भारत केवल भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध राष्ट्र नहीं, अपितु इसकी सांस्कृतिक विविधता, सनातन परंपराएं एवं बहुलतावादी दृष्टिकोण इसे सहअस्तित्व, समरसता और राष्ट्रचेतना का सजीव प्रतीक बनाते हैं। यह भूमि सहिष्णुता और सामाजिक समरसता की संवाहिका रही है, जहां विविध भाषाएं, परंपराएं और समुदाय अपनी विशिष्टता को संरक्षित रखते हुए भी राष्ट्र की एकात्म चेतना में पूर्णतः समाहित होते हैं। तथापि जब किसी क्षेत्र या समाज को नीति-निर्माण प्रक्रिया में समुचित स्थान नहीं प्राप्त होता तो केवल उस क्षेत्र का विकास बाधित नहीं होता अपितु संपूर्ण राष्ट्र की प्रगति भी अवरुद्ध हो जाती है।
इसी राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ करने तथा युवाओं को कर्तव्यनिष्ठ नेतृत्व हेतु प्रेरित करने के संकल्प के साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) मात्र एक छात्र संगठन नहीं अपितु राष्ट्रवादी विचारधारा, नेतृत्व-निर्माण एवं समाजोत्थान का एक सशक्त मंच है। यह केवल शैक्षिक उन्नयन तक सीमित न रहकर युवाओं में राष्ट्रभक्ति, कर्तव्यपरायणता तथा प्रबुद्ध नेतृत्व का संस्कार विकसित करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील है। जब युवा केवल अध्ययन तक सीमित न रहकर राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत जटिल समस्याओं के समाधान हेतु सक्रिय भूमिका निभाते हैं, तभी स्वावलंबी एवं सशक्त भारत की आधारशिला स्थापित होती है। इसी लक्ष्य की सिद्धि हेतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा तीन दिवसीय अखिल भारतीय छात्र संसद का आयोजन किया जाता है, जो युवाओं को नीति-निर्माण प्रक्रिया में प्रभावी सहभागिता प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें राष्ट्रहितकारी विमर्श एवं समाधान हेतु प्रेरित करता है।
9 से 11 मार्च 2025 के बीच नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय छात्र संसद केवल विमर्श का मंच भर नहीं था बल्कि युवाओं के विचारों की ऊर्जा से नीतिगत बदलाव की दिशा में उठाया गया एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध हुआ। इस महामंथन में देशभर से आए छात्र- छात्रा प्रतिनिधियों ने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, जनजातीय उत्थान, पूर्वोत्तर भारत के विकास, रोजगार, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे ज्वलंत विषयों पर गहन चिंतन किया। यह संसद केवल शब्दों तक सीमित न रहकर, संकल्पों में ढली, विचारों से सशक्त हुई और नीतियों के निर्माण की आधारशिला बनी। युवा चेतना की इस धधकती लौ ने यह संदेश दिया कि भारत का भविष्य अब केवल परिभाषित नहीं होगा, बल्कि युवा स्वयं इसे गढ़ेंगे।
पूर्वोत्तर छात्र युवा संसद का आयोजन एक ऐतिहासिक पहल
पूर्वोत्तर भारत जो प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक वैभव और सामरिक महत्त्व के कारण विशिष्ट स्थान रखता है, लंबे समय तक राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र से उपेक्षित रहा है। आज जब सरकार इस क्षेत्र को राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयासों में संलग्न है तब आवश्यक हो जाता है कि युवाओं की भूमिका केवल दर्शक की न रहकर नीति-निर्माण में निर्णायक बन सके। इसी परिप्रेक्ष्य में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा पूर्वोत्तर छात्र युवा संसद का आयोजन एक ऐतिहासिक पहल साबित हुआ। इस छात्र संसद में पूर्वोत्तर की अस्मिता, सामाजिक समरसता, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे जटिल विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ। सबसे उल्लेखनीय यह रहा कि कुकी और मैतेई संगठनों ने मंच साझा किया, जो इस बात का प्रमाण था कि संवाद के माध्यम से जटिल सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान की दिशा में सार्थक पहल संभव है।
पूर्वोत्तर भारत के 95 छात्र संगठन एक मंच पर
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पहल ने पूर्वोत्तर भारत के 95 छात्र संगठनों को एक मंच पर एकत्र कर, संवाद और संकल्प की नई धारा प्रवाहित की। प्रतिनिधियों ने बांग्लादेशी घुसपैठ पर नियंत्रण, उच्च शिक्षा के अवसरों में वृद्धि, आधारभूत संरचना के विस्तार, डिजिटल कनेक्टिविटी की मजबूती और युवाओं के लिए विशेष औद्योगिक नीति जैसी दूरगामी नीतिगत माँगों को मुखर किया। यह केवल एक विमर्श नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर के नवजागरण का उद्घोष था, जहाँ युवा केवल अपनी समस्याओं का प्रवक्ता नहीं था, बल्कि उनके समाधान के शिल्पकार बनने की ओर अग्रसर था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रहे मुख्य अतिथि
