भारत-बांग्लादेश सीमा पर घुसपैठ रोकने के लिए बाड़बंदी का काम 75 प्रतिशत पूरा
भारत में जनसांख्यिकीय बदलाव के लिए पाकिस्तान और उसके पूर्वी हिस्से से बना बांग्लादेश शुरू से ही षड्यंत्र रचते आ रहे हैं। इन देशों के करोड़ों घुसपैठिए देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं। उनकी घुसपैठ रोकने के लिए भारत सरकार ने कानून तो बनाया ही है, राज्य भी इनके खिलाफ अभियान चलाते रहते हैं। हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने चेतावनी भी दी है कि ‘भारत को धर्मशाला नहीं बनने देंगे।’ कानून बनने और गृह मंत्री की दो टूक चेतावनी के बाद भी इसके परिणाम कितने सार्थक होंगे, यह आज नहीं कहा जा सकता। देशभर में घुसपैठियों का नेटवर्क है। जितनी दुनिया के कई देशों की जनसंख्या नहीं है, उतने भारत में घुसपैठिए हैं। अलग-अलग एजेंसियों ने घुसपैठियों के अलग-अलग आंकड़े बताए हैं। किसी ने तीन करोड़ तो किसी ने पांच करोड़।
भारत में घुसपैठ स्वतंत्रता के ठीक बाद से चल रही है। ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो आधा परिवार भारत में छोड़ गए, ताकि उनकी संपत्ति भी सुरक्षित रहे और भारत के रूपांतरण का कुचक्र भी चलता रहे। जिन्ना एक पत्नी को लेकर गए, लेकिन बेटी को यहीं छोड़ गए। पर कहानी ऐसी प्रचारित हुई मानो जिन्ना की बेटी ने विद्रोह कर दिया हो। पाकिस्तान समर्थक भोपाल नबाब हमीदुल्लाह खान की भी एक बेटी पाकिस्तान गई और एक बेटी भोपाल में संपत्ति सहेजे रही और वे स्वयं आते-जाते रहे। मुस्लिम लीग के कोटे से संविधान सभा में पहुंचे असम के योगेंद्र नाथ मंडल की भी यही कहानी है। मुस्लिम लीग और पाकिस्तान समर्थकों की रणनीति से भारत में उनके सभी मजहबी स्थल, मदरसे, मजार, दरगाह व अधिकांश लोगों की संपत्ति भी सुरक्षित रही। यही नहीं, पाकिस्तान जाने वालों की संपत्ति की सुरक्षा के लिए गांधी जी ने 13-18 जनवरी, 1948 तक दिल्ली में अनशन किया।
बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने दो स्तर पर अभियान चलाए। पहला, अपने क्षेत्र से हिंदुओं को मार कर भगाना, उनकी संपत्ति छीनना या उनका कन्वर्जन कराना। दूसरा, भारत की भूमि पर कब्जा करना। इसे भोपाल, जूनागढ़ और हैदराबाद रियासत के शासकों की भूमिका और कश्मीर पर कबाइलियों के हमले से समझा जा सकता है। कश्मीर के बड़े भाग पर आज भी पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। घुसपैठियों के लिए पहले कश्मीर व नेपाल सीमा मुख्य मार्ग हुआ करती थी। बांग्लादेश सीमा से घुसपैठ में तेजी 1971 के बाद आई। घुसपैठियों को भारत-पाकिस्तान युद्ध के रूप में एक बहाना मिला और करोड़ों लोग युद्ध शरणार्थी बनकर भारत में घुस आए। इस युद्ध में जितने ‘शरणार्थी’ भारत आए, उतने दुनिया के किसी युद्ध में नहीं देखे गए। 17 दिन चले उस युद्ध की समाप्ति और बांग्लादेश बनने के बाद ‘शरणार्थियों’ को अपने देश लौटना था, लेकिन अधिकांश यहीं रह गए, क्योंकि वे ‘शरणार्थी’ नहीं थे। वे भारत के जनसांख्यिक परिवर्तन की योजना के तहत आए थे। इसी के साथ बांग्लादेश की सीमा से घुसपैठ तेज हो गई। उनमें रोहिंग्या भी शामिल हो गए। आज बांग्लादेश व म्यांमार से सटी भारतीय सीमा के हर गांव और नगर की जनसांख्यिकी बदल चुकी है।
