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विश्व गौरैया दिवस: जानें गौरैया की खासियत के बारे में 

विश्व में कई ऐसी गौरैया पक्षी हैं जो नाम से तो अलग है पर उनमें बहुत अधिक समानताएं हैं, अतः उन्हें एक मानकर मूलभूत रूप से गौरैया की प्रमुख 24 प्रजातियां मानी जाती हैं, जबकि पूरे विश्व मे कुल 43 प्रजातियां पाई जाती हैं।

by नरेंद्र सिंह, वन्य जीव, पंछी विशेषज्ञ
Mar 20, 2025, 02:54 pm IST
in उत्तराखंड
World Sparrow Day

गौरैया

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देहरादून: विश्व गौरैया दिवस हर साल 20 मार्च को मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत साल 2010 में भारत की नेचर फ़ॉरएवर सोसाइटी ने की थी, जो अब एक वैश्विक पहल बन चुका है। आइए जानते हैं इस खूबसूरत पक्षी के बारे में-

■ गौरैया का वैज्ञानिक नाम पैसर डोमेस्टिकस _Passer domesticus_ है।

■ विश्व में कई ऐसी गौरैया पक्षी हैं जो नाम से तो अलग है पर उनमें बहुत अधिक समानताएं हैं, अतः उन्हें एक मानकर मूलभूत रूप से गौरैया की प्रमुख 24 प्रजातियां मानी जाती हैं, जबकि पूरे विश्व मे कुल 43 प्रजातियां पाई जाती हैं।

■ गौरैया सामान्यतः घर में पड़े हुए अनाज के दाने, रोटी के टुकड़े, आटे की गोलियां आदि खाती है पर इसके अतिरिक्त ये घरों में पाए जाने वाले कीड़े भी खाती है, जैसे कि सुंडी, इल्ली आदि।

■ गौरैया के बच्चे वही खाते हैं जिसे उनकी माँ खिलाती है, और आम तौर पर मां गौरैया अपने बच्चों को कीड़े और अनाज के दाने खाने के लिए देती है।

■ गौरैया की औसत आयु 4 से 6 वर्ष होती है लेकिन अपवाद स्वरूप डेनमार्क में एक गौरैया की उम्र का वर्ल्ड रिकॉर्ड 19 वर्ष तक का है । इसके अतिरिक्त स्पैरो का 23 वर्ष तक जीवित रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है ।

■ गौरैया जमीन पर सरपट चलने के बजाय उछल उछल कर चलती हैं ।

■ गौरैया संरक्षण के लिए और इनकी घटती संख्या को देखते हुए चिंता व्यक्त की गई और इसलिए भारत में दिल्ली में 2012 और बिहार में 2013 में गौरैया को राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया।

■ नर गौरैया और मादा गौरैया की पहचान करने के लिए इनके रंग को ध्यान से देखा जाता है, नर गौरैया की पीठ गहरे भूरे रंग की होती है और गले में काली रंग की पट्टी होती है। जबकि मादा गौरैया की पीठ हल्के भूरे रंग की होती है।

■ गौरैया सुन्दर लेकिन बेहद छोटा पक्षी है, इसकी लम्बाई 16 सेंटीमीटर तक होती है।

■ गौरैया का आकार बेहद छोटा होता है, इसका वजन लगभग 25 से 60 ग्राम तक होता है।

■ गौरैया के उड़ने की गति औसतन 35 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है जिसे ये आवश्यकता पड़ने पर 50 तक कर सकती है।

■ जानवरों के प्रति क्रूरता की पराकाष्ठा वाले देश चीन में 1950 के दशक में गौरैया के फसल के दाने खाने के कारण इन्हें मारने का आदेश दिया गया और इस कारण लाखों गौरैया को मार दिया गया , पर इसका नतीजा एकदम विपरीत हो गया, उल्टा वहां अन्य कीड़ों की संख्या इतनी बढ़ गयी कि गौरैया से कहीं ज्यादा संख्या कीड़ों की हो गयी और वे गौरैया से कहीं ज्यादा फसल का नुकसान करने लगे। परिणामतः चीन में ऐसा अनाज संकट आया कि लोग भोजन को तरसने लगे और एक अकाल की स्थिति उतपन्न हो गयी। बाद में भारत से गौरैया को आयात करके इसे वहाँ के पारितन्त्र में छोड़ा गया।

■ गौरैया साल में लगभग 3 से लेकर 5 अंडे देती है और इनके बच्चे 13 से 15 दिन में घोसले से बाहर निकल आते हैं, बच्चे मां बाप की निगरानी में रहते हैं जब तक की वे उड़ने योग्य न हो जाएं और जन्म से 15 से 20 दिन के भीतर ये उड़ने योग्य हो जाते हैं।

