26/11 के मुंबई आतंकी हमलों के प्रमुख आरोपी और सह-साजिशकर्ता तहव्वुर हुसैन राणा का 10 अप्रैल को संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत में सफल प्रत्यर्पण प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय संकल्प की जीत का एक और उदाहरण है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने वर्षों के निरंतर और ठोस प्रयासों के बाद मुंबई आतंकी हमलों के इस मास्टरमाइंड का सफल प्रत्यर्पण कराया । जैसा कि उम्मीद थी,पाकिस्तान ने तहव्वुर हुसैन राणा को कनाडा का नागरिक बताते हुए इस प्रकरण से पल्ला झाड़ने की असफल कोशिश की है।
मुंबई और राष्ट्रीय अंतरात्मा को हिलाकर रख देने वाले 26/11 मुंबई हमले 26 नवंबर 2008 से 29 नवंबर तक मुंबई के कई इलाकों में हुए, जिसमें 166 लोगों की जान गई और 300 से अधिक घायल हुए। इन हमलों को पाकिस्तान स्थित इस्लामिक आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) की 10 आतंकियों के समूह ने अंजाम दिया था। उस वक्त भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आतंकवाद विरोधी अभियानों के बाद, नौ आतंकियों को मार गिराया गया। हमलों में एकमात्र जीवित बचे पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब पर भारतीय अदालत ने मुकदमा चलाया और उसे मौत की सजा सुनाई। कसाब को 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई।
तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण ने मुझे अपने सैन्य करियर में वर्ष 2012 की भी याद दिला दी। उस समय मैं कर्नल रैंक का अधिकारी था। 2012 की पहली छमाही में, मुझे जॉर्ज मार्शल सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्टडीज, जर्मनी में आतंकवाद पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए नामित किया गया था। यह एक अमेरिकी संस्थान है, जहां 100 से ज्यादा देशों के अफसर ट्रेनिंग लेते हैं। 2012 में, प्रशिक्षण कार्यक्रम में दो केस स्टडीज पर अध्ययन और चर्चा शामिल थी: अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमले (जो 11 सितंबर 2001 को हुए थे) और 26/11 के आतंकवादी हमले। चूंकि 26/11 का हमला भारत में हुआ था और इसने हमारी सुरक्षा की कई खामियों को उजागर किया था, इसलिए मुझे लगा कि इस तरह के अध्ययन से अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने भारत को और शर्मिंदा होना पड़ेगा।
मैं संस्था के निदेशक से मिलने गया। निदेशक ने मुझे बताया कि मुंबई आतंकी हमले का अध्ययन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इससे आतंकवाद विरोधी रणनीति तैयार करने में अधिकतम सबक मिलते हैं। चूंकि प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी भी भाग ले रहा था, इसलिए मैंने सभी सामग्री एकत्र की और केस स्टडी के दौरान भारतीय दृष्टिकोण रखने के लिए तैयारी की।
पाकिस्तानी अधिकारी की करतूत
जैसा कि अपेक्षित था, पाकिस्तानी अधिकारी ने आतंकवादी हमलों का दोष भारतीय और घरेलू आतंकवादियों पर मढ़ दिया। इन हमलों के बाद कांग्रेस ने मुंबई में हुए आतंकी हमलों को राष्ट्रभक्त संगठन आरएसएस से जोड़ने की कोशिश की। भारत में कुछ वर्गों द्वारा आतंकवादी घटनाओं को भगवा रंग में रंगने का भी प्रयास किया गया था। अब हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि इस तरह का नेरेटिव पूरी तरह से गलत साबित हुआ है। पाकिस्तानी प्रतिभागी ने यह भी कहा कि यह संभव हो सकता है कि पीओके स्थित किसी आतंकवादी संगठन ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति को उजागर करने के लिए मुंबई में हमले किए हों। केस स्टडी के दौरान मैंने अजमल कसाब से मिले कई सबूत पेश किए, जहां उसने बताया था कि उसके सहित सभी 10 आतंकवादियों ने लश्कर-ए-तैयबा के शिविरों में लंबा प्रशिक्षण लिया था। उन्होंने मुरीदके में प्रशिक्षण का दूसरा हिस्सा भी पूरा किया था। कसाब से पूछताछ के दौरान तहव्वुर राणा, डेविड हेडली(जो एक पाकिस्तानी अमेरिकी है), जकीउर रहमान लखवी जैसे नाम और पाकिस्तान की ISI और पाकिस्तानी सेना का हाथ स्पष्ट रूप से सामने आए।
26/11 का हमला पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित
मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि केस स्टडी के बाद लगभग सभी छात्र अधिकारी इस बात से सहमत थे कि 26/11 के हमले पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित थे। मैंने इसे भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा राज्य प्रायोजित आतंकवाद करार दिया। इस केस स्टडी और उसके बाद हुई चर्चा में हमारी आसूचना प्रणाली की अनेक कमजोरियां, आतंकवादियों को स्थानीय समर्थन, खराब स्थानीय सुरक्षा, सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी, राज्य स्तर पर अपर्याप्त हथियार और उपकरण तथा विधिक प्रणाली में खामियां भी सामने आईं। कुछ विदेशी छात्र अधिकारियों ने यह भी कहा कि भारत 26/11 के हमलों के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में विफल रहा , हालांकि राष्ट्रीय भावना उस वक्त ऐसा चाहती थी।
अब आतंक पर प्रहार की स्पष्ट नीति
