देहरादून: हर साल पहाड़ के जंगलों में लगने वाली आग जिसे स्थानीय भाषा में देवाग्नि या वनाग्नि भी कहा जाता है। इसके लगने वजह चीड़ के सूखे पत्ते पिरूल बताते है। पिरूल ज्वलनशील माना जाता है और हल्की सी बीड़ी सिगरेट की चिंगारी पड़ने से इसमें आग लग जाती है।
ज्यादातर मामले जंगल की आग के चीड़ के इन पत्तों की वजह से दर्ज होते हैं और इन पत्तों को समेटने या इन पर लगी आग को बुझाने के लिए वन विभाग अपना अभियान चलाया करता है। हर साल आग बुझाने के लिए योजनाएं बनाई जाती है और वो उसी आग में दफन हो जाती है।
प्लास्टिक कचरा है आग की बड़ी वजह
इधर कुछ सालों से पिरूल के अलावा और एक बड़ी वजह पहाड़ों में आग लगने की सामने आई है वो है प्लास्टिक कचरा, इस कचरे की वन विभाग भी अनदेखी कर रहा है और शहरी विकास मंत्रालय भी। हर दिन लाखों दूध की थैलियां, चिप्स मैगी के रैपर, पानी की बोतले पहाड़ों में जमा होती है इस कूड़े निस्तारण कैसे हो रहा है इसे प्रत्यक्ष रूप से पहाड़ी शहरों के पास जंगल की खाई में उठते धुएं के रूप में देखा जा सकता है।
देवभूमि उत्तराखंड का कोई जंगल कोई खाई ऐसी नहीं है, जिसमें प्लास्टिक कचरा न फैला हुआ हो। राज्य में 70 प्रतिशत जंगल है और शहरी कूड़ा का ये सुलभ डंपिंग स्थल बन चुका है। पिछले साल जंगल में आग लगने की घटनाएं जब बढ़ने लगी तो इसके पीछे नए-नए कारण भी तलाशे गए, तब ये बात सामने आई कि शहरों का गांव का कूड़ा जहां फेंका जाता है वो स्थान हर समय सुलग रहा होता है यहीं से आग हवा के रुख के साथ किसी रैपर अथवा कागज से जंगल की पत्तियों से जा मिलती है और फिर भयावह रूप ले लेती है।
हकीकत भी यही है कि पहाड़ों के जंगलों में प्लास्टिक कचरा लबालब भरता जा रहा है, कहीं भी किसी भी कोने में देखेंगे तो कहीं न कहीं प्लास्टिक पन्नी, बोतल जरूर मिल जाएगी जो कि पहाड़ों में जंगल की आग की बड़ी वजह बनती जा रही है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ पराग मधुकर धकाते भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि हमारे पहाड़ों में प्लास्टिक कचरा फैला हुआ है और इसके निस्तारण के लिए एक बड़ा अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
पीएम मोदी ने कहा-उत्तराखंड प्लास्टिक मुक्त हो
उत्तराखंड के दौरे पर पिछले दिनों जब पी एम मोदी आए थे तो उन्होंने अपने भाषण में स्पष्ट कहा था कि उत्तराखंड को प्लास्टिक मुक्त होना चाहिए। उनके कहने के पीछे विजन स्पष्ट था कि पहाड़ों में प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है जो कि नदियों जंगलों को प्रभावित कर रहा है।
सीएम धामी बोले-प्रदूषण मुक्त हो देवभूमि
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहाड़ों में हर साल लगने वाली आग से चिंतित हैं वे कहते हैं कि वन विभाग को अन्य विभागों की मदद लेकर आग बुझाने के प्रयास करने चाहिए साथ ही जिम्मेदार अफसरों की जवाबदेही भी तय करनी चाहिए।
वन विभाग के पास नहीं है आग बुझाने के पर्याप्त उपकरण
वन विभाग हर साल लगने वाली आग को बुझाने के लिए आज भी झाड़ी की मदद लेता है। आग बुझाने के लिए अत्याधुनिक उपकरण नहीं है यहां तक कि श्रमिकों के लिए फायर प्रूफ वर्दी की भी किल्लत है। वन विभाग के पास न तो अपने फायर ब्रिगेड है और न ही आग बुझाने के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायनों को छिड़कने के लिए कोई व्यवस्था है।
उत्तराखंड में आग की बढ़ती घटनाएं
2022/23 में उत्तराखंड में जंगल की आग की 5351 घटनाएं हुई जबकि 2023/24 में ये बढ़ कर देश में सर्वाधिक 21037 हो गई है। आग पर निगरानी के लिए वन विभाग सैटलाइट की मदद लेता है। हर साल आग से हजारों हेक्टेयर बेशकीमती जंगल स्वाह हो जाता है।
एनडीआरएफ को भी ट्रेनिंग
भारत सरकार ने जंगल की आग पर काबू पाने के लिए आपदा प्रबंधन के तहत एन डी आर एफ की तीन कंपनियों को ट्रेनिंग दी है।
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