यूके इन दिनों चर्चा में है। और वह अधिकांश मामलों में गलत कारणों से चर्चा में है। इस बार इसलिए वह चर्चा में है क्योंकि वहाँ की पुलिस में कुछ ऐसा हुआ है कि लोग गुस्से में हैं और प्रश्न उठा रहे हैं। पुलिस अधिकारियों द्वारा भी इस निर्णय को गलत ठहराया जा रहा है। यूके के गृह सचिव के पास भी इस निर्णय का विरोध करने के लिए लोग फोन कर रहे हैं। ब्रिटेन की सबसे बड़ी फोर्सेस में एक से पुलिस बल में यह नियम निकाला है कि पुलिस में अधिकारी होने के लिए श्वेत व्यक्ति अस्थाई रूप से प्रतिबंधित कर जाएं। यह कदम इसलिए उठाया जा रहा है, जिससे उन समुदायों को अधिक प्रतिनिधित्व मिल सके, जिन्हें अभी तक प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।
इसे लेकर अब आलोचना के स्वर उठ रहे हैं। डेली मेल के अनुसार पूर्व पुलिस कर्मी भी इस योजना की आलोचना कर रहे हैं। दरअसल यह कदम कथित डाइवर्सिटी को प्रोत्साहन देने के लिए उठाया गया है या कहें उठाया जा रहा है। इसे एक पूर्व पुलिस अधिकारी ने “बेवकूफी भरा कदम” बताया।
पुलिस फोर्स ने जोर दिया कि यह नीति इस बात पर बल देती है कि इसके कार्यबलों में सभी समुदायों की प्रतिभागिता रहे, इसलिए इसके लिए तब तक साक्षात्कार पर रोक लगाई जा रही है, जब तक सभी नस्लों के लोग इसमें आवेदन न करें।
किसी भी देश की पुलिस या सेना में धर्म, नस्ल आदि के आधार पर नियुक्ति घातक हो सकती है क्योंकि इससे परस्पर समुदायों का अविश्वास बढ़ता है। पुलिस का काम होता है, कानून और व्यवस्था को बनाए रखना और नागरिकों को सुरक्षित होने का एहसास कराना। इसे लेकर लंदन पुलिस के पूर्व अधिकारी ने कहा कि “पुलिस नेता कब समझेंगे कि जनता को जवाब देने वाले पुलिस अधिकारी के रंग, धर्म या लिंग की परवाह नहीं है?
उन्होंने कहा कि इस प्रकार की नीति के चलते नियुक्ति नहीं हो सकती है। फिर वे लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? वेस्ट यॉर्कशायर की पॉजिटिव एक्शन टीम में परतदार नियुक्ति संरचना है। जैसे “अश्वेत और सुदूर पूर्व एशियाई उम्मीदवारों को स्वर्ण श्रेणी दी गई, दक्षिण पूर्व एशियाई मूल के उम्मीदवारों को रजत श्रेणी दी गई, तथा आयरिश और पूर्वी यूरोपीय पृष्ठभूमि के आवेदकों सहित ‘अन्य श्वेत’ को कांस्य श्रेणी दी गई।“
इतना ही नहीं नौकरी के लिए आवेदन करने वाले एशियाई और अश्वेत मूल के लोगों को तो साक्षात्कार के लिए अंतिम तिथि के लिए रिमाइंडर भेजे गए, मगर ऐसा श्वेत ब्रिटिश आवेदकों के साथ नहीं किया गया।
लोग कह रहे हैं कि यह नीति बहुत ही भेदभाव वाली नीति है। एक अधिकारी ने कहा “अगर आप चाहते हैं कि अश्वेत लोग गोल्फ या टेनिस खेलें, तो आप श्वेत लोगों को खेलने से रोककर तो यह नहीं कर सकते हैं। इस तरह की नीति बहुत खतरनाक है। और उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने कभी भी किसी पीड़ित को यह कहते हुए नहीं सुना कि उन्हें अश्वेत, या श्वेत या फिर एशियाई अधिकारी चाहिए। “
डेली मेल के अनुसार वेस्ट यॉर्कशायर पुलिस का कहना है कि इस क्षेत्र के 23 प्रतिशत लोग एथनिक अल्पसंख्यक समुदाय के हैं, मगर इनके समुदायों के केवल 9 प्रतिशत लोग ही पुलिस में अधिकारी हैं।“
पुलिस का कहना है कि उन समूहों से लोगों के आवेदन मांगना, जिनका प्रतिनिधित्व नहीं है, उस समुदाय के लोगों को आवेदन प्रक्रिया में कोई भी लाभ नहीं देता है। यह हमें केवल यह अवसर देता है कि हम ज्यादा आवेदकों से प्रतिभाशाली आवेदकों को आमंत्रित कर सकें।“
इस नीति को लेकर पूर्व स्कॉटलैंड यार्ड जासूस अधीक्षक शबनम चौधरी के साथ जीबी न्यूज़ के एंकर की एक बहस भी वायरल हो रही है। जिसमें मार्टिन डाउबने शबनम चौधरी से पूछ रहे हैं कि क्या यह नई नीति नस्लवादी नहीं है? तो शबनम चौधरी का कहना यह है कि पुलिस केवल और केवल इक्वालिटी अधिनियम का अनुपालन कर रही है। यह नस्लवाद नहीं है।
'Barring white people because of their skin colour, that's racism!'
'It's not racist!'
Watch as Martin Daubney clashes with Shabnam Chaudhry over a UK police force putting a temporary block on applications from white British candidates. pic.twitter.com/n5T7gOLMQK
— GB News (@GBNEWS) April 10, 2025
जीबी न्यूज़ ने टेलीग्राफ के हवाले से बताया कि इस नीति को लेकर मुखर एक कार्यकर्ता के विश्लेषण के अनुसार 15 महीनों की अवधि में एथनिक अल्पसंख्यक समुदाय के आवेदकों को पदों के लिए आवेदन करने के लिए जहाँ 446 दिन मिले थे, तो वहीं श्वेत आवेदकों के लिए यह केवल 99 दिनों का समय था।
सोशल मीडिया पर लोगों का यह कहना है कि आखिर श्वेत समुदाय को खलनायक क्यों बनाया जा रहा है और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक क्यों समझा जा रहा है? लोग पूछ रहे हैं कि श्वेत नागरिक और समुदाय के साथ ऐसा सरकारी स्तर पर क्यों किया जा रहा है? एक यूजर ने एक्स पर लिखा कि आखिर ब्रिटेन कैसे इस बिन्दु पर आ गया है, जहाँ पर स्थानीय श्वेत लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है? क्यों सरकार और लोग ऐसा होने दे रहे हैं? वहीं कुछ लोग इसे वोटबैंक से जोड़कर देख रहे हैं।
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