एक अनुमान के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 57 लाख और असम में 50 लाख से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए बस गए हैं। उनके पास आधार कार्ड और अन्य सभी आवश्यक दस्तावेज हैं। असम के बरपेटा, धुबरी, दरांग, नौगांव, करीमगंज, दरंग, मोरीगांव, बोंगाईगांव, गोलपाड़ा और हेलाकांडी जिलों में मुस्लिम आबादी 50 से 80 प्रतिशत तक हो गई है। नलबाड़ी, कछार और कामरूप में भी पांथिक संख्या में भारी बदलाव आया है। इन घुसपैठियों के कारण राज्य के 45 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व हो गया है। इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल के मालदा, दिनाजपुर, नवाबगंज, मुर्शिदाबाद और 24-परगना जिलों में घुसपैठियों का बोलबाला हो गया है। ये इतने आक्रामक है कि उनके भय से हिंदू पलायन करने लगे हैं। बिहार के अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जैसे सीमाई जिलों में भी मुस्लिम आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। आशंका है कि बांग्लादेश के रास्ते घुसपैठ करने वालों में पाकिस्तानी भी हो सकते हैं, जो आईएसआई की योजना के तहत आए हैं।
किशनगंज में मुस्लिम 67.58 प्रतिशत हो गए हैं, जबकि हिंदू 31.43 प्रतिशत। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने एक रिपोर्ट में झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठ के प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। रिपोर्ट में क्षेत्र की जनसांख्यिकी में बदलाव का कारण घुसपैठ बताया गया है। इसे लेकर सड़क से संसद तक आवाजें उठ चुकी हैं। समय-समय पर कई एजेसियों ने आकंड़े भी जारी किए हैं। 2000 में भारत सरकार के तत्कालीन गृह सचिव माधव गोडबोले ने एक रिपोर्ट में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या लगभग डेढ़ करोड़ बताई थी, जबकि अन्य एजेंसियों ने यह संख्या ढाई से तीन करोड़ बताई थी। 2014 में सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने घुसपैठियों की अनुमानित संख्या 5 करोड़ बताई थी। इन घुसपैठियों ने भारत की लगभग 30 लोकसभा और 140 से अधिक विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव बना लिया है। दिल्ली में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या 6-8 लाख मानी जा रही है। इनके पास भारतीय पहचान पत्र भी हैं।
2002 में कोलकाता में आईएसआई के कुछ एजेंट पकड़े गए थे। उन्होंने खुलासा किया था कि भारत से लगी बांग्लादेश सीमा में आईएसआई के प्रशिक्षण केंद्र हैं, जिनमें आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है। फिर भारत में अशांति पैदा करने के लिए उनकी घुसपैठ कराई जाती है। भारतीय सनातन समाज के संवेदनशील स्वभाव और शरणार्थियों को लेकर भारत सरकार के ‘उदार’ प्रावधानों का लाभ उठाकर ये घुसपैठिए केवल अपराध को ही अंजाम नहीं देते, बल्कि समाज जीवन में अशांति पैदा करने का कुचक्र भी करते हैं। हाल में अभिनेता सैफ अली खान पर जिसने हमला किया था, वह 6 माह पहले नदी पार करके भारत में घुसा था। उसके पास दस्तावेज भी थे, जो पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में बने थे। उसका वास्तविक नाम शरीफुल इस्लाम था, जो नाम बदल कर रह रहा था। हिंदू नाम से अपराध करने वाला यह पहला घुसपैठिया नहीं था।
