कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार फिर से मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों से घिर गई है। पहले बजट में मुसलमानों के लिए विशेष प्रावधान फिर वक्फ बिल के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव। अब सिद्धारमैया सरकार का सरकारी ठेकों में 4% अल्पसंख्यक आरक्षण का बिल। भाजपा बार-बार ये आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई तो वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण का एक बड़ा हिस्सा मुसलमानों को दे देगी। सिद्धारमैया सरकार भाजपा के इन आरोपों को सही साबित करते दिख रही है।
मुसलमानों के लिए आरक्षण पर भाजपा का आरोप है कि यह कदम संविधान सम्मत नहीं है। दरअसल, भारतीय संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार है और धर्म के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन, वोट हासिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी आरक्षण के नाम पर रेवड़ी बांट रही है। विश्लेषकों का मत है कि कांग्रेस पार्टी को वर्तमान में महज तीन राज्यों में सरकार है अतएव इन राज्यों में इस तरह के कदमों से कांग्रेस पार्टी अन्य राज्यों के मुस्लिमों को सन्देश देना चाहती है। इस साल के अंत में बिहार में विधानसभा के चुनाव हैं जहाँ मुस्लिम बहुतायत में हैं।
अगले वर्ष मुस्लिम बाहुल्य राज्यों पश्चिम बंगाल और केरल में विधानसभा के चुनाव हैं। कांग्रेस पार्टी को पता है कि मुस्लिम मतदाता अब स्थानीय दलों जैसे बिहार में राजद, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में सपा को मत करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। इसलिए इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों से मुस्लिम मतदाताओं को खींचकर अपने पाले में करने वास्ते कांग्रेस पार्टी को इस तरह के कदम उठाने पड़ेंगे।
भाजपा के मुताबिक, कांग्रेस पिछड़ों और दलितों के हिस्से का आरक्षण मुसलमानों को देने की योजना बना रही है। कांग्रेस के लिए यह कदम कोई नया नहीं है। इस तरह के कदम कांग्रेस पार्टी के अंदर अंतर्निहित है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुसलमानों को 10% आरक्षण देने का की योजना बना लिया था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक बार पूरे देश और सभी राज्यों में मुस्लिम आरक्षण का फैसला करीब-करीब ले ही चुके थे। नेहरू ने मुसलमानों को ना केवल नौकरियों में आरक्षण देने के लिए बल्कि लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम और पंचायत के चुनाव में भी आरक्षण देने की तैयारी कर ली थी।
क्या है लियाकत पैक्ट
नेहरू ने ये फैसला दरअसल, पाकिस्तान की सलाह पर लिया था। यह बात 1949 की है जब पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदू विरोधी दंगे अपने पूरे उफान पर थे। वहां हजारों हिंदुओं का कत्ल कर दिया गया था, जिसके बाद लाखों हिंदू जान बचाकर पश्चिम बंगाल में शरण लेने के लिए आ गए थे इसके बाद अगले साल 1950 के मार्च महीने के इस समस्या के समाधान के लिए भारत के प्रधानमंत्री नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच दिल्ली में द्विपक्षीय वार्ता हुई। जिसे नेहरू लियाकत पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है।
इस बातचीत का मुद्दा था कि दोनों देश अपने देश में अल्पसंख्यकों को जिस भी तरह से सुरक्षा दे सकते हैं उसके लिए काम करना चाहिए। लियाकत अली ने नेहरू से कहा कि वह भारत में मुसलमानों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करें। हैरत की बात यह है कि इस अजीबोगरीब मांग पर नेहरू पूरी तरह से तैयार हो गए। बकायदा नेहरू और लियाकत अली खान के बीच समझौते का एक ड्राफ्ट भी तैयार हो गया, जिसमें भारत में मुसलमानों को नौकरी और चुनावों में आरक्षण देने का वादा किया गया था।
नेहरू जब इस ड्राफ्ट को लेकर कैबिनेट की बैठक में पहुंचे तो उसके बाद क्या हुआ, इसका जिक्र तत्कालीन नेहरू मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य नरहर विष्णु गाडगिल ने अपनी मशहूर किताब गवर्नमेंट फ्रॉम इनसाइड में पेज नंबर 87 पर किया है। लियाकत अली के साथ अपने समझौते के मुताबिक, भारत के सभी राज्यों में नौकरियों और चुनावों में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण देने का वादा किया गया था। केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान रखा गया था। गाडगिल ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ हैं।
गाडगिल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पृथक निर्वाचक मंडल स्वीकार करने की वजह से देश को विभाजन की कीमत चुकानी पड़ी है, आप हमें फिर से वही जहर पीने के लिए कह रहे हैं यह विश्वासघात है। इस प्रस्ताव की सबसे खतरनाक बात थी चुनावों में मुस्लिम सुरक्षित सीट की व्यवस्था। नेहरू आजादी के बाद भी मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल यानी सेपरेट इलेक्टोरेट की व्यवस्था करना चाह रहे थे। पृथक निर्वाचक मंडल का मतलब यह होता है कि मुस्लिम रिजर्व सीटों पर सिर्फ मुस्लिम प्रत्याशी ही चुनाव में खड़े हो सकते हैं और इन सीटों पर वोट डालने का अधिकार भी सिर्फ मुसलमानों को ही होगा। यानी मुस्लिम रिजर्व सीट पर सिर्फ मुसलमानों द्वारा मुस्लिम नेता का चुनाव का होना। गाडगिल ने इसका भी उल्लेख किया कि पृथक निर्वाचक मंडल यानी सेपरेट इलेक्टोरेट की वजह से भारत का बंटवारा हुआ था। गाडगिल के मुताबिक, इस बहस में मंत्री गोपाल स्वामी आयंगर और सरदार पटेल ने उनका समर्थन किया था।
कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का मुस्लिमो के प्रति विशेष लगाव और आरक्षण की बातें जुबान पर समय-समय पर आती रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों और विशेषकर मुसलमानों का है। देश के तत्कालीन कानून मंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने भी मुस्लिम आरक्षण के समर्थन में बयान दिया था। सलमान खुर्शीद ने एक बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी राज्य की सत्ता में आती है तो ओबीसी के मौजूदा 27% कोटे में से पिछड़े मुसलमानों के लिए 9% कोटा तय किया जाएगा। जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ था तो खुर्शीद ने अपने बयान के समर्थन में सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों का सहारा लिया था।
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार कांग्रेस की इसी तुष्टिकरण की सोच को आगे बढ़ाने का काम कर रही है। राज्य की कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के भारी विरोध के बावजूद सदन से उसे पारित भी कराया। मतलब साफ है कि मुस्लिम मतों के लिए चाहे जो भी करना पड़े मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कांग्रेस पार्टी करने के लिए तैयार है।
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