मेरे सैन्य करियर बाद के वर्षों में, मुझे जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्व में आतंकी स्थिति से निपटने के कई अवसर मिले। मैंने देश में हो रहे नक्सल विरोधी अभियानों का भी अध्ययन और अनुसरण किया। अब भारत की आतंकवाद से निपटने और देश के भीतर और यहां तक कि हमारी सीमाओं से परे भी आतंकवादियों पर हमला करने की स्पष्ट नीति है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने न सिर्फ भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ा है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा की भी मांग की है, लेकिन यह सफल नहीं हुआ है। मेरा सुझाव है कि भारतीय संसद को आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा अपनानी चाहिए ताकि विश्व उसका अनुकरण कर सके।
मोदी सरकार ने एनआईए को दिए अधिकार
26/11 के मुंबई हमलों के मद्देनजर, 31 दिसंबर 2008 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की स्थापना की गई थी। एजेंसी ने 26/11 के हमलों के अपराधियों का पता लगाने का सराहनीय काम किया, हालांकि कागजी कार्यवाही में देरी हुई। वर्ष 2019 में मोदी 2.0 सरकार के तहत एनआईए (संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित किया गया था, जिसने इसे भारतीय नागरिकों या भारतीय हितों से जुड़े अनुसूचित अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया था जो भारत के बाहर किए गए हैं। संशोधित एनआईए अधिनियम के माध्यम से प्राप्त शक्तियों के बल पर तहव्वुर राणा को अंततः भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए प्रत्यर्पित किया गया है।
सुरक्षा को लेकर कई सुधार
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले दशक में देश की आंतरिक सुरक्षा तंत्र में बहुत सारे सुधार किए गए हैं। इनमें से कई सुधार छोटे छोटे हिस्सों में किए गए हैं। कुछ सुधार राज्य विशिष्ट भी हैं। आदर्श रूप से, आंतरिक सुरक्षा में सुधारों पर एक व्यापक समिति 26/11 के हमलों के बाद बनाई जानी चाहिए थी। यह कारगिल युद्ध के बाद जुलाई 1999 में प्रधानमंत्री वाजपेयी की सरकार द्वारा गठित कारगिल समीक्षा समिति की तर्ज पर होना चाहिए था। के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता वाली समिति ने रक्षा सुधारों पर कुछ बहुत महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं, जिस पर आज भी पालन किया जा रहा है। इसलिए, एक नई समिति अभी भी देश की आंतरिक सुरक्षा की गतिशीलता में खामियों को देख सकती है और दूरगामी सुझाव दे सकती है।
पाकिस्तान दे रहा आतंकवाद को समर्थन
मेरी राय में, तहव्वुर राणा से पूछताछ दो प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित होनी चाहिए। पहला, आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करना है, विशेष रूप से 26/11 के हमलों को ध्यान में रखते हुए। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि पाकिस्तान ने अभी भी जम्मू-कश्मीर में आतंक को समर्थन देना बंद नहीं किया है। आतंकवाद की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के रूप में पाकिस्तान के प्रभाव को भी उजागर किया जाना चाहिए। आतंकवाद के बहुआयामी आयामों को देखते हुए, कई अन्य देश भारत में आंतरिक कलह को भड़काने में शामिल हो सकते हैं। यह भी सामने आना चाहिए।
सपोर्ट सिस्टम का पर्दाफाश होना जरूरी
दूसरा फोकस स्थानीय सपोर्ट सिस्टम का पर्दाफाश करना होना चाहिए जिसने इन 10 आतंकवादियों को हिंसा के इस नृशंस कृत्य को अंजाम देने में मदद की। साजिश की गहरी परतों का पता लगाया जाना चाहिए। चूंकि योजना अन्य शहरों को भी लक्षित करने की थी, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान ने देश के भीतर ‘स्लीपर सेल’ का एक व्यापक नेटवर्क विकसित किया था। स्लीपर सेल ऐसे लोगों का एक समूह है, जो एक समुदाय में गुप्त रूप से रहता है लेकिन निर्देश दिए जाने पर आतंकी मदद करने के अवसर की प्रतीक्षा करता है। जैसा कि हाल ही में जम्मू क्षेत्र में पाया गया है, पाकिस्तान ने पूरे देश में स्लीपर सेल विकसित करना जारी रखा है। NIA और राज्य की गुप्तचर एजेंसी को इसका भी पर्दाफाश करना चाहिए।
आतंकवाद पर राजनीति की प्रवृत्ति न हो
तहव्वुर राणा को दोषी ठहराया जाना महत्वपूर्ण है और उसे कठोरतम सजा मिलनी चाहिए। लेकिन इस प्रक्रिया में एनआईए और राष्ट्र को उस बहुत जटिल और भयावह साजिश का भी पता लगाना चाहिए, जो भारत को अस्थिर करने के लिए अति सक्रिय है। इसके अलावा, डीप स्टेट की भूमिका अब एक और फेसलेस खतरा है। 26/11 के हमले के पीड़ितों को जहां न्याय मिलना चाहिए, वहीं आतंकी हमलों में दिवंगत आत्माएं भी चाहेंगी कि भारत की धरती पर इस तरह के आतंकी हमले फिर कभी न हों। तथ्यों का पता लगाए बिना आतंकवाद पर राजनीति करने की प्रवृत्ति भी निंदनीय है। तहव्वुर राणा के सफल प्रत्यर्पण का सभी देशभक्त भारतीयों को सराहना करनी चाहिए। तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण से सभी आयामों के आतंकवाद का मुकाबला करने में ‘संपूर्ण राष्ट्र दृष्टिकोण’ के प्रति राष्ट्रीय संकल्प को और मजबूत किया जाना चाहिए। जय भारत!
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