ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर का कहना है कि दुनिया को वैश्वीकरण से कदम वापस खींचने की जरूरत है। अमेरिकी टैरिफ से उपजे ‘संकट’ को देखते हुए अनेक देश वैश्वीकरण को अब अपने लिए सही नहीं मान रहे हैं और ब्रिटेन ऐसे ही देशों में से एक है। हालांकि यह बात भी सही है कि वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) ने पिछले कुछ दशकों में दुनिया को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आदान-प्रदान का एक ऐसा माध्यम रहा है जो देशों को एक-दूसरे के करीब लाया है। लेकिन हाल के वर्षों में, वैश्वीकरण के खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं, और इसे “डिग्लोबलाइजेशन” या “वैश्वीकरण का अंत” कहा जा रहा है। स्टार्मर के इस संबंध में दिए ताजा बयान ने इस बहस को और तेज कर दिया है। अगर देशों को घरेलू जरूरत के उत्पादों के लिए अपने देश के अंदर ही झांकना पड़ा तो भारत अपने मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के बूते अपनी जरूरत खुद पूरी करने की स्थिति में होगा। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि ही है जो भारत को वैश्विक आर्थिक भंवर से बचाए हुए है।

वैश्वीकरण ने व्यापार, तकनीकी विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है। लेकिन इसके साथ ही, आर्थिक असमानता, स्थानीय उद्योगों पर दबाव और सांस्कृतिक पहचान के नुकसान जैसी चुनौतियां भी सामने आई हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ लगाने के फैसले को संरक्षणवाद (प्रोटेक्शनिज्म) के रूप में देखा जा रहा है। उनका मानना है कि टैरिफ से अमेरिका के व्यापार घाटे को कम किया जा सकता है और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सकता है। लेकिन इस कदम ने वैश्विक व्यापार में अस्थिरता पैदा की है और कई देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को प्रभावित किया है।
‘डिग्लोबलाइजेशन’ का मतलब है कि देश अब वैश्विक व्यापार और सहयोग से पीछे हट रहे हैं। यह प्रवृत्ति ‘ब्रेक्जिट’, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और अन्य संरक्षणवादी नीतियों में देखी जा सकती है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भी कहा है कि वैश्वीकरण अब बहुत से लोगों को फायदा नहीं पहुंचा पा रहा है, और उनका यह बयान वैश्वीकरण के अंत की ओर इशारा करता है।
जैसा पहले बताया, भारत ने वैश्वीकरण से काफी लाभ उठाया है, खासकर 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद। लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में, भारत को आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहयोग के बीच संतुलन बनाना होगा। यहां यह कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण का अंत नहीं हो रहा है, लेकिन यह एक नए रूप में विकसित हो रहा है। विभिन्न देशों को चाहिए कि वे वैश्विक सहयोग और स्थानीय विकास के बीच संतुलन बनाएं। संरक्षणवाद और ‘डिग्लोबलाइजेशन’ की चर्चाओं के बीच वैश्वीकरण की मूल भावना—सहयोग और समन्वय—आज भी प्रासंगिक है।
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