प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक और लेखक, साहित्यकार डा. सूर्यकांत बाली जी का निधन हो गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गहरी संवेदना व्यक्त की है। सूर्यकांत बाली जी की लेखनी में राष्ट्र और राष्ट्र के मुद्दे साफ झलकते थे। उन्होंने राष्ट्रीय चिंतन को नई धार दी। वह दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक थे, नव भारत टाइम्स के संपादक भी थे। इसके बाद स्वतंत्र लेखन उनके जीवन का हिस्सा रहा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने डॉ बाली के निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है। उन्होंने शोक संदेश में कहा कि प्रख्यात लेखक, साहित्यकार डा. सूर्यकांत बाली जी के देहावसान का दुःखद समाचार है। डॉक्टर सूर्यकांत बाली ने अपने प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन से हिन्दी साहित्य का पोषण किया। उनकी रचनाओं से साहित्यिक व पत्रकारिता के क्षेत्र में नई रोशनी आयी। हिंदी और संस्कृत भाषा के वे मूर्धन्य ज्ञाता थे। डॉ. बाली की विद्वत्ता के प्रति आदर व सम्मान से मैं नतमस्तक हूं। उनकी स्मृति में भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान करें। उनके परिवारजनों एवं मित्रों को मेरी गहरी संवेदनाएं। ईश्वर शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करे।
सूर्यकांत बाली का जन्म 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अविभाज्य भारत) में हुआ था। हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. की। बाद में अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ा। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ हैं। उन्होंने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया, इनके नाम हैं ‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। नवभारत टाइम्स में रविवार्ता में भारत के मील पत्थर पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा। यह ‘भारतगाथा’ पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुंचा।
टिप्पणियाँ