2000 में भारतीय समाज जीवन में अशांति फैलाने की चार बड़ी घटनाएं हुई थीं। पश्चिम बंगाल के चर्च में महिला ईसाई प्रचारक की हत्या तथा दिल्ली, कानपुर एवं लखनऊ में कुरान का पन्ना जलाने की घटनाओं में गिरफ्तार होने वाले बांग्लादेशी घुसपैठिए थे और नाम बदलकर रह रहे थे। अभी गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर जितने घुसपैठिए पकड़े गए हैं, उनमें अधिकांश हिंदू नाम वाले हैं। दिल्ली में फर्जी दस्तावेज और नकली पहचान पत्र बनाने वाला गिरोह भी पकड़ा गया। इस गिरोह के 11 लोगों में 5 बांग्लादेशी और 6 भारतीय हैं। इसी वर्ष मार्च में दिल्ली पुलिस ने जहांगीरपुरी से 6 बांग्लादेशी घुसपैठियों को गिरफ्तार किया, जो किन्नर बनकर रह रहे थे। ये सड़कों पर भीख मांगते थे और हिंदू नाम रखे हुए थे। सभी बांग्लादेश के बरगुना, गाजीपुर और नौगांव के रहने वाले हैं। ये एजेंट के माध्यम से भारत में अवैध तरीके से आए थे। इसके बाद ट्रेन से दिल्ली आए।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ अभियान चलाने के निर्देश दिए थे। चुनाव आयोग की सतर्कता व एलजी के आदेश के कारण दिल्ली में 200 से अधिक घुसपैठियों की पहचान हुई। बीते दिनों दिल्ली में 30 घुसपैठिए गिरफ्तार किए गए। ये दुर्गापुर के रास्ते भारत में घुसे थे। अभी तक दिल्ली पुलिस ने 58 से अधिक बांग्लादेशियों को निर्वासित और 8 को गिरफ्तार किया है। केरल में भी आए दिन बांग्लादेशी घुसपैठिए पकड़े जा रहे हैं। इनमें कई आतंकी हमलों में संलिप्त पाए गए हैं। महाराष्ट्र, ओडिशा, असम सहित अन्य राज्यों में भी घुसपैठिए पकड़े गए हैं। इनके पास से फर्जी दस्तावेज मिले हैं। 2022 में मुंबई पुलिस ने 147 घुसपैठियों को गिरफ्तार किया था, जिनमें से 21 को वापस भेजा गया। 2023 में 36 घुसपैठियों को गिरफ्तार किया गया था। हाल के वर्षों में महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। बीते तीन वर्ष में लगभग 696 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया जा चुका है। भुवनेश्वर में रेलवे स्टेशन से 10 बांग्लादेशी गिरफ्तार किए गए थे। इस वर्ष शुरुआती दो माह में भारत-बांग्लादेश सीमा पर 176 बांग्लादेशी घुसपैठिए पकड़े गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार शरणार्थी और घुसपैठिए में अंतर किया गया और राष्ट्र व संस्कृति को बचाने के लिए घुसपैठ रोकने का अभियान चलाया गया है। 2019 में शरणार्थी संशोधन विधेयक पारित किया गया, जिसमें शरणार्थियों की परिभाषा स्पष्ट की गई। अब सरकार घुसपैठ रोकने के लिए नया संशोधन विधेयक लेकर आई तो कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस इसे भी मौलिक अधिकारों का हनन बता रही है।
अप्रवासी और विदेशी घुसपैठ विषयक यह विधेयक गत 27 मार्च को लोकसभा में पारित हो गया। इसमें कुल 36 धाराएं हैं। अब विदेश से आने वाले हर नागरिक का पूरा विवरण रखा जाएगा, ताकि वीजा अवधि बीतने पर उसे पकड़कर वापस भेजा जा सके। गृहमंत्री के अनुसार, जो लोग देश के लिए खतरा पैदा करते हैं, उनसे गंभीरता से निपटा जाएगा।
