देहरादून। नैनीताल हाई कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार द्वारा की जा रही अवैध मदरसों पर कार्रवाई पर निर्देशित किया है कि बिना मान्यता के मदरसे संचालित नहीं होंगे। वहीं, यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा है। उच्चतम न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए इसे अन्य राज्यों के चल रहे मदरसों के मामलों के साथ उत्तराखंड के मामलों पर सुनवाई करने के निर्देश दिए हैं।
उधर, नैनीताल हाई कोर्ट ने देहरादून के विकास नगर स्थित इनामुल उलूम सोसाइटी को अंतरिम राहत देते हुए राज्य सरकार को सोसाइटी द्वारा संचालित भवन की सील खोलने का निर्देश दिया है। हालांकि, कोर्ट ने यह शर्त रखी है कि याचिकाकर्ता बिना सरकारी मान्यता के कोई मदरसा संचालित नहीं करेगा।
न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने सोसाइटी के अध्यक्ष जुबेर अहमद की याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि सरकार ने गैर-कानूनी तरीके से सोसाइटी के परिसर को सील कर दिया है। वहीं, राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने बताया कि याचिकाकर्ता बिना मान्यता के मदरसा चला रहा था, जो नियमों का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी कि यदि सोसाइटी अपने उद्देश्यों से अलग कोई गतिविधि कर रही थी, तब भी बिना सुनवाई का मौका दिए संपत्ति को सील करना अनुचित है। वहीं, सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि यदि सील खोली जाती है, तो याचिकाकर्ता फिर से इसी तरह की गतिविधियों में लिप्त हो सकता है।
इस पर याचिकाकर्ता ने कोर्ट को भरोसा दिया कि वह बिना मान्यता के मदरसा नहीं चलाएंगे। मामले की अगली सुनवाई 11 जून को होगी।
सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई
उत्तराखंड में अवैध मदरसों पर हो रही कार्रवाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। राज्य सरकार बिना किसी मान्यता के चल रहे मदरसों को बंद कर रही है। इसके खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद ने आवेदन दाखिल किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे देश भर के मदरसों को लेकर पहले से लंबित याचिका के साथ जोड़ दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने शुरू में कहा कि मदरसों में दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षा के अधिकार कानून की स्थिति या उनकी फंडिंग को लेकर जानकारी मांगने में कुछ गलत नहीं दिखता। अगर याचिकाकर्ता को कोई समस्या है, तो वह हाई कोर्ट जा सकता है। जमीयत के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इसका विरोध करते हुए पिछले साल आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया।
कपिल सिब्बल ने जिस आदेश की बात कही, उसे 21 अक्टूबर 2024 को तत्कालीन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने जमीयत उलेमा ए हिंद की ही याचिका पर दिया था। उस आदेश में कोर्ट ने यूपी के गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सभी छात्रों को स्कूलों में ट्रांसफर करने की कार्रवाई पर रोक लगाई थी।
कोर्ट ने सरकारी अनुदान वाले मदरसों से गैर मुस्लिम छात्रों को हटाने के राज्य सरकार के फैसले पर भी रोक लगाई थी। यूपी सरकार की इस कार्रवाई का आधार राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की तरफ से जून, 2024 में सभी राज्यों के लिए आया एक निर्देश था, कोर्ट ने उस निर्देश पर भी रोक लगा दी थी।
कपिल सिब्बल ने जजों को बताया कि इस मामले में सभी राज्यों को नोटिस भेजा गया था। इस पर आगे सुनवाई होनी है। अब उत्तराखंड के मामले के लिए हाई कोर्ट जाने के लिए कहना सही नहीं होगा। कपिल सिब्बल की इस दलील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह इस आवेदन को मुख्य मामले के साथ ही सुनेंगे।
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