौर पर वह कार्यभार तक देने के लिए मेरे बारे में नहीं सोचा जाता था।

मुझे यह समझने में भी कठिनाई होती थी कि मंत्रियों के बीच काम का बंटवारा करने के लिए प्रधानमंत्री जिस नीति का पालन करते हैं उसका पैमाना क्या क्षमता है? क्या यह विश्वास है ? क्या यह मित्रता है? या क्या यह लचरता है? मुझे कभी भी कैबिनेट की प्रमुख समितियां जैसे विदेश मामलों की समिति अथवा रक्षा समिति का सदस्य नहीं चुना गया।

जब आर्थिक मामलों की समिति का गठन हुआ तो प्राथमिक रूप से अर्थशास्त्र का छात्र होने के नाते मुझे आशा थी कि इस समिति का सदस्य मुझे नियुक्त किया जाएगा, लेकिन मुझे बाहर रखा गया।

जब प्रधानमंत्री इंग्लैंड गए तो मुझे कैबिनेट ने इसका सदस्य चुना लेकिन जब वह वापस आए तो कैबिनेट समिति के पुनर्गठन में भी उन्होंने मुझे बाहर ही रखा, मेरे विरोध दर्ज करने के बाद मेरा नाम जोड़ा गया।

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