उत्तर प्रदेश

‘एक दिन पूरी दुनिया धारण करेगी भगवा’

पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर द्वारा लखनऊ के ताजमहल होटल में 12 मार्च, 2025 को एकदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन

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हितेश शंकर and प्रफुल्ल केतकर

पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर द्वारा लखनऊ के ताजमहल होटल में 12 मार्च, 2025 को एकदिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसका विषय था-‘मंथन-महाकुंभ और आगे’। इसमें महाकुंभ के विविध आयामों जैसे आध्यात्मिकता, समृद्धि, आर्थिक और सुरक्षा पर विस्तार से चर्चा हुई। ‘महाकुंभ के महाराज’ सत्र में इन विषयों पर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर तथा आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बातचीत की। इसमें मुख्यमंत्री ने अपने भगवा वस्त्र पर गर्व करते हुए कहा कि यह मेरी पहचान है। एक दिन पूरी दुनिया इसे धारण करेगी। प्रस्तुत हैं बातचीत के संपादित अंश- 

महाकुंभ के आयोजन को हम दुनिया को भारत के सामर्थ्य और सनातन धर्म के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करने और देश के अंदर उत्तर प्रदेश के बारे में जो धारणा थी, उसे बदलने का एक माध्यम मानते हैं। और हम इन दोनों में सफल रहे हैं। दुनिया ने भारत के सामर्थ्य को देखा है। सनातन धर्म क्या है? उसके बारे में देशवासियों और दुनियावासियों को क्या बताया गया था? वास्तविक सनातन धर्म क्या है? यह महाकुंभ उसके विराट स्वरूप की एक झलक था, जिसे दुनिया बड़े आश्चर्यचकित तरीके से और कौतूहल की दृष्टि से देख रही थी। और उस महाकुंभ के त्रिवेणी संगम में महास्नान का भागीदार बनकर स्वयं भी पुण्य का भागीदार बन रही थी। इसलिए उत्तर प्रदेश को अपना दृष्टिकोण देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का अवसर मिला। महाकुंभ ने भारत की वास्तविक पहचान को दुनिया के सामने रखा कि यह भारत है और यह उसका सामर्थ्य है। सनातन धर्म भारत की मूल पहचान है। सनतान धर्म में जाति भेद, पंथ भेद और क्षेत्र के भेद या लिंग भेद जैसा कुछ नहीं है। त्रिवेणी के महासंगम में आप सभी को एक साथ डुबकी लगाते देख सकते हैं। यही एक भारत और श्रेष्ठ भारत का वास्तविक रूप है और सनातन धर्म का विराट दर्शन भी है।

महाकुंभ में 6 मुख्य स्नान पर्व थे, जिनमें तीन अमृत स्नान थे। मकर संक्रांति पर ही 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया। मौनी अमावस्या दो दिन (28-29 जनवरी) को पड़ गई, इसलिए भीड़ बढ़ गई। हमने लगभग दो करोड़ लोगों को आसपास के जिलों में ही रोक दिया था। फिर भी एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हो गई, जबकि हम पहले से इसे लेकर सतर्क थे। 28, 29 और 30 जनवरी यानी तीन दिन में 15 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान किया। मौनी अमावस्या के बाद हर दिन डेढ़-दो करोड़ श्रद्धालु पहुंच रहे थे। उनकी गिनती के लिए एआई का उपयोग किया गया। यदि एक दिन में कोई चार बार स्नान कर रहा था तो फेस रिकॉग्निशन एआई कैमरे से उसकी गिनती एक ही बार हुई।

इस तरह, 45 दिन तक चले महाकुंभ में 66 करोड़ 30 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। यह दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन बना। मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में जिस आयोजन को यूनेस्को ने 2019 में मान्यता दी, उसके निदेशक स्वयं इस आयोजन का हिस्सा बने थे। उन्होंने कहा, ‘‘हम मान गए 2019 में प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रयास से जो कार्य यूनेस्को ने किया था, उसका साक्षात दर्शन हमें यहां पर हो रहा है।’’ माननीय प्रधानमंत्री जी ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री को त्रिवेणी का गंगा जल और उनकी धर्मपत्नी को बनारसी साड़ी भेंट की है। उत्तर प्रदेश की ये दो स्मृतियां मॉरीशस पर अमिट छाप छोड़ेंगी। 2019 में मॉरीशस के प्रधानमंत्री 450 लोगों के साथ आए और संगम में स्नान किया। इस बार भूटान के नरेश, 100 से अधिक देशों के राजदूत, मंत्रिगण एवं अन्य प्रमुख हस्तियां इस महाकुंभ की साक्षी बनीं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बातचीत करते हुए पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर एवं आॅर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर (मध्य में)

