पंजाब

वीजा फ्रॉड को हल्के में न लें, इससे दुनिया में भारत की छवि प्रभावित होती है : पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इमिग्रेशन फ्रॉड के बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता जताई। तरनतारन निवासी गुरबीर सिंह की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे फ्रॉड देश की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं।

Published by
राकेश सैन

इमिग्रेशन फ्रॉड केवल सामान्य फ्रॉड, नहीं बल्कि इससे देश की छवि को धक्का पहुंचता है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इमिग्रेशन फ्रॉड के बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता जताई है। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा कि हाल के वर्षों में इमिग्रेशन से जुड़े धोखाधड़ी के अपराध चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुके हैं। उन्होंने कहा कि मासूम लोगों को विदेश में नौकरी या पढ़ाई का झांसा देकर उनकी जीवन भर की जमा-पूंजी हड़प ली जाती है।

कोर्ट ने कहा कि ऐसे फ्रॉड आमतौर पर उन एजेंटों और दलालों द्वारा चलाए जाते हैं जो कानूनी ढांचे के बाहर काम करते हैं। इन मामलों में अक्सर पीड़ितों को या तो विदेश में फंसा दिया जाता है, धोखा दिया जाता है या फिर वे कानूनी मुश्किलों में फंस जाते हैं। इन सख्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

तरनतारन निवासी ने की थी अग्रिम जमानत की मांग

इस मामले में तरनतारन निवासी गुरबीर सिंह ने अग्रिम जमानत की मांग की थी। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत केस दर्ज किया गया है। मामले में आरोप था कि आरोपी गुरबीर सिंह और उसके एक अन्य साथी ने शिकायतकर्ता से उसके बेटे को यूनाइटेड किंगडम भेजने के नाम पर भारी रकम वसूली।

शिकायतकर्ता ने बताया कि उसने गुरबीर सिंह के खाते में 7 दिसंबर 2023 से 26 जून 2024 के बीच कुल 23.50 लाख रुपये जमा किए, जो बाद में आरोपित ने रामदीप सिंह नामक सह-आरोपित को ट्रांसफर कर दिए, जिसमें से उसने अपना कमीशन भी रखा। गुरबीर सिंह की ओर से दलील दी गई कि वह सिर्फ एक ट्रैवल एजेंट है और वीजा कंसल्टेंसी से उसका कोई लेना-देना नहीं है। उसने यह भी कहा कि गुरबीर ने केवल शिकायतकर्ता को रामदीप सिंह से मिलवाया था। हालांकि कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि आरोपित सिर्फ एक माध्यम नहीं था, बल्कि लेन-देन का एक अहम हिस्सा था।

कोर्ट ने कहा कि पैसे की शुरुआत और अंत आरोपित गुरबीर सिंह के पास होता है, और जिस उद्देश्य के लिए पैसा लिया गया था, बेटे को विदेश भेजना वह भी पूरा नहीं हुआ। जस्टिस कौल ने स्पष्ट किया कि यह कहना कि आरोपित सिर्फ एक मध्यस्थ था, उसे दोष से मुक्त नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि जब पहली नजर में आरोपित धोखाधड़ी की रकम का मुख्य धारक और भागीदार प्रतीत होता है, तो उसे जांच से छूट नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस तरह का तरीका अपनाया गया है, उससे साफ है कि आरोपित की अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती। कोर्ट ने इससे पहले एक अन्य मामले में कहा कि अगर वीजा फ्राड को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह देश की वैश्विक छवि को नुकसान पहुंचा सकता है और इमिग्रेशन व्यवस्था की साख को कमजोर कर सकता है।
उस मामले में भी कोर्ट ने एजेंसियों को निर्देश दिया था कि ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता और उनकी बातों की गहराई से जांच की जाए।

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