बिहार की राजनीति इफ्तार और फतवों के बीच मझधार में फंस गई है। बिहार का प्रमुख राजनीतिक दल राजद जहां जिलावर इफ्तार पार्टी का आयोजन अपने कार्यालय में कर रहा है, वही मुस्लिम संगठन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी के खिलाफ फतवे जारी कर रहे हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद के इफ्तार पार्टी में कांग्रेस और वीआईपी ने गैर हाजिर होकर यहाँ के राजनैतिक गर्मी बढ़ा दी है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ऊपर वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ जाने के लिए मुस्लिम संगठन पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। 23 मार्च को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का इमारत शरिया के नेतृत्व में 7 संगठनों ने विरोध किया। इमारत शरिया ने इस इफ्तार पार्टी के खिलाफ फतवा भी जारी किया। फिर भी अच्छी संख्या में मुस्लिम इस इफ्तार पार्टी में आएं। अब मुस्लिम संगठन के तेवर को देखते हुए विधानसभा के अंदर विपक्षी दलों द्वारा दबाव बनाया जा रहा है। 26 मार्च को उनके हंगामे के कारण ही विधानसभा की कार्रवाई दोपहर तक के लिए टाल दी गई।
वैसे तो बिहार में आए दिन किसी न किसी बात पर फतवे जारी होते रहते हैं। कुछ फतवे सुर्खियों में रहते हैं तो कुछ फतवे नजर-अंदाज कर दिए जाते हैं। राजीव गांधी मंत्रिमंडल के समय शाहबानो केस के विरुद्ध फतवों की राजनीति बिहार से ही शुरू हुई थी। न सिर्फ स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर के कई विषयों पर यहां फतवे जारी किए गए हैं। उर्दू को द्वितीय राजभाषा बनाने की बात हो या फिर सीएए का मुद्दा, वक़्फ़ बिल का मसला हो या तीन तलाक का ; इन सभी विषयों पर बिहार में फतवे जारी किए गए हैं।
इन सभी फतवों में इमारत-ए-सरिया की अहम भूमिका होती है। इस बार इमारत-ए-सरिया के नेतृत्व में सात मुस्लिम संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का विरोध किया है। इमारत-ए-सरिया ने इस इफ्तार पार्टी के विरोध में फतवा भी जारी किया है। इन सात संगठनों में जमात-ए-इस्लाम, जमात-ए-अहले हदीस, खानकाह मुजीबिया, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमियत उलेमा ए हिंद और खानकाह रहमानी शामिल है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रतिवर्ष अपने सरकारी आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन करते हैं। इस वर्ष यह इफ्तार पार्टी 23 मार्च, 2025 को आयोजित थी। मुख्यमंत्री द्वारा वक्फ़ संशोधन विधेयक, 2024 पर खिलाफत नहीं करने के कारण बिहार के मुस्लिम संगठनों ने उन्हें एक प्रकार से धमकी देते हुए फतवा जारी किया। जारी पत्र में बताया गया है कि नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से धर्मनिरपेक्ष शासन और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का वादा करके सत्ता प्राप्त की थी। लेकिन भाजपा के साथ उनका गठबंधन और इस अतार्किक और असंवैधानिक कानून का समर्थन उन प्रतिबद्धताओं के खिलाफ जाता है।
कथित अशंकाओं के बारे में चर्चा भी इस फ़तवे में है। उसके अनुसार यदि वक़्फ़ संशोधन विधेयक, 2024 लागू हुआ तो यह शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला आश्रयों और धार्मिक स्थलों के लिए समर्पित सदियों पुराने वक्फ संस्थानों को नष्ट कर देगा। इससे मुस्लिम समुदाय और अधिक वंचित और गरीब हो जाएगा, जैसा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट में पहले ही चेतावनी दी गई थी। आपकी सरकार द्वारा मुसलमानों की चिताओं की उपेक्षा ऐसे औपचारिक आयोजनों को अर्थहीन बना देती है।
विवादों में रहा है इमारत-ए- शरिया
इस संगठन की कोई विशेष पहचान गैर मुसलमानों के बीच नहीं थी लेकिन 15 अप्रैल, 2018 को इसने पटना के गांधी मैदान में एक बड़ी रैली कर सबको चौंका दिया था। यह रैली तीन तलाक के मुद्दे पर विरोध के लिए की गई थी और कहा गया था कि इस्लाम के कानून में बदलाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस रैली में बिहार के हजारों मुस्लिम इकट्ठा हुए थे।
इमारत-ए-शरिया मुसलमानों को कलमे की बुनियाद पर और शरीयत के तहत संगठित और अनुशासित करने के उद्देश्य से काम कर रहा है। यह संगठन आज से नहीं बल्कि आजादी के पहले साल 1921 से ही मुसलमानों को एकजुट करने के लिए कार्य कर रहा है। इसकी तीन प्रमुख कमेटियां हैं, जिसमें मजलिस-ए अरबाब-ए-हल्लोअक्द, मजलिस-ए-शूरा और मजलिस-ए-आमला शामिल हैं।
बिहार में नीतीश सरकार में मंत्री खुर्शीद अहमद के खिलाफ भी इस संगठन ने जुलाई, 2017 को एक फतवा जारी किया था। खुर्शीद अहमद के खिलाफ यह फतवा इमारत-ए-शरिया द्वारा जारी किया गया था। मंत्री ने ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाया था, जिस कारण उनके खिलाफ फतवा जारी हुआ था।
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