महाकुंभ के सफल आयोजन के लिए हमने नवंबर 2022 में पहली बैठक की थी। हमने एक वर्ष पहले ही अधिकारियों की तैनाती कर दी थी। महाकुंभ व्यवस्थित हो, इसके लिए प्रयागराज के आसपास में विकास कार्यों को पहले ही पूरा करने को कहा गया था। 2019 से पहले और बाद के प्रयागराज में व्यापक परिवर्तन दिखता है। शहर का कायाकल्प हो गया है।

2019 के पहले वहां कुछ नहीं था। कुंभ और महाकुंभ से हजारों वर्षों से प्रयागराज जुड़ा रहा है। लेकिन पिछली सरकारों ने इस पावन भूमि को माफिया के हवाले कर दिया था। दुनिया को पहला गुरुकुल देने वाले महर्षि भरद्वाज की पावन नगरी अंधकार में डूबी हुई थी। कोई सोच सकता था कि गुलामी के कालखंड में जिस अक्षयवट के दर्शन के लिए श्रद्धालु लालायित रहते थे, उसे नष्ट करने का प्रयास किया गया। श्रद्धालु 500 वर्ष तक अक्षयवट का दर्शन तक नहीं कर पाए थे। त्रिवेणी गंगा, यमुना सरस्वती की बात तो हम करते थे, लेकिन सरस्वती मां को कैद करके रखा गया था।

पातालपुरी, द्वादश माधव प्रयागराज में जहां भगवान राम को निषादराज ने गंगा पार करवाई उस पौराणिक भूमि को माफिया ने कब्जा कर लिया था। ये सब पिछली सरकारों ने करवाया था। भगवान वेणीमाधव, नागवासुकि स्थल भी कब्जे के दायरे में आ गया था। यह हमारा सौभाग्य है कि महाकुंभ के बहाने हमने न सिर्फ प्रयागराज शहर का कायाकल्प किया, बल्कि उसे माफिया मुक्त भी किया। 12 नए गलियारे बनाए। सभी पौराणिक स्थलों को गलियारे से जोड़ा गया है। प्रभु श्रीराम और निषादराज की मैत्री शृंगवेरपुर धाम को भी कॉरिडोर से जोड़ा गया है।

जब राजनीति स्वार्थ से प्रेरित होती है तो वह न अपना कल्याण कर सकती है और न ही लोक का। राजनीति को परमार्थ का माध्यम बनाएंगे तो अपना और लोक का भी कल्याण होगा। सनातन धर्म सभी मत-पंथों का सम्मान करता है। (अपने भगवा वस्त्र पर गर्व करते हुए कहा) यह मेरी पहचान है। एक दिन पूरी दुनिया इसे पहनेगी। भारत का लोकतंत्र बहुत परिपक्व है। जनता सब जानती है कि कहां, क्या हो रहा है। दिल्ली में मैंने यही बात कही कि प्रयागराज पर उंगली मत उठाओ। हमने व्यवस्था की है और वहां आने वाली भीड़ साक्षी है कि गंगा, यमुना और सरस्वती की पावन त्रिवेणी का जल पवित्र है।

हमारे यहां एक कहावत है-बहता पानी, रमता जोगी। ये कभी अशुद्ध नहीं होते। ये चलायमान हैं और चलते-चलते अपना परिमार्जन कर लेते हैं। लेकिन कम से कम दिल्ली में मां यमुना को शुद्ध कर देते तो वृंदावन, मथुरा इत्यादि को शुद्ध जल मिल जाता। मां गंगा उत्तर प्रदेश में 1000 किलोमीटर तय करती हैं। अकेले कानपुर के शीशामउ में 14 करोड़ लीटर सीवर का पानी गंगा में गिरता था। नमामि गंगा परियोजना के तहत राज्य सरकार को पहले से ही पैसा मिल रहा था, लेकिन सपा सरकार ने इसे लागू नहीं किया। हमने दो वर्ष के अंदर वहां सेल्फी प्वाइंट बना दिया। आज सीवर की एक बूंद भी गंगा में नहीं गिरती है। यह है कार्य करने का सामर्थ्य। वे लोग शुद्धता के बारे में क्या बोलेंगे, जो नख से सिर तक अशुद्ध हों, नकारात्मक हों।

