कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने 7 मार्च को सरकार का बजट पेश किया। सीएम ने बजट में मुस्लिमों के लिए कई घोषणाएं की। सीएम ने एलान किया कि सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों में से 4 प्रतिशत अब श्रेणी-II बी के तहत मुसलमानों के लिए आरक्षित होंगे। सरकार ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों के लिए 15 महिला कॉलेज खोले जाएंगे। इसका निर्माण वक्फ बोर्ड की ही जमीन पर किया जाएगा, लेकिन सरकार इस पर पैसा खर्च करेगी। मौलवियों को 6000 मासिक भत्ता देने की भी व्यवस्था इस बजट में की गई है। कर्नाटक सरकार के बजट में दलितों और पिछड़ों के कल्याण के लिए समुचित बजट आवंटित नहीं हुआ। मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते कर्नाटक सरकार ने यह कदम उठाया है। सरकारों का काम होना चाहिए वह तुष्टिकरण किसी समुदाय का न करें, पुष्टीकरण सबका हो इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। जब संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का निषेध किया गया है तो फिर जानबूझकर इसे सूचीबद्ध करके विधि सम्मत क्यों बनाया जा रहा है। इसी के मद्देनजर बड़ा सवाल यह है कि आखिर देश के कितने राज्यों में मुस्लिम समाज को आरक्षण दिया गया है? मुस्लिम आरक्षण का भौगोलिक और जनसंख्यात्मक विस्तार होता ही जा रहा है। भारत के कई राज्यों में कितने प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था की गई है? आपको इसके बारे में बताते हैं।
केरल में शिक्षा में 8 फीसदी और नौकरियों में 10 फीसदी सीटें मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षित हैं। तमिलनाडु में मुसलमानों को 3.5% आरक्षण दिया जाता है। पूर्व में भी कर्नाटक में मुस्लिमों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, जिसे BJP सरकार ने ख़त्म कर दिया था। अब कांग्रेस ने राज्य में सत्ता में आते ही दोबारा मुस्लिम आरक्षण को लागू किया है। कर्नाटक में 32% ओबीसी कोटा के भीतर मुस्लिमों को 4% उप-कोटा मिला हुआ है । केरल में 30% ओबीसी कोटा में 12% मुस्लिम कोटा है। तमिलनाडु में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को 3.5% आरक्षण मिलता है। यूपी में 27 फीसदी ओबीसी कोटा के अंदर ही 28 मुस्लिम जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है । तेलंगाना में मुस्लिमों को OBC कैटेगरी में 4 प्रतिशत आरक्षण है। आंध्र प्रदेश में OBC आरक्षण में मुस्लिम रिजर्वेशन का कोटा 7% से 10% तक है । इसके अलावा बिहार, राजस्थान समेत कई राज्यों में जाति के आधार पर मुस्लिमों को OBC आरक्षण में शामिल किया गया है । राजस्थान की भजनलाल सरकार ने ओबीसी कोटे में 14 जातियों में शामिल मुस्लिमों को दिये जाने वाले आरक्षण की समीक्षा करने का फैसला किया है।
सबसे पहले मुस्लिम आरक्षण की शुरुआत जो कि राजनीतिक था, 1909 के मार्ले मिंटो अधिनियम में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गई। उस समय कांग्रेस ने इसका विरोध किया लेकिन 1916 के कांग्रेस के मुस्लिम लीग से लखनऊ समझौते में कांग्रेस ने पृथक निर्वाचन को स्वीकार कर लिया । बाद में इसका आगे के अधिनियमों में कई क्षेत्रों में उत्तरोत्तर बढ़ता गया जो आगे चलकर भारत के विभाजन का मुख्य कारण बना। धर्म-आधारित आरक्षण 1936 में केरल में भी लागू किया गया था, जो उस समय त्रावणकोर-कोच्चि राज्य था । साल 1952 में इसे 45% के साथ सांप्रदायिक आरक्षण से बदल दिया गया, 35% आरक्षण ओबीसी को आवंटित किया गया था, जिसमें मुस्लिम भी शामिल थे। साल 1956 में केरल के पुनर्गठन के बाद लेफ्ट की सरकार ने आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर 50 कर दिया, जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षण 40% शामिल था। सरकार ने ओबीसी के भीतर एक सब कोटा बना दिया जिसमें मुसलमानों की हिस्सेदारी 10% थी जबकि भारत के संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है और तब भी नही था। संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर भी कहते थे कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता ।
दरअसल, राज्य स्तर पर मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी लिस्ट में आरक्षण दिया जाता है । यह कैसे किया जाता है इसके पीछे संविधान के कुछ अनुच्छेदों में छिपी अस्पष्ट भावना का सहारा लेकर किया जाता है । संविधान का अनुच्छेद 16(4) राज्य को पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम बनाता है । इसी तरह अनुच्छेद 15(1) राज्य को नागरिकों के विरुद्ध धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। अनुच्छेद 16(1) अवसर की समानता प्रदान करता है और अनुच्छेद 15 (4) राज्य नागरिकों के किसी भी सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए प्रावधान कर सकता है । इसके अलावा अगर कोई दलित व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम या ईसाई मत कबूल कर लेता है, तो क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलेगा ? ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है । इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में संविधान के उस आदेश पर भी फै़सला होना बाक़ी है, जिसमें कहा गया है कि हिंदू, सिख और बौद्ध के दलितों के अलावा किसी और धर्म के लोगों को अनूसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता । यहां सबसे अधिक चौकाने वाली बात यह है कि संविधान बदलने की दुहाई देने वाले राजनेताओं के साथ कथित दलित और अंबेडकरवादियों ने देश के 9 राज्यों में ओबीसी कोटे में मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था पर चुप्पी साध रखी है ।
(लेखक पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार हैं । पुस्तक’ विभाजन की त्रासदी’के लिये यूपी हिंदी संस्थान द्वारा “केएम मुंशी” पुरस्कार दिया गया है। औरैया जनपद प्रशासन ने पत्रकारिता और साहित्य में ‘औरैया रत्न’ से विभूषित किया है। इटावा हिंदी साहित्य निधि से भी सम्मानित हैं। ‘भरतपुर का सूरजमल’, The line which divided Bharat पुस्तकों के लेखक हैं।
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