भारत और श्रीलंका ने 4-6 अप्रैल में हुई प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान पहले औपचारिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों ने कई दशकों तक रक्षा सहयोग सहित घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंध साझा किए हैं। लेकिन एक औपचारिक रक्षा समझौता कई कारणों से नहीं हो पाया था। बांग्लादेश में विदेश नीति के बदलते आयाम और हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में चीन को आमंत्रित करने की उसकी हालिया पहल की पृष्ठभूमि में दो पारंपरिक पड़ोसियों के बीच नए रक्षा समझौते का बहुत बड़ा रणनीतिक महत्व है।
जहां तक भारत और श्रीलंका के बीच सैन्य संबंधों का सवाल है, भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) के अभियान की छवियां मुझे याद आती हैं। भारतीय सेना ने तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी से राष्ट्रपति जयवर्धने के अनुरोध के आधार पर इस द्वीप राष्ट्र में सैन्य हस्तक्षेप किया। सैन्य हस्तक्षेप को ऑपरेशन पवन नाम दिया गया था जो ढाई साल (अगस्त 1987 से मार्च 1990) से अधिक समय तक चला था। एक युवा अधिकारी के रूप में, मुझे खूंखार लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का सामना करने के लिए आईपीकेएफ के हिस्से के रूप में सेवा करने का अवसर मिला। ऑपरेशन पवन भारतीय सेना के इतिहास में सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है। इस अभियान के दौरान 1153 भारतीय सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया और अन्य 3003 सैनिक घायल हुए। इतने लंबे समय के सैन्य हस्तक्षेप के बाद भी, भारत और श्रीलंका ने औपचारिक रक्षा समझौता नहीं किया। इसे उस समय की हमारी विदेश नीति की असफलता माना जा सकता है।
मेरे लिए, पीएम मोदी की यात्रा का सबसे यादगार दिन 5 अप्रैल को कोलंबो में आईपीकेएफ मेमोरियल का दौरा था। पीएम मोदी ने वहाँ पुष्पांजलि अर्पित की और शहीद नायकों को श्रद्धांजलि दी । उन्होंने लिखा, “हम आईपीकेएफ के बहादुर सैनिकों को याद करते हैं जिन्होंने श्रीलंका की शांति, एकता और क्षेत्रीय अखंडता की सेवा में अपना जीवन लगा दिया। उनका अटूट साहस और प्रतिबद्धता हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है”। संभवत: किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली आईपीकेएफ स्मारक यात्रा है। पीएम मोदी का आईपीकेएफ मेमोरियल का दौरा निश्चित रूप से हमारे देश, खासकर युवा वर्ग को भारतीय सेना की इस अत्यंत चुनौतीपूर्ण विदेशी गाथा का स्मरण दिलाएगा।
श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके की पिछले साल 15-17 दिसंबर को भारत की यात्रा, जो उनकी पहली विदेश यात्रा थी, ने दोनों पड़ोसियों के बीच सकारात्मक पुनरुद्धार की उम्मीद जगाई । इस यात्रा में काफी गर्मजोशी और आतिथ्य देखा गया। उस समय, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के साथ विस्तृत चर्चा की थी और दोनों ने मीडिया को भी संबोधित किया था। श्री मोदी ने श्रीलंका की पारस्परिक यात्रा का निमंत्रण भी स्वीकार कर लिया था।
श्री दिसानायके की यात्रा के बाद भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंध और मजबूत हुए हैं। भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और अब तक, भारत ने श्रीलंका को 5 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट दी है। आर्थिक संबंध शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, मत्स्य पालन, सौर ऊर्जा और डिजिटलीकरण पर जोर देते हुए लोगों से लोगों से जुड़ने पर केंद्रित हैं। पीएम मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण को भी रेखांकित किया जो संबंधों में एक नई गति और ऊर्जा लाएगा।
भारत और श्रीलंका के बीच रक्षा सहयोग और दोनों देश की सेनाओं का सहयोग मजबूत हुआ है। भारत अपने कई प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों में श्रीलंकाई सशस्त्र बलों के अधिकारी कैडर और जूनियर नेतृत्व को प्रशिक्षित करता है। हालांकि चीन और पाकिस्तान श्रीलंका को सैन्य सहयोग के लिए लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस द्वीप राष्ट्र ने भारत पर सबसे अधिक भरोसा किया है। एक औपचारिक रक्षा समझौते के साथ, दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को अगले स्तर तक बढ़ाया जा सकता है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति ने इस वर्ष जनवरी में चीन की यात्रा