बांग्लादेश में यूनुस सरकार का बड़ा खेल, बदली मुक्तियोद्धाओं की परिभाषा
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बांग्लादेश में बदली मुक्तियोद्धाओं की परिभाषा : यूनुस सरकार का बड़ा खेल, शेख मुजीब को किया इतिहास से बाहर

शेख हसीना के बाद यूनुस सरकार ने बांग्लादेश के 1971 मुक्ति संग्राम के इतिहास में छेड़छाड़ शुरू की। शेख मुजीबुर्रहमान को हटाकर स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा बदली। पूरी खबर पढ़ें...

by सोनाली मिश्रा
Mar 27, 2025, 10:40 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
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बांग्लादेश मे शेख हसीना के जाने और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के बाद से ही बांग्लादेश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ जारी है। शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़े तमाम दिनों पर अवकाश बंद किये जा चुके हैं और साथ ही बांग्लादेश निर्माण की याद दिलाने वाले कई स्मारक भी तोड़े जा चुके हैं।

मगर अब बांग्लादेश का निर्माण करने वाली मुक्ति वाहिनी के सदस्यों मुक्तियोद्धाओं की परिभाषा में भी परिवर्तन हो जा रहा है। पाकिस्तान से मुक्ति के लिए लड़े गए युद्ध के परिणामस्वरूप ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था। अब बांग्लादेश के निर्माण में भाग लेने वाले तमाम स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा बदली जा रही है। वे लोग जिन्होंने युद्ध भूमि में वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान भाग लिया था, उन्हें वीर स्वतंत्रता सेनानी कहा जाएगा और जिन्होनें मुक्ति संग्राम के लिए वैश्विक विचारों का निर्माण करने में भूमिका निभाई, उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों का मित्र कहा जाएगा।

बांग्लादेश में वर्ष 2022 में स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा में परिवर्तन करते हुए उन लोगों के भी योगदान को स्वीकारा गया था, जिन्होंने मुक्ति संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कुछ विशेष कार्य किये थे, या अपना योगदान दिया था।

prothomalo के अनुसार मुक्ति संग्राम मामलों के मंत्रालय में कई अधिकारियों का यह कहना है कि दरअसल यह मांग कई क्षेत्रों से आई थी, कि शेख हसीना सरकार के जाने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा में परिवर्तन किया जाए, क्योंकि उनके अनुसार जिन्होनें संग्राम में आमने सामने युद्ध किया और जिन्होनें किसी और प्रकार से संग्राम में योगदान दिया, वे एकसमान नहीं हो सकते हैं।

हालांकि इस पोर्टल के अनुसार उसके साथ बातचीत में कई शोधार्थियों ने यह तो माना कि अवामी लीग की सरकार ने कई बार राजनीतिक कारणों से स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा में परिवर्तन किया, मगर अब जो स्वतंत्रता सेनानियों का नया वर्गीकरण हो रहा है, वह भी उचित नहीं है। क्योंकि इससे आने वाले समय में और कड़वाहट फैलेगी।

Jatio Muktijoddha Council (Jamuka) Act में संशोधन के मसौदे के अनुसार जो परिभाषा स्वतंत्रता सेनानियों की तय की जा रही है, उसमें केवल वही लोग सम्मिलित हैं, जिन्होंने घर पर रहकर तैयारी की, प्रशिक्षण हासिल किया और पाकिस्तान के साथ युद्ध में सीधे संघर्ष में शामिल हुए। पाकिस्तान ही नहीं बल्कि उनके स्थानीय सहयोगी रज़ाकर, अल-बदर, अल-शम्श, मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, निज़ाम-ए-इस्लाम के खिलाफ 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 तक सीधे लड़ाई में शामिल रहे।

इसके साथ ही सशस्त्र बलों, मुक्ति वाहिनी, बीएलएफ और अन्य मान्यता प्राप्त समूहों, पुलिस, पूर्वी पाकिस्तान रेजिमेंट (ईपीआर), नौसेना कमांडो, किलो फोर्स और अनासार के सदस्यों को भी वीर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता दी जाएगी।

