‘शंकर जी’ के नाम से भी जाने जाने वाले डॉ. शंकरराव तत्ववादी नागपुर के रहने वाले थे। उनका जन्म 1933 में हुआ। वे बाल्यावस्था से ही स्वयंसेवक थे। शैक्षणिक जीवन में उनकी छवि एक मेधावी छात्र की रही। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में एम.एससी. की और डॉक्टरेट की पढ़ाई बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से। आगे की पढ़ाई के लिए 1960 के दशक के मध्य में वे अमेरिका गए और आस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय और कैनसस विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। डॉ. तत्ववादी ने बीएचयू में फार्मेसी विभाग में अध्यापन शुरू किया और 1992 में समय पूर्व सेवानिवृत्ति लेने तक उन्होंने फार्मेसी विभाग अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इस दौरान वे संघ की गतिविधियों से भी जुड़े रहे और नागपुर में शाखा स्तर से लेकर बनारस में प्रांत स्तर तक विभिन्न जिम्मेदारियां निभाईं।
उन्होंने संघ शिक्षा वर्ग में शिक्षक के रूप में भी जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने अमेरिका में हिन्दू स्वयंसेवक संघ (एचएसएस) की शाखाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कुछ समय के लिए वहां विस्तारक की भूमिका में भी रहे। बीएचयू में प्रोफेसर के पद पर रहते हुए विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए उन्होंने यूनाइटेड किंगडम (यूके) जैसे देशों की यात्रा भी की। 1989 में उन्हें यूके में प्रचारक नियुक्त किया गया, जहां वे 2011 तक रहे।
1993 में वे विश्व विभाग संयोजक बने और 60 से अधिक देशों की यात्रा की। इस अवधि में प्रारंभ किए गए प्रमुख कार्यक्रमों में विश्व संघ शिक्षा वर्ग, विश्व संघ शिविर, मिल्टन कीन्स यूके में हिंदू संगम, हिंदू मैराथन यूके आदि शामिल हैं। इस दौरान भारत के बाहर सभी महाद्वीपों में शाखा कार्य का उल्लेखनीय विस्तार हुआ।
2011 के बाद डॉ. तत्ववादी विज्ञान भारती से मार्गदर्शक के रूप में जुड़े। उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया। अपने मिलनसार और सरल स्वभाव के लिए जाने जाने वाले डॉ. तत्ववादी ने दुनिया भर में असंख्य कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों के साथ संपर्क बनाए रखा। यह आश्चर्यजनक ही था कि उन्हें कार्यकर्ताओं के परिवार के सभी सदस्यों के नाम याद रहते और वह सबकी कुशल-क्षेम पूछा करते। बारीकियों पर उनकी पैनी नजर रहती थी, चाहे यात्रा विवरण हो, संस्कृत शब्द और उनके अर्थ हों, गीत की धुन हो या फिर कार्यक्रमों का कालक्रम। डॉ. तत्ववादी संस्कृत और हिन्दू धर्मग्रंथों के विशद् ज्ञाता थे। वे एक अच्छे गायक भी थे।
2011 से वे डॉ. हेडगेवार भवन, महाल कार्यालय नागपुर में कार्यरत थे और नागपुर आने वाला कोई भी कार्यकर्ता उनसे मिलने के लिए लालायित रहता। वे पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ थे और चलने-फिरने में भी उन्हें कठिनाई हो रही थी। 13 मार्च को महाल कार्यालय में उनका निधन हो गया। उनकी इच्छा के अनुसार, 13 मार्च की शाम को उनके पार्थिव शरीर को एम्स नागपुर को सौंप दिया गया। उनकी पुण्य आत्मा को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि। परमेश्वर दिवंगत पुण्यात्मा को सद्गति प्रदान करें!
(लेखक अंतररष्ट्रीय सहयोग परिषद के महामंत्री हैं)
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