गत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत बिहार प्रवास पर रहे। इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में भाग लिया और कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया। उन्होंने विद्या भारती द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर, वीरपुर, सुपौल के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण भी किया।
उन्होंने कहा कि विद्यालय चलाना आजकल व्यापार है, लेकिन भारत में शिक्षा पैसा कमाने का माध्यम नहीं है। विद्या भारती के 21 हजार से अधिक विद्यालय पूरे देश में चल रहे हैं, जो विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के लिए कार्य कर रहे हैं। विद्या भारती की उपलब्धि पर संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘20 बिलियन क्लब’ में शामिल करने की बात कही है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य है एक शिक्षित और सुसंस्कृत व्यक्ति बनाना, जो अपने परिवार, गांव और देश को भी ऐसा बनाने का प्रयास करे। शिक्षा ऐसी हो जो व्यक्ति में स्वार्थ नहीं, बल्कि अपनत्व का भाव भरे। संपूर्ण भारत एक है, हम सब एक ही भूमि के पुत्र हैं, यही सोच समाज में जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में हमेशा त्याग की पूजा की जाती है।
आज धनपति तो बहुत हो रहे हैं, लेकिन उनकी चर्चा कोई नहीं करता। चर्चा होती है दानवीर भामाशाह की, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए राणा प्रताप को धन दिया था। दशरथ मांझी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दशरथ मांझी ने समाज कल्याण के लिए बहुत कुछ किया, जिसके चलते उन्हें आज की समाज याद करता है।
उन्होंने लोक कल्याण के लिए पहाड़ चीरकर रास्ता बनाया था। भारत में ऐसा करने वाले अनेक लोग हैं, जिनका हमें अनुकरण करना चाहिए। इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता और भारी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थे।
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