केरल हाई कोर्ट
केरल के मुनंबम में वक्फ बोर्ड द्वारा मछुआरों के गांव पर मनमाने तरीके से दावा करने के मामले में केरल हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को झटका देते हुए मुनंबम भूमि के मामले की जांच के लिए केरल हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस सीएन रामचंद्र नायर की अध्यक्षता में आयोग गठित करने के आदेश को रद्द कर दिया है।
मामला कुछ यूं है कि हाई कोर्ट के जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने अपने फैसले में कहा कि मुनंबम भूमि मामले में राज्य की पिनाराई विजयन सरकार ने बिना किसी उचित विचार किए बिना ही यंत्रवत तरीके से काम करते हुए ये आदेश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि बिना किसी स्पष्टीकरण नोट और न ही आदेश में इस बात का जिक्र किया है कि आखिर ये किस प्रकार से सार्वजनिक महत्व का मामला है। सरकार के जबावी हलफनामे में दावा किया कि लोगों के विरोध और आंदोलन ने इस मामले को जन्म दिया।
लेकिन इस बात को अपने आधिकारिक आदेश में बताया ही नहीं। जस्टिस कुरियन थॉमस कहते हैं कि जब भी कोई सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़ा मामला होता है तो राज्य सरकार के पास ये अधिकार होता है कि वह कार्रवाई करने के लिए इन्वेस्टिगेशन कर सके। लेकिन, ये मामला पहले से ही वक्फ न्यायाधिकरण में लंबित चल रहा है। ऐसे में सरकार आय़ोग के गठन के लिए योग्य नहीं है।
केरल की व्यावसायिक राजधानी कोच्चि की भीड़-भाड़ से दूर मुनंबम उपनगर में स्थित चेराई गांव, मछुआरों का एक खूबसूरत गांव है। इसी गांव पर हाल ही में वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोंक दिया था। वक्फ ने पूरे गांव को वक्फ की संपत्ति करार दे दिया था। ईसाई बहुल इस गांव में लगभग 610 परिवार रहते हैं। वक्फ बोर्ड के दावे के बाद चेराई गांव के लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि जिस जमीन को वक्फ बोर्ड अपना बता रहा है असल में वह उसकी है ही नहीं।
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1902 में त्रावणकोर के राजा ने गुजरात से केरल पहुंचे अब्दुल सत्तार मूसा पर दया दिखाते हुए 464 एकड़ जमीन दी थी। वो यहां मछली पकड़ने के लिए आया हुआ था। कहा जा रहा है कि 4 दशकों में समुद्री कटाव के कारण राजा की दी गई अधिकांश भूमि नष्ट हो गई। 1948 में सत्तार के उत्तराधिकारी सिद्दीकी सेठ ने जब जमीन की रजिस्ट्री की तो उसमें स्थानीय मछुआरों की जमीन भी शामिल थी।अब उसी जमीन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा ठोंक रहा है।
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