रही बात महाकुंभ के सफल आयोजन की, तो मेरी जगह कोई भी सनातन धर्मावलंबी रहता तो भी आयोजन अच्छा होता। कारण, उसमें सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव होता। तुलसीदास जी भी कहते हैं, श्रद्धावान भक्तिज्ञान। अगर मन में श्रद्धा है तो स्वयं ही आगे का रास्ता प्रशस्त हो सकता है। इस पूरे आयोजन में पूज्य संतों का सहयोग और उनका सान्निध्य बहुत अभिनंदनीय था। अपनी परंपरा से इतर उन्होंने कहा कि देश और दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं को अवसर मिलना चाहिए।

महाकुंभ में घटना वाले दिन संत जनों ने अमृत स्नान के लिए सुबह 4 बजे से दिन के 2 बजे तक रुकने का संदेश स्वीकार कर लिया। यह उन लोगों के लिए सबक है, जो कभी सड़क, कभी रेल पटरियों पर इबादत की दुहाई देते हैं। हम व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर परमार्थ, लोक कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। जनता, देश का हित जिसमें होगा, सनातन धर्म की पताका जिसके ऊपर पहुंचेगी, उसके लिए हम कार्य करेंगे। हम पूज्य संतों की भावनाओं का सम्मान करते हैं, उनकी सिद्धि और साधना को प्रणाम करते हैं। हम जब भी उनसे सहयोग मांगते थे, वे हमारे साथ सहयोग करते थे।

याद रखिये, जिसने भी भारत की आस्था के साथ खिलवाड़ किया, उसे अंतत: डूबना ही पड़ा है। यह साक्षात् जगतनियंता की सृष्टि है, उनके द्वारा संचालित सांस्कृतिक विरासत है। संस्कृति भी समृद्धि का आधार बन सकती है। यह काशी, प्रयागराज और आयोध्या ने दिया है। आस्था बिना भेदभाव आजीविका का आधार बन सकती है। हजारों टैक्सी, बस, या जहाज के चालकों में किसी ने जाति या मजहब देखा क्या? जो भी यहां आर्थिक व्यवस्था में जुड़ा, उतना आर्थिक लाभ कमाया। लेकिन सनातन धर्म, भारत की परंपरा और सनातन संस्कृति पर विश्वास न करके इसके विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले लोगों का महिमामंडन करने का प्रयास कर रहे हैं, उन लोगों को उसकी दुर्गति भी देखनी चाहिए। मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति ही औरंगजेब को अपना आदर्श बना सकता है।
मुझे नहीं लगता कि मानसिक रूप से परिपक्व या बुद्धिमान व्यक्ति औरंगजेब जैसे क्रूर व्यक्ति को अपना आदर्श मानेगा। अगर कोई पूरे विवेक से कह रहा है तो फिर उसे सबसे पहले अपने पुत्र का नाम औरंगजेब रखना चाहिए। और फिर औरंगजेब ने अपने अब्बा शाहजहां के साथ जो व्यवहार किया, उसके लिए भी तैयार रहना चाहिए। शाहजहां ने अपनी जीवनी में लिखा है, ‘‘इस जैसा कम्बख्त पुत्र किसी के घर पैदा न हो। तुझसे अच्छा तो वह हिंदू है, जो जीते जी अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा तो करता ही है और मृत्यु के बाद वर्ष में उनका श्राद्ध और तर्पण कर जल देता है। तुमने तो मुझे एक-एक बूंद पानी के लिए तरसाया है।’’

औरंगजेब वही है, जिसने अपने भाइयों की हत्या की। ईश्वर उन लोगों को सद्बुद्धि दें, जो उसे आदर्श मानते हैं। भारत के नायकों का सम्मान करें और भारत के प्रति क्रूर भाव के साथ कार्य करने वाले लोगों का नाम न लें। यह नया भारत है, जो आस्था का सम्मान करना भी जानता है और दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होना भी। भारत के अंदर, भारत की आस्था को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को जवाब देना भी जानता है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण और आने वाले समय में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलेंगे। मैं यही कहूंगा कि यह पूरी सदी भारत की है। दुनिया भारत का अनुसरण कर रही है।

