मोरों की चीखें, हिरणों की लाशें: हैदराबाद जंगल विनाश पर एक्टिविस्ट क्यों चुप?
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मोरों की चीखें, हिरणों की लाशें : हैदराबाद में जंगल विनाश पर कथित एक्टिविस्ट क्यों चुप.?

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास 400 एकड़ जंगल में IT पार्क निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई और वन्यजीवों की मौत ने पर्यावरणीय संकट खड़ा किया है। सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, लेकिन अब तक हो चुका है भारी नुकसान। मीडिया और कथित पर्यावरण एक्टिविस्ट क्यों रहे खामोश?

by सोनाली मिश्रा
Apr 5, 2025, 05:15 pm IST
in भारत, तेलंगाना
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सोशल मीडिया पर एक तस्वीर और एक वीडियो बहुत वायरल हुआ। न ही वह तस्वीर एक आम व्यक्ति देख सकता है और न ही वह वीडियो एक आम व्यक्ति सुन सकता है। वह तस्वीर भी आँखों में आँसू लाने वाली है और वीडियो तो सुना ही नहीं जा सकता है। उस वीडियो से आती आवाजें किसी भी व्यक्ति का कलेजा चीर देने के लिए पर्याप्त हैं।

वे आवाज़ें उन मूक प्राणियों की हैं, जिनकी पीड़ा मानव अपने विकास की दौड़ में भूल चुका है या कहें कि न ही देखता है और न ही सुनता है। नेताओं को ये पक्षी और पशु तो वोट देते नहीं हैं, कि उनकी पीड़ा को सुना जाए या समझा जाए।

और ससबे बढ़कर यह कि यदि ये मूक पशु और पक्षी किसी गैर-भाजपा शासित राज्यों में मारे जा रहे हों, तो लाखों हत्याओं के बाद ही पीड़ा सामने आ पाती है। मीडिया और कथित एक्टिविस्ट ऐसे चुप रह जाते हैं कि जैसे कुछ हुआ ही न हो। ये चीखें, ऐसे परदे में चली जाती हैं, जहां से बाहर ही नहीं आ पाती हैं। हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने मीडिया को काफी धमकाया भी था, तो क्या यही कारण था कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास 400 एकड़ में फैले जंगल में आईटी पार्क बनाने के लिए बुलडोजर आ गए और चलने लगे मगर कोई खबर बाहर नहीं आई।

बुलडोजर आए तो छात्रों ने विरोध किया। लड़के और लड़कियां सभी पुलिस से भिड़ गए, लड़कियों के कपड़े तक फट गए और छात्रों को डंडों से पीटा। छात्रों को जेल ले जाया गया और छात्राओं को भी जेल ले जाया गया। ये सारे समाचार मीडिया में उस तेजी से नहीं दिखाए गए, जिस तेजी से मुंबई में आरे गार्डन वाला आंदोलन दिखाया गया था।

कोई भी पर्यावरण एक्टिविस्ट छात्रों की इस पिटाई पर या छात्राओं के कपड़े फाड़े जाने पर भी नहीं सामने आया और मोर, हिरणों आदि की लाशों की तस्वीरें सामने आने पर भी विरोध के वे स्वर दिखाई नहीं दिए, जो ऐसे किसी भी अवसर पर सुनाई देते हैं।

मोरों और अन्य पक्षियों के क्रंदन का वीडियो आत्मा तक सिहरा देता है। ऐसा क्रंदन, ऐसा क्रंदन तभी होता है जब किसी का पूरा संसार नष्ट हो रहा हो। पक्षियों और पशुओं का संसार ये जंगल ही तो हैं। विकास के नाम पर इस सीमा तक अतिक्रमण हो गया है कि पशुओं के पास अपना आवास ही नहीं है। और अचानक से इस प्रकार किसी का आवास तोड़ना यह तो क्रूरता की पराकाष्ठा है।

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस जघन्य घटना का संज्ञान लेते हुए गुरुवार को हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास भूमि पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही पर रोक लगा दी है, परंतु तब तक 25% जंगल काटा जा चुका था। अर्थात सौ एकड़ में रहने वाले पशु और पक्षी या तो मारे जा चुके थे या फिर बेघर हो चुके थे।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राज्य में पेड़ों की कटाई को बहुत गंभीर बताया। पीठ ने कहा- तेलंगाना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार की रिपोर्ट इसकी खतरनाक तस्वीर दिखाती है। रिपोर्ट से पता चलता है कि बड़ी संख्या में पेड़ काटे गए हैं।

उन्होनें तेलंगाना सरकार से यूनिवर्सिटी की जमीन पर इतनी तेजी से काम करने को लेकर भी जबाव मांगा है। उन्होनें पूछा कि इस प्रकार की गतिविधि करने से पहले क्या सरकार ने पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का आँकलन प्रमाणपत्र लिया है?

यद्यपि रोक लग गई है, परंतु फिर भी न ही मीडिया और न ही एक्टिविस्ट इस जबावदेही से बच सकते हैं कि जब विनाश का यह नंगा नाच चल रहा था, तो उनकी प्रतिबद्धता कहाँ थी? वे न ही इस अत्याचार का प्रतिरोध कर रहे छात्रों के साथ खड़े रहे और न ही उन निरीह पशुओं के साथ? तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इस बात से इनकार किया था कि वहाँ पर जंगली और संरक्षित जीव भी हैं।

क्या यह मुद्दा केवल हैदराबाद यूनिवर्सिटी का मुद्दा है या फिर यह उन लाखों जीवों के प्रति संवेदनशीलता का मुद्दा है? यदि लाखों जीवों के जीवन का प्रश्न है तो फिर नागरिक समाज की वे मुखर आवाजें कहाँ हैं, जो निरंतर ही ऐसे अवसरों पर उठती रही हैं। मोर चीख रहे थे और हिरण गिर रहे थे। हिरणों के भागने की जो तस्वीरें सोशल मीडिया पर आम लोगों के दिलों को पीड़ा से भर रही हैं, वे तस्वीरें उन्हें पीड़ा से क्यों नहीं भर पाईं, जिनपर इन सभी के लिए आवाज उठाने की जिम्मेदारी होती है।

इतनी बड़ी घटना को लेकर भी आक्रोश क्यों नहीं दिखाई दिया? चुनिंदा आक्रोश पर प्रश्न उठ रहे हैं। परंतु सबसे अधिक प्रश्न तो प्रशासन और अधिकारियों पर उठ रहे हैं कि चार सौ एकड़ में फैले जंगल को बिना किसी आँकलन रिपोर्ट के, बिना जीवों को कहीं और बसाए जाने की व्यवस्था के इस प्रकार काटा कैसे जा सकता है?

क्या लोकतंत्र में मात्र मानव ही सम्मिलित है, प्रश्न उठता है कि क्या निरीह पशु जो वोट नहीं दे सकते हैं, उनका इस कथित लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है?

और उससे भी बढ़कर यह कि कैसे लंबी छुट्टी का फायदा उठाकर इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों को काट दिया गया? केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है और सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर तत्काल रोक लगाकर अगली सुनवाई 16 अप्रेल को रखी है।

Topics: Telangana IT Park Protestसुप्रीम कोर्ट पर्यावरण आदेशTelangana Revanth Reddy ProtestWildlife Destruction HyderabadEnvironment Clearance ViolationStudents Lathi Charge Telanganaमोर हिरण की हत्या जंगलहैदराबाद यूनिवर्सिटी जंगल विवादHyderabad University Forest Demolition
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