नागपुर में 17 मार्च की रात को आगजनी और पत्थरबाजी हुई। गाड़ियों और हिंदुओं के घरों को निशाना बनाया गया। 1992 के बाद नागपुर में पहली बार ऐसी हिंसा हुई। सारा घटनाक्रम देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र था। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर मे स्थित औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर 17 मार्च को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया। इसके कुछ घंटे बाद अचानक जिहादियों की भीड़ हिंदू बस्तियों में दाखिल हुई। कट्टरपंथियों ने पथराव और तोड़फोड़ शुरू कर दी। हमला अप्रत्याशित था, इसलिए कोई कुछ समझ नहीं पाया। उन्मादियों ने हिंदुओं के वाहनों को आग लगा दी। देखते-देखते कट्टरपंथी महाल परिसर स्थित भालदारपुरा और अन्य हिंदू बस्तियों में घुस गए। हिंदुओं के घरों, दुकानों को नुकसान पहुंचाया। जब तक पुलिस वहां पहुंची, बहुत नुकसान हो चुका था।

संपादक, तरुण भारत
राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भी विधानसभा में स्पष्ट किया कि प्रदर्शन के दौरान हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने कोई कपड़ा नहीं जलाया था। इससे साफ है कि यह हिंसा पूर्व नियोजित थी। कट्टरपंथियों की मंशा हिंसा और हिंदुओं पर हमले की थी, जिसका मौका उन्हें औरंगजेब विवाद के बहाने मिल गया। यह जानकारी भी मिल रही है कि 17 मार्च की हिंसा से कुछ दिन पहले कट्टरपंथियों ने नागपुर में तीन जगहों पर बैठकें की थीं। घटना के दूसरे दिन नागपुर महानगरपालिका कर्मचारियों ने सड़कों पर बिखरे र्इंट-पत्थर एकत्र किए। देखते-देखते उनसे दो ट्रॉली भर गईं। इतने बड़े पैमाने पर र्इंट-पत्थर कहां से आ गए? इसका सीधा मतलब यह है कि विहिप के प्रदर्शन के बाद जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केंद्रीय कार्यालय है, उस महाल परिसर में हिंदुओं में दहशत फैलाने के लिए योजना के तहत इस हिंसा को अंजाम दिया गया था। पुलिस ने हिंसा के मास्टरमाइंड फहीम खान को गिरफ्तार कर लिया है। उस पर देशद्रोह का मामला भी दर्ज किया गया है। आरोप है कि फहीम ने दंगाइयों को भड़काया था और उन्हें आगजनी करने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसके बाद वह भाग गया था। जिस दिन घटना हुई, उसी रात पुलिस ने महाल क्षेत्र में कार्रवाई करते हुए संदिग्धों को हिरासत में लिया था। नागपुर के गणेशपेठ पुलिस थाने में जब उनसे पूछताछ की गई तो उन्होंने फहीम का नाम लिया।
दंगाइयों ने पुलिसकर्मियों को भी नहीं बख्शा। उनके हमले में तीन आईपीएस और कई पुलिसकर्मी घायल हुए। एक अधिकारी पर जिहादियों ने कुल्हाड़ी से वार किया और दूसरे पर पत्थर फेंके थे। दंगाइयों ने महिला पुलिसकर्मियों के साथ भी बदसलुकी की। उनके कपड़े फाड़ दिए और ओछी हरकतें कीं। ये बातें एफआईआर में लिखी हुई हैं। बताया जाता है कि फहीम कुछ दिन पहले मालेगांव गया था। नागपुर हिंसा से मालेगांव कनेक्शन के बारे में पुलिस छानबीन कर रही है।
यह भी पता लगा रही है कि इससे बांग्लोदश के तार तो नहीं जुड़े हैं। अभी तक पुलिस ने 1200 से अधिक दंगाइयों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। हिंसा में घायल नागपुर के डीसीपी निकेतन कदम ने कहा, ‘‘एक घर से कुछ लोग छिपकर पत्थरबाजी कर रहे थे। टीम वहां गई तो दूसरी ओर से 100 से अधिक लोगों की भीड़ आई। मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की तो एक ने कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। छतों से पत्थर फेंके जा रहे थे। पत्थर छत पर कैसे पहुंचे? कुछ तो प्लानिंग थी।’’
छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर बनी फिल्म ‘छावा’ देखने के बाद हिंदुओं के मन में औरंगजेब के प्रति गुस्सा था। इसी बीच, समाजवादी पार्टी के विधायक अबु आजमी ने औरंगजेब को ‘कुशल प्रशासक’ बताकर हिंदुओं की भावनाओं को और आहत किया। आक्रोशित हिंदू समाज ने अबु आजमी से माफी की मांग की, लेकिन उसने इनकार कर दिया। आजमी के बाद कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी औरंगजेब की शान में कसीदे पढ़े। कांग्रेस सांसद ने कहा कि ‘औरंगजेब आततायी नहीं, बल्कि बादशाह था। उसने 50 साल तक देश पर शासन किया। उस समय की जीडीपी देखिए।’ इस पर राज्य की राजनीति गरमा गई। औरंगजेब की तारीफ करने पर आजमी को विधानसभा सत्र से निलंबित कर दिया गया। हालांकि बाद में आजमी ने माफी मांगते हुए कहा कि उसने वही कहा, जो इतिहासकारों ने लिखा है। इसी बीच, औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग उठी। इसके लिए विहिप और बजरंग दल ने आंदोलन की घोषणा की। संभवत: उसी दिन से कट्Þटरपंथियों ने षड्यंत्र पर काम करना शुरू कर दिया। हिंसा की जो मनोवृत्ति औरंगजेब में थी, वही मनोवृत्ति कट्टरपंथियों में दिखी। औरंगजेब और बाबर उनकी पहली पसंद हैं, इसलिए वे उनका महिमामंडन करते रहते हैं।
जिसे लोग दंगा कह रहे हैं, वास्तव में वह हिंदुओं पर आक्रमण था। हमला औचक और खौफनाक था, फिर भी हिंदुओं ने न तो प्रतिकार किया और न ही अपना संयम खोया। इसलिए पुलिस को भी हालात पर काबू पाने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई। दंगाइयों ने सड़कों पर लगे सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ दिए थे, ताकि उनकी करतूत रिकॉर्ड न हो। फिर भी बच नहीं सके। उनकी जिहादी हरकत सीसीटीवी कैमरे में कैद हो ही गई। पुलिस उनकी पहचान कर उन्हें गिरफ्तार कर रही है। हिंसा में शामिल अधिकांश दंगाई बाहर से आए थे। मुख्यमंत्री ने साफ शब्दों में कहा है कि पुलिस पर हमला करने वाले दंगाइयों से सख्ती से निपटा जाएगा।
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