अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव ने एक नया मोड़ ले लिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयातित वस्तुओं पर 104 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। ट्रंप के विभिन्न देशों पर मोटा टैरिफ लगाने के कदम ने पिछले कुछ दिनों से वैश्विक व्यापार में हलचल मचाई हुई है। इन परिस्थितियों में चीन को भारत याद आ रहा है। बीजिंग ने टैरिफ के धुंधलके से बाहर निकलने में मदद के लिए भारत से गुहार की है। चीन के प्रवक्ता यू जिंग ने भारत से अपील की है कि भारत और चीन, दोनों मिलकर इस चुनौती का सामना करें।
अमेरिका द्वारा लगाए गए इस टैरिफ का उद्देश्य बेशक, चीन पर दबाव बनाना और अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना है। और यह भी सच है कि अमेरिका की इस नीति ने चीन की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है। चीन ने इसे “ग्लोबल साउथ’ यानीर वैश्विक दक्षिण के देशों के विकास के अधिकार पर हमला बताया है। बीजिंग इसे संरक्षणवाद का उदाहरण बता रहा है।
चीन ने भारत को भी “वैश्विक दक्षिण” का अंग बताते हुए कहा है कि दोनों देशों को एकजुट होकर अमेरिका के इस कदम का विरोध करना चाहिए। चीनी प्रवक्ता यू जिंग ने कहा है कि भारत और चीन दोनों विकासशील देश हैं और इस तरह के टैरिफ से उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने बहुपक्षीयता और वैश्विक व्यापार के सिद्धांतों का समर्थन करने की अपील की।

हालांकि भारत ने अभी तक इस मामले में कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है। साथ ही, भारत और अमेरिका के बीच एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बात भी चल रही है, जो दोनों देशों के लिए लाभकारी हो सकता है। भारत की केन्द्र सरकार ने टैरिफ का जवाब टैरिफ से देने के बजाय बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने की नीति अपनाई है।
उल्लेखनीय है कि इस ‘टैरिफ युद्ध’ का प्रभाव केवल अमेरिका और चीन तक सीमित नहीं है। यह वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल रहा है। अर्थ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता और यह सभी पक्षों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
बेशक, अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव ने वैश्विक व्यापार को एक कठिन दौर में ला खड़ा किया है। चीन की भारत से मदद की गुहार ने इस मुद्दे को और भी जटिल बना दिया है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इस स्थिति में क्या कदम उठाता है और यह टैरिफ युद्ध वैश्विक व्यापार को किस दिशा में ले जाता है।
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