नया भारत विकसित भारत बनने की ओर अग्रसर है। विश्व के कल्याण का मार्ग भारत से ही प्रशस्त होगा। उनके लिए सबसे अच्छा उदाहरण इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का बयान है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर उन्होंने कहा था कि अगर मेरे डीएनए की जांच होगी तो यह भारतीय निकलेगा। जो भारत का खा रहे हैं, उन्हें अपना डीएनए जांच कर कुछ बोलना चाहिए। इंडोनेशिया में सर्वाधिक मुसलमान रहते हैं। वहां का राष्ट्रीय पर्व रामलीला है, मुद्रा गणपति के नाम पर है। एयरलाइंस गरुड़ के नाम पर है। इसलिए ऐसे लोग विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन बंद करें, अन्यथा सच सामने आने पर मुंह दिखाने लायक नहीं बचेंगे।

मैं योगी हूं और किसी धर्म-संप्रदाय में भेदभाव नहीं रखता। मैं उस गोरक्षपीठ से हूं, जहां एक पंगत में सारे लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं और सबको सम्मान देते हैं। सभी मत-पंथ में कुछ न कुछ अच्छा होगा, जो उनके साथ लोग जुड़ते हैं। लेकिन कोई जबरन कब्जा करके, किसी की आस्था को रौंदे, यह तो स्वीकार नहीं है। खासकर सम्भल एक सच्चाई है। पुराण जो आज से 3,500 से 5,000 वर्ष पहले लिखे गए थे, उनमें इसका उल्लेख है। इस्लाम का उदय तो 1400 वर्ष पहले हुआ। 1526 में सम्भल में श्रीहरि विष्णु का मंदिर तोड़ा गया और 1528 में अयोध्या में राम मंदिर। दोनों मंदिरों को मीर बांकी ने तोड़ा। सम्भल एक तीर्थ रहा है। वहां 68 तीर्थ थे, जिसमें हम अभी तक केवल 18 निकाल पाए हैं। 19 कूप थे, जिन्हें खोज लिया गया है। आगे हमने मथुरा, वृंदावन के लिए बजट तैयार किया है। इसके लिए हमने पैसा दे दिया है और कार्य आगे बढ़ने वाला है। जब अवसर मिलता है तो चूकना नहीं चाहिए।

कुछ  लोगों  में उत्तर प्रदेश को प्रश्न प्रदेश रखने की जिद देखी गई। कोरोना के दौरान प्रदेश को बदनाम करने की जो कोशिशें हुईं, वही इस बार महाकुंभ में भी दिखीं। ऐसे लोगों के लिए आपका क्या संदेश है?

देखिए, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। जिन लोगों की दृष्टि ही नकारात्मक है, उनसे सकारात्मक दृष्टि से देखने की अपेक्षा ही क्यों करें। इसी नकारात्मकता के कारण वे जनता की नजर में गिरे हैं। जब हमने महाकुंभ की पहली बैठक की थी, तो उस दौरान भी बहुत से लोगों ने ट्वीट किए, प्रतिक्रियाएं दीं। ऐसे ‘ग्रह’, ‘उपग्रह’ भी आते रहने चाहिए। हम आयोजन में इसे अच्छा मानें, क्योंकि अच्छाई की तुलना तभी होगी, जब कहीं कुछ बुरा होगा। महाकुंभ के दौरान भी यही हुआ। ये लोग हर अच्छे कार्य का विरोध करेंगे। ये सामर्थ्यहीन लोग हैं, इनसे आप अच्छे की उम्मीद मत करिए। ऐसा भी नहीं है कि इन लोगों को अवसर नहीं मिले।

याद कीजिए 1954 में स्वतंत्र भारत का पहला कुंभ हुआ। राज्य और केंद्र, दोनों जगह कांग्रेस की सरकारें थीं। उस दौरान कुंभ में गंदगी, अव्यवस्था और अराजकता थी। उस समय 1000 से अधिक मौतें हुई थीं। उसके बाद प्रयागराज में ही नहीं, हर कुंभ में भगदड़ हुई। 1974, 1986 और उसके बाद कांग्रेस सरकार में महाकुंभ या कुंभ के आयोजन में किस प्रकार की स्थितियां थीं, यह किसी से छिपा नहीं है।

सपा सरकार के समय 2007 और 2013 के कुंभ इसके जीवंत उदाहरण हैं। 2007 में तो प्रकृति ने भी नहीं बख्शा था। काफी जन-धन की हानि हुई थी। जो लोग हमारे स्वच्छ महाकुंभ पर प्रश्न उठा रहे थे, उन्हें देखना चाहिए कि 2013 में मॉरीशस के प्रधानमंत्री कुंभ में आए, लेकिन गंदगी, कीचड़, अव्यवस्था देखकर उनकी हिम्मत स्नान करने की नहीं हुई। वे अपनी आंख में आंसू लिए दूर से ही प्रणाम करके चले गए। उन्