पूर्वोत्तर छात्र युवा संसद के मुख्य अतिथि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर के चहुंमुखी विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि 2014-15 की तुलना में 2024-25 के बजट में 153% वृद्धि की गई है, जिससे पूर्वोत्तर को बुनियादी ढांचे की दृष्टि से सुदृढ़ किया जा रहा है। 90,000 करोड़ रुपये सड़क निर्माण, 64 नए हवाई मार्ग, 4,800 करोड़ रुपये वायब्रेंट विलेज योजना और 18,000 करोड़ रुपये रेलवे विस्तार के लिए आवंटित किए गए। विज्ञान और तकनीक को विकास का आधार बनाते हुए नॉर्थ ईस्टर्न स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (NESAC) के तहत 110 योजनाएँ संचालित की जा रही हैं। वहीं 300 से अधिक झीलों के निर्माण द्वारा स्थायी बाढ़ प्रबंधन की दिशा में ठोस प्रयास किए गए हैं। हिंसक घटनाओं में 70% की कमी आई है, जो क्षेत्र में शांति और स्थिरता का द्योतक है। पूर्वोत्तर की 220 से अधिक जनजातियाँ, 160 भाषाएँ और 200 से अधिक बोलियाँ इसकी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करती हैं, जिसे संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जा रही हैं।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नई धारा का केंद्र पूर्वोत्तर
आज पूर्वोत्तर केवल भारत का सीमांत क्षेत्र नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नई धारा का केंद्र बन रहा है। यह संसद न केवल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति थी, बल्कि एक स्वर्णिम भविष्य की प्रस्तावना, जिसमें पूर्वोत्तर अब विकास की परिधि में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रगति के केंद्रीय ध्रुव के रूप में उभर रहा है।
जनजातीय छात्र संसद भी
पूर्वोत्तर छात्र युवा संसद के साथ जनजातीय छात्र संसद भी इस ऐतिहासिक आयोजन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनी, जहाँ 124 से अधिक जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधि एक मंच पर एकत्र हुए। यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि जनजातीय समाज की सांस्कृतिक अस्मिता, आर्थिक सशक्तिकरण और शैक्षिक उत्थान की दिशा में एक निर्णायक क्षण था। इस सत्र में वनाधिकारों के प्रभावी क्रियान्वयन, उच्च शिक्षा में जनजातीय युवाओं की व्यापक भागीदारी, पारंपरिक आजीविका की रक्षा, कौशल विकास और स्वरोजगार को बढ़ावा देने जैसी माँगें उठीं। 124 जनजातियों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाना न केवल एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, बल्कि यह संकेत भी था कि भारत का जनजातीय समाज अपने अधिकारों और भविष्य के प्रति सजग और संगठित हो रहा है।
छात्रा संसद में 300 प्रतिनिधियों की हिस्सेदारी
इसी कड़ी में छात्रा संसद भी एक अत्यंत प्रभावी पहल रही, जिसमें 300 छात्रा प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन प्रतिनिधियों का चयन छात्र संघ पदाधिकारियों, एनएसएस, एनसीसी और अन्य प्रतिभाशाली छात्राओं में से 38,000 छात्राओं के व्यापक सर्वेक्षण के आधार पर किया गया। इस सत्र में महिला शिक्षा, सुरक्षा, आत्मरक्षा प्रशिक्षण, साइबर जागरूकता, छात्रावास सुविधाओं के विस्तार और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण जैसे विषयों पर गंभीर विमर्श हुआ। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए कहा कि एबीवीपी वह मंच है जो दीप पकड़ाने से लेकर दीप जलाने तक की यात्रा करवाता है। मैं गर्व से कहती हूँ कि मैं एबीवीपीयन हूँ।” उनके शब्दों ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह संसद केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि युवा नेतृत्व के निर्माण की प्रयोगशाला भी है।
युवा चेतना का जागरण
तीन दिवसीय यह संसद सिर्फ एक आयोजन नहीं बल्कि युवा चेतना का जागरण थी, जिसने विचार से संकल्प और संकल्प से क्रियान्वयन की दिशा में एक ठोस पहल की। यदि इन प्रस्तावों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो यह केवल पूर्वोत्तर और जनजातीय समाज के विकास तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राष्ट्र की समावेशी प्रगति का सुदृढ़ आधार बनेगा। यह संसद इस सत्य का प्रमाण बनी कि जब युवा मंच से नीति-निर्माण की ओर कदम बढ़ाते हैं, तो वे केवल भविष्य के भागीदार नहीं, बल्कि वर्तमान के निर्णायक शिल्पकार बन जाते हैं।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं।)
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