सरकार का कहना है कि विदेशियों से जुड़े मामलों को विनियमित करने के लिए केंद्र के पास वीजा व पंजीकरण जैसी शक्तियां होनी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा-संप्रभुता के लिए यह कानून आवश्यक है। देश में प्रवेश के लिए चार मौजूदा कानूनों में से दो ब्रिटिश काल के हैं। यानी अब घुसपैठ और फर्जी दस्तावेज के सहारे नागरिकता हासिल करना आसान नहीं होगा। विधेयक में घुसपैठ पर पांच साल कैद और पांच लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। फर्जी पासपोर्ट या दस्तावेज के जरिये भारत में प्रवेश करने पर यह सजा पांच साल से बढ़ाकर सात साल कर दी गई है। जुर्माने की रकम एक लाख से दस लाख रुपये तक हो सकती है। पहले घुसपैठ पर सामान्य सजा और 50,000 रुपये जर्माने का प्रावधान था। विधेयक में आव्रजन विभाग को पहले के मुकाबले अधिक शक्तियां दी गई हैं। अब विदेशियों के प्रवेश या निष्कासन पर आव्रजन अधिकारियों का निर्णय ही अंतिम माना जाएगा।
गत 27 मार्च को लोकसभा में आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025 पर हुई चर्चा के जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को आड़े हाथ लिया। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार सीमा सुरक्षा में सहयोग नहीं कर रही है और घुसपैठियों को नागरिकता व पहचान-पत्र भी दे रही है। फिर वही आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र लेकर घुसपैठिए दिल्ली सहित दूसरे राज्यों में घुस जाते हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार की निष्क्रियता के कारण ही घुसपैठ की समस्या बढ़ी है। उन्होंने कहा कि भारत की 2,216 किलोमीटर सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है। इनमें 1,653 किमी. तक बाड़ लग चुकी है, जबकि 563 किमी. आज भी खुली है। इसमें 112 किमी. सीमा नदी, पहाड़ आदि से निर्धारित है, जहां बाड़ लग ही नहीं सकती। शेष 450 किमी की बाड़बंदी का काम इसलिए लंबित है, क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार इसके लिए भूमि नहीं दे रही। केंद्रीय गृह सचिव राज्य के मुख्य सचिव के साथ सात बैठकें कर चुके हैं। गृहमंत्री का वक्तव्य इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को फजी दस्तावेज उपलब्ध कराने वालों में तृणमूल-कांग्रेस के कार्यकर्ता भी हैं।
घुसपैठियों के तार पाकिस्तान-बांग्लादेश के आतंकियों-कट्टरपंथियों, आईएसआई और यहां तक कि चीनी माओवादियों से भी जुड़े होते हैं। करोड़ों की संख्या में देश में मौजूद घुसपैठिए आतंकवाद, अलगाववाद और सामाजिक अशांति जैसी समस्याएं खड़ी तो कर ही रहे हैं, भारत के संसाधनों को भी निगल रहे हैं। यह स्थिति इसलिए बनी, क्योंकि पूर्ववर्ती सरकारों ने शरणार्थी और घुसपैठिए में अंतर नहीं किया। संविधान के अनुच्छेद-21 में शरणार्थियों को वापस न भेजने का प्रावधान है। घुसपैठ रोकने के लिए ब्रिटिश काल में चार कानून बने थे। अंग्रेज भले चले गए, पर उनके बनाए कानून बने रहे। इन कानूनों में घुसपैठ रोकने का कोई प्रभावी प्रावधान नहीं था। इसके अतिरिक्त, कुछ राजनीतिक दल तुच्छ स्वार्थ के लिए घुसपैठियों को बसाने में सहयोग करते रहे। लेकिन घुसपैठ के इस नासूर को रोकने के लिए उठने वाला हर कदम स्वागत योग्य है।
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