‘गेर यात्रा’ से ‘धुलिवंदन’ तक, रंगों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगम, जब देवता भी धरती पर खेलते हैं रंगों की होली रंग पंचमी: उल्लास, एकता और आध्यात्मिकता का पर्व
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‘गेर यात्रा’ से ‘धुलिवंदन’ तक, रंगों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगम, जब देवता भी धरती पर खेलते हैं रंगों की होली

भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक उत्सवों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।

by श्वेता गोयल
Mar 17, 2025, 12:18 pm IST
in भारत
रंग पंचमी

रंग पंचमी

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भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक उत्सवों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। होली और रंग पंचमी जैसे त्योहार यहां के समाज में उल्लास, एकता और भाईचारे का संचार करते हैं। रंग पंचमी, होली के पांचवें दिन मनाया जाने वाला एक ऐसा विशेष पर्व है, जो रंगों की बहार के साथ-साथ गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को भी समेटे हुए है। यह त्योहार न केवल रंगों के खेल का प्रतीक है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम और एकता का भी संदेश देता है। रंग पंचमी फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन सुबह से ही भक्तगण मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं और फिर रंगों के साथ उत्सव का आनंद लेते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 18 मार्च की रात 10 बजकर 9 मिनट से शुरू होकर 20 मार्च की रात 12 बजकर 37 बजे तक रहेगी। चूंकि हिंदू धर्म में त्योहारों को उदया तिथि के अनुसार मनाया जाता है, इसीलिए रंग पंचमी का त्योहार 19 मार्च को मनाया जाएगा।

रंग पंचमी का इतिहास और महत्व

रंग पंचमी की उत्पत्ति पौराणिक काल से जुड़ी हुई है। यह पर्व विशेष रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से, रंग पंचमी का संबंध सतो गुणों के उदय से होता है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम, भक्ति और उल्लास का भी उत्सव मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन रज-तम के नाश और सतो गुण की वृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक उन्नति का भी संकेत देता है। इसलिए, इसे केवल रंगों के खेल तक सीमित न रखकर एक गहरे धार्मिक पहलू से भी जोड़ा जाता है।

पौराणिक कथाएं और मान्यताएं

रंग पंचमी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं, जो इसके महत्व को और भी बढ़ा देती हैं। ऐसी ही कुछ प्रमुख कथाओं में से एक राधा-कृष्ण की होली से जुड़ी है। मान्यता है कि रंग पंचमी के दिन भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ होली खेली थी। यह दिन उनके दिव्य प्रेम और आनंद का प्रतीक है। रंग पंचमी को देवताओं की होली के रूप में मनाया जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, रंग पंचमी के दिन देवता भी पृथ्वी पर आकर होली खेलते हैं। इसलिए, इस दिन रंगों को आकाश में उड़ाने की परंपरा है ताकि देवताओं को भी रंगों से सराबोर किया जा सके। यह भी माना जाता है कि रंग पंचमी के दिन व्यक्ति सतो गुण रज और तम गुणों पर विजय प्राप्त करता है।

रंग पंचमी की परंपराएं और आयोजन

रंग पंचमी को लेकर भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग परंपराएं देखने को मिलती हैं। मध्य प्रदेश में विशेषकर इंदौर में रंग पंचमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इंदौर की प्रसिद्ध ‘गेर यात्रा’ इस दिन का मुख्य आकर्षण होती है। यह यात्रा बड़े-बड़े ढोल-नगाड़ों, गुलाल और अबीर के रंगों से सराबोर होकर निकलती है। इसमें हजारों लोग भाग लेते हैं और पूरे शहर में रंगों की धूम मचती है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी को ‘धुलिवंदन’ के रूप में मनाया जाता है। यहां लोग होली के बाद भी रंग खेलने की परंपरा को जीवंत रखते हैं और पंचमी के दिन विशेष रूप से श्रीकृष्ण मंदिरों में भजन-कीर्तन और पूजा का आयोजन किया जाता है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश में इस दिन विशेष झांकियां निकाली जाती हैं और मंदिरों में भव्य उत्सव होते हैं। विशेषकर वृंदावन और मथुरा में राधा-कृष्ण को समर्पित अनूठे कार्यक्रम होते हैं, जिनमें श्रद्धालु रंग खेलते हैं। देश के कई अन्य भागों में भी रंग पंचमी को अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। कहीं पर लोकगीतों और नृत्य का आयोजन होता है तो कहीं पर पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लिया जाता है।

रंग पंचमी और प्रकृति का संबंध

रंग पंचमी और प्रकृति के बीच एक गहरा और प्रतीकात्मक संबंध है। यह त्योहार न केवल रंगों का उत्सव है बल्कि यह प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता और उसके साथ हमारे संबंध को भी दर्शाता है। यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन के साथ मनाया जाता है। यह वह समय है, जब प्रकृति नए जीवन से खिल उठती है, पेड़-पौधों पर नई पत्तियां और फूल खिलते हैं और वातावरण रंगों और खुशबू से भर जाता है। रंग पंचमी इन प्राकृतिक रंगों और जीवन के उत्सव का प्रतीक है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही प्रकृति में नए रंग खिलने लगते हैं और रंग पंचमी इन रंगों के उत्सव का प्रतीक है। यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने और उसके संरक्षण के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है। रंग पंचमी का त्योहार सदियों से मनाया जा रहा है और यह भविष्य में भी मनाया जाता रहेगा। यह त्योहार हमारी संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है।

रंग पंचमी का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण

रंग पंचमी केवल एक रंगों का त्योहार ही नहीं है बल्कि यह आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से भी महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन रंगों का उपयोग वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, प्राकृतिक रंगों में चिकित्सीय गुण होते हैं, जो हमारे शरीर और मन को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। रंगों का खेल मानसिक तनाव को कम करने और खुशी बढ़ाने में मदद करता है। यह पर्व हमें तनावमुक्त और आनंदित रहने का अवसर प्रदान करता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वसंत ऋतु के दौरान मौसम परिवर्तनशील रहता है और वातावरण में हानिकारक जीवाणु अधिक होते हैं। रंगों में मौजूद प्राकृतिक तत्व इन जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होते हैं। मान्यता है कि रंग पंचमी के दिन वातावरण में फैली सभी नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और वातावरण शुद्ध हो जाता है।

रंग पंचमी और सामाजिक समरसता

रंग पंचमी समाज में सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देने का एक जरिया भी है। इस दिन लोग आपसी भेदभाव भुलाकर एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक रंग खेलते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में खुशियां बांटना कितना महत्वपूर्ण है। आधुनिक समय में, जब तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी आम हो गई है, रंग पंचमी जैसे त्योहार हमें तनाव से मुक्ति और आनंद प्रदान करते हैं। यह केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं है बल्कि यह समाज में प्रेम, आनंद और उत्साह को बढ़ाने का भी एक माध्यम है। यह पर्व हमें जीवन की सादगी, खुशी और रंगों की अहमियत को समझने की प्रेरणा देता है। यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें अपने सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को संजोकर रखना चाहिए कि हमें अपने सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को संजोकर रखना चाहिए और समाज में सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए।

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