■ गौरैया में ज्यादातर मादा का ही डीएनए ट्रांसफर होता है, नर का डीएनए बेहद कम मात्रा में बच्चों को मिलता है।

■ गौरैया यद्यपि बहुत शर्मिला पक्षी हैं, परन्तु इन्हें  मानव बस्ती से समीपता भाती हैं। ये अपने निवास से 2 किलोमीटर से अधिक दूरी से आगे शायद ही कभी जाते होंगे।

■ पनडुब्बी पक्षी की तरह गौरैया भी पानी के अंदर तैर सकती हैं, भले ही इनका नाम तैरने वाले पक्षियों में शुमार नहीं है।

■ इनके देखने की क्षमता लाजवाब होती है, गौरैया की आंखों की रेटिना में पर प्रति वर्ग मिलीमीटर लगभग चार लाख फ़ोटो रिसेप्टर्स लगे होते हैं जो प्रकाश को बेहतर ढंग से ब्रेन में पहुचने में मदद करते हैं।

■ अधिकतर मांसाहारी प्राणी जैसे कि सांप, कुत्ते, लोमड़ी, बिल्ली, बाज जैसे प्राणी गौरैया का शिकार कर लेतें हैं।

■ गौरैया अगर बार बार पूछ झटक रही है तो समझ लेना चाहिए कि वह किसी तनाव में है।

■ गौरैया की संख्या लगातार कम होती जा रही है। इसका एक कारण मोबाइल टावर भी है, वैज्ञानिकों के अनुसार इनके अंडे 15 से 20 दिन में फूट जाते हैं और बच्चे पैदा होते हैं लेकिन मोबाइल टावर के पास होने पर इनके अंडे 25 से 30 दिन तक सेने के बाद भी नहीं फूटते।

■ यह जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि गौरैया लगभग 10000 से 12000 फ़ीट की ऊंचाई तक उड़ सकती हैं। इनकी इस क्षमता को देखकर इनपर वैज्ञानिकों ने शोध किया और इसके तहत इन्हें करीब 20000 फ़ीट की ऊंचाई पर ले जाकर छोड़ दिया, अब हैरानी की बात ये थी कि वे वहां भी सामान्य रूप से उड़ रही थीं, बस इनके शरीर का तापमान करीब दो डिग्री सेल्सियस बढ़ गया था और इनके सांस लेने की गति भी थोड़ी बढ़ गयी थी। इसके अतिरिक्त इनमें  ऊंचाई का कुछ खास प्रभाव देखने को नहीं मिला।

■ यह बहुत ही हैरानी की बात है कि गौरैया जमीन के नीचे 2000 फ़ीट गहरी कोयले की खानों में भी घर बनाकर रहती देखी गयी है।

■ घरेलू गौरैया यद्यपि स्थानांतरण नहीं करती पर घरों के बाहर रहने वाली गौरैया मौसम के अनुसार फसल के दाने पकने पर खाने के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करती हैं।

■ बड़ी होने पर गौरैया मूल रूप से शाकाहारी होती है, पर अंडे से निकलने के तुरंत बाद इनके बच्चे मूल रूप से कीड़े खाते हैं।

■ घरेलू गौरैया को खोजने का सबसे अधिक कौतूहल शहरी क्षेत्र में होता है जहाँ यह एक विशिष्ट, घरेलू गौरैया को जमीन पर फुदकते हुए देखना है।

■ हम गौरैया को भोजन उपलब्ध कराके सुगमता से आकर्षित कर सकते हैं और वे हमारे हाथ से खाना खा सकती हैं। ग्रामीण इलाकों में, खलिहानों, अस्तबलों और भंडारगृहों के आसपास शहरी हाउस स्पैरो के उज्ज्वल, स्वच्छ संस्करणों पर इनका संरक्षण करें।

■ बहुत से लोग घरेलू गौरैया को अपने आँगन में अवांछनीय मानते हैं, कयोंकि वे स्थानीय प्रजातियों के लिए ख़तरा हो सकती हैं।

■ घरेलू गौरैया लोगों के जीवन से इतनी गहराई से जुड़ी हुई है कि आप शायद उन्हें अपने घर के आसपास बिना खाना खिलाए भी पा लेंगे। वे अक्सर पिछवाड़े के फीडरों में आते हैं, जहां वे अधिकांश प्रकार के पक्षियों के बीज, विशेष रूप से बाजरा, मक्का और सूरजमुखी के बीज खाते हैं।

