गत 22 मार्च को नई दिल्ली स्थित हिंदी भवन में ‘दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन’ द्वारा ‘गरिमा के स्वर : कवयित्री सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री एवं सम्मेलन की अध्यक्ष इंदिरा मोहन ने की।
मुख्य अतिथि थीं सांसद बांसुरी स्वराज। उन्होंने कहा कि कवि सदा ही जागरूक और गंभीर चिंतक होते हैं। वेदूसरों की भावनाओं और समस्याओं को सहज रूप से प्रकट कर समाज को जाग्रत करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि नारियां भगवान की अनूठी कृति हैं। इसलिए इन्हें हवान ने त्याग, तपस्या और प्रेम की मूर्ति बनाया है। डॉ. सरिता शर्मा, अंजु जैन, अलका सिन्हा, कल्पना शुक्ला, सुधा संजीवनी और उषा श्रीवास्तव ‘उषाराज’ की कविताओं ने श्रोताओं को तालियां बजाने के लिए विवश किया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवयित्री डॉ. सरिता शर्मा को हिंदी भाषा की सेवा के लिए ‘वागीश्वरी सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
समाज को कुरीतियों से बचाने का संकल्प
गत 23 मार्च को बारां (राजस्थान) स्थित खंडेलवाल धर्मशाला के सभागार में सामाजिक सद्भावबैठक हुई। इसमें सभी जाति, बिरादरियों के समाज प्रमुखों ने भाग लेकर सामाजिक उत्थान के कार्य से अवगत कराया।
बैठक तीन चरणों में हुई, जिसमें विभिन्न समाज प्रमुखों ने कहा कि समाज में सद्भाव व समरसता से ही देश परम वैभव संपन्न बनेगा। समाज के ताने-बाने को और अधिक मजबूत करने के लिए और प्रयास करने की आवश्यकता है। हमारे पूर्वजों ने सोच-समझकर ही आदर्श कुटुंब की व्यवस्था दी थी।
भारतीय परिवार व्यवस्था सनातन संस्कृति का मूल है। वर्तमान दौर में परिवाराें को पश्चिम के प्रवाह से बचाने की आवश्यकता है। बैठक के द्वितीय चरण में समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे जन्मदिन और विवाह में अनावश्यक खर्च, ‘प्री वेडिंग’, लव जिहाद मोबाइल का दुरुपयोग आदि को समाप्त करने पर बल दिया गया। सामूहिक संगीत में भारत माता की महा-आरती के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
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