इसमें तीन श्रेणियां हैं, जैसे वे लोग जिन्होंने बांग्लादेश सीमा पार करके भारत में प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण हासिल किया और वापस आकर मुक्ति संग्राम में भाग लिया। दूसरी वे वीरांगनाएं, जिन्हें पाकिस्तानी सेना ने अपने शोषण का शिकार बनाया और तीसरी श्रेणी में सभी चिकित्सक, नर्स और चिकित्सा सेवा देने वाले सहायक शामिल हैं, जिन्होंने मुक्ति संग्राम में स्वतंत्रता सेनानियों को चिकित्सा प्रदान की। इन तीनों श्रेणियों को वीर स्वतंत्रता सेनानियों में रखा गया है।

स्वतंत्रता सेनानियों के साथियों की भी पांच श्रेणियां हैं। इनमें वे पेशेवर लोग शामिल हैं, जिन्होंने विदेश में रहते हुए वैश्विक जनमत बनाने का कार्य किया। दूसरी श्रेणी में मुक्ति संग्राम के दौरान गठित बांग्लादेश सरकार (मुजीब सरकार) के अधीन अधिकारी या कर्मचारी या राजदूत, और मुजीबनगर सरकार द्वारा नियुक्त चिकित्सक, नर्स और अन्य सहायक हैं। इसी के साथ उस समय गठित सरकार के अधिकारी, और नेशनल असेंबली के सदस्य, और स्वाधीन बांग्ला बेताल केंद्र से जुड़े कलाकार एवं सभी पत्रकार, जिन्होनें देश में और बाहर रखकर इस विषय पर लिखा और पाँचवीं श्रेणी स्वाधीन बांग्ला फुटबॉल टीम शामिल है।

इन पांचों श्रेणियों के लोगों को स्वतंत्रता सेनानियों के साथी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसी के साथ इस नए मसौदे से शेख मुजीबुर्रहमान के सभी संदर्भों को लगभग निकाल दिया गया है। जहां मौजूदा कानून यह कहता है कि मुक्ति संग्राम राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की स्वतंत्रता की घोषणा के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में आरंभ हुआ था, तो वहीं मसौदे में लिखा है कि “26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 तक जुंटा और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों और उनके स्थानीय सहयोगियों रजाकार, अल-बदर, अल-शम्स, मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, निजाम-ए-इस्लाम और सहयोगियों और शांति समितियों के खिलाफ युद्ध चला था, जिसका उद्देश्य एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक राज्य के रूप में बांग्लादेश के लोगों के लिए समानता, मानव सम्मान और सामाजिक न्याय स्थापित करना था।”

इस मसौदे से शेख मुजीबुर्रहमान का नाम लगभग हर उस स्थान से मिटा दिया गया है, जहां मौजूदा कानून में उनका नाम लिखा गया है। अर्थात उन्हें स्वतंत्रता सेनानी नहीं माना गया है, जिन्होंने इस पूरे स्वतंत्रता संग्राम की रूपरेखा रची और नीतियां बनाईं। ढाका ट्रिब्यून के अनुसार मसौदे में उन लोगों का कोई उल्लेख नहीं है जिन्होंने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई और मुक्ति संग्राम के दौरान आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय मार्गदर्शन प्रदान करते हुए प्रमुख आयोजकों के रूप में काम किया।

अर्थात आंदोलन को राह दिखाने वाले लोगों को स्वतंत्रता सेनानियों की परिभाषा से एकदम अलग कर दिया है, या कहें कि शेख मुजीबुर्रहमान को ही एक बार फिर से उनके द्वारा बनाए गए देश से निर्णायक देशनिकाला दे दिया गया है।

Topics: बांग्लादेश मुक्ति संग्रामBangladesh Freedom Fighters DefinitionSheikh Mujibur Rahman History RemovalMohammad Yunus BangladeshJamuka Act AmendmentMuktibahini Fighters RedefinedSheikh Hasina Legacy ErasedBangladesh Independence RewriteProthom Alo Report
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