■ अमेरिका में हाउस स्पैरो को 1851 में ब्रुकलिन, न्यूयॉर्क में लाया गया था। 1900 तक यह रॉकी पर्वत तक फैल गया था। 1870 के दशक की शुरुआत में सैन फ्रांसिस्को और साल्ट लेक सिटी में दो और परिचय से इस पक्षी को पूरे पश्चिम में फैलने में मदद मिली। घरेलू गौरैया अब अलास्का और सुदूर उत्तरी कनाडा को छोड़कर पूरे उत्तरी अमेरिका में आम हैं।

■ घरेलू गौरैया बार-बार धूल स्नान करती है। यह अपने शरीर के पंखों पर मिट्टी और धूल के कण फेंकता है, जैसे कि यह पानी से नहा रही हो। यह पँख साफ करने का उपक्रम है। ऐसा करने के लिए गौरैया जमीन में एक छोटा गड्ढा बना लेती है, और कभी-कभी अन्य गौरैया इस स्थान की रक्षा करती है।

■ घरेलू गौरैया प्राकृतिक घोंसले वाली जगहों जैसे कि पेड़ों के बिलों के बजाय मानव निर्मित संरचनाओं जैसे इमारतों की छतों या दीवारों, बड़े फोटो के पीछे, स्ट्रीट लाइट और घोंसले के बक्सों में घोंसला बनाना पसंद करती है।

■ अपनी प्रचुरता, पालन-पोषण में सुगमता और मनुष्यों के प्रति सामान्य भय की कमी के कारण, हाउस स्पैरो कई पक्षी जैविक अध्ययनों के लिए एक उत्कृष्ट मॉडल जीव माना जाता है। हाउस स्पैरो को अध्ययन प्रजाति के रूप में लेकर अब तक लगभग 5,000 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

■ घरेलू गौरैया आक्रामक रूप से अपने घोंसले की रक्षा करती हैं। 1889 में एक वैज्ञानिक ने हाउस स्पैरो द्वारा 70 विभिन्न पक्षी प्रजातियों पर हमला करने के मामलों की सूचना अभिलिखित की थी। हाउस स्पैरो कभी-कभी ईस्टर्न ब्लूबर्ड्स, पर्पल मार्टिंस और ट्री स्वैलोज़ सहित अन्य पक्षियों को घोंसले से बाहर निकाल देती हैं।

■ घरेलू गौरैयों का झुंड में चोंच मारने का क्रम ठीक उसी तरह होता है, जिस तरह खेत में मुर्गियों का होता है। आप नर के काले गले पर ध्यान देकर स्थिति को समझना शुरू कर सकते हैं। बड़े काले धब्बों वाले नर अधिक उम्र के होते हैं और कम काले धब्बों वाले नरों पर हावी होते हैं।

■ घरेलू गौरैयों को अमेरिकन रॉबिन्स से भोजन चुराते और फूलों में छेद करके उनका रस निचोड़ते हुए भी देखा गया है।

■ गौरैया को *सामाजिक प्राणी* कहा जाता है। वे काॅलनी बनाकर रहते हैं जिन्हें आमतौर पर पर झुंड के रूप में वर्णित किया जाता हैं।

■ गौरैया पक्षी उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बहुत कम देखने को मिलती हैं।

■ भोजन की निरंतर आपूर्ति के कारण गौरैया आसानी से मानव बस्तियों में जीवन के अनुकूल हो जाती हैं।

■ पिछले दशकों में इनकी संख्या में 60 से 80 प्रतिशत की कमी आई हैं।

■ नगरीय क्षेत्रों में गौरैया की मुख्यतः ये छह प्रजातियाँ हीं अधिक पाई जाती है: _House Sparrow, Spanish Sparrow, Synd Sparrow, Reset Sparrow, Dead Sea Sparrow और Tree Sparrow._

■ वैज्ञानिक तौर पर गौरैया एक *बायोइंडिकेटर एवं स्वस्थ पर्यावरण का प्रतीक है।* गौरैया वहीं घोंसला लगाती है, जहां स्वस्थ इकोसिस्टम हो।

गौरैया एक अद्भुत पक्षी है, इस पक्षी का संरक्षण करना हम सबका कर्तव्य है। हमें गौरैया पक्षी के लिए नये प्राकतावास विकसित करने चाहिए। नेस्ट बॉक्स व फीडर जनसाधारण को सुलभ करायें। पारि-तंत्र की रक्षा हेतु प्यारी गौरैया का संरक्षण करके अपने घर, गाँव, सोसायटी और क्षेत्र की जैवविविधता के संरक्षण में योगदान करें।

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