की थी। आईओआर में चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए श्रीलंका महत्वपूर्ण है। श्रीलंका चीन की बेल्ट एंड रोड एग्रीमेंट (बीआरआई) का भी हिस्सा बना, जिसमें इस क्षेत्र में भारत की सुरक्षा चिंताओं को को बढ़ा दिया है। लेकिन अब पूरा दक्षिण एशियाई क्षेत्र और श्रीलंकाई नेतृत्व चीन की आर्थिक ऋण जाल नीति से अवगत है। श्री लंका भी समझ गया है अंततः उसे भारत पर अधिक भरोसा है। इसलिये भारत और चीन के बीच श्रीलंका नेत्रत्व द्वारा संतुलन बनाने का काम किया गया है। पिछले साल अगस्त में शेख हसीना सरकार को सत्ता से बेदखल करने के बाद बांग्लादेश की ढुलमुल नीति के कारण भारत अपने पड़ोस में और अधिक अशांति बर्दाश्त नहीं कर सकता।
यह एक तथ्य है की पिछले पांच वर्षों में भारत-श्रीलंका संबंधों को चीन की चुनौती का सामना करना पड़ा है। आईओआर पर हावी होने के लिए ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ की नीति को आगे बढ़ाने के लिए श्रीलंका चीन के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य बना हुआ है। श्रीलंका द्वारा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह का चीन को 99 साल के लिए लीज पर दिया जाना भारत की चिंताओं के लिए बड़ी समस्या बन गया है। श्रीलंका भी 2021 के उत्तरार्ध में एक बड़े आर्थिक संकट से गुजरा और फिर भारत ने वर्ष 2022 में 4 बिलियन डॉलर की सहायता के साथ आर्थिक रूप से इस देश को बेल आउट किया। इसने एक बार फिर श्री लंका को भारत के पक्ष में लाकर खड़ा कर दिया। श्रीलंका के निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने वर्ष 2023 में सहमति व्यक्त की कि श्रीलंका अपने क्षेत्र को भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा। लेकिन हाल के दिनों में श्रीलंका की समुद्री सीमा के आसपास ‘अनुसंधान पोतों’ की आड़ में चीनी समुद्री जहाजों की उपस्थिति भारत के लिए प्रमुख सुरक्षा चिंता का कारण रही है।
इस लिए यह बहुत जरूरी था की नया रक्षा सहयोग समझौता हो जो इस कठिन समय में द्विपक्षीय संबंधों और सामरिक सुरक्षा को और मजबूती प्रदान करे। यह समझौता आईओआर में दोनों देशों की साझा रणनीतिक दृष्टि को दर्शाता है और सुरक्षा और रणनीतिक मुद्दों पर बढ़ती निर्भरता को उजागर करता है। भारत ने श्रीलंका में विभिन्न राजनीतिक विचारधारा के साथ रुख में बार-बार बदलाव को रोकने के लिए एक औपचारिक समझौते पर जोर दिया है और इस प्रकार यह भारतीय विदेश मंत्रालय के लिए एक बड़ी राजनयिक उपलब्धि है। भारत रक्षा हार्डवेयर के एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभरा है और इस प्रकार दोनों देशों के पास बेहतर तालमेल के लिए अनुकूल रक्षा उपकरण (मेड इन इंडिया) होने चाहिए। भारत को अब चीनी और पाक सैन्य हार्डवेयर पर श्रीलंका की निर्भरता कम करने का प्रयास करना चाहिए।
रक्षा सहयोग समझौते में संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण कार्यक्रम और उच्च स्तरीय आदान-प्रदान शामिल हैं। यह इस विचार को पुष्ट करता है कि दोनों देशों की सुरक्षा आपस में जुड़ी हुई है। एक दूसरे की सुरक्षा चिंताओं का सम्मान करने और तत्काल और दीर्घकालिक खतरों से समझौता करने वाली किसी भी गतिविधि की अनुमति नहीं देने का व्यापक ढांचा इस सौदे का एक और आकर्षण है। अन्य विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए हैं लेकिन वह भी ब्लू प्रिंट का हिस्सा होंगे। अपने भाषण में राष्ट्रपति दिसानायके ने पुनः आश्वस्त किया कि श्रीलंका की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं किया जाएगा।
आईओआर में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए भारत को भूटान जैसे विश्वसनीय पड़ोसी की जरूरत है। जिस तरह भूटान हिमालय में चीनी खतरे से निपटने के लिए भारत के साथ खड़ा रहा है, उसी तरह भारत को अपने समुद्री (आईओआर) क्षेत्र में भी उतना ही भरोसेमंद पार्टनर चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की श्रीलंका यात्रा के बाद संबंधों में प्रगाढ़ता भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति में एक नया अध्याय जोड़ती है। भारत और श्रीलंका के बीच रक्षा सहयोग समझौते में एक सुरक्षित पड़ोस के साथ दोनों देशों में अधिक शांति, विकास और समृद्धि लाने की क्षमता है। यह ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में भारत की स्थिति को भी मजबूत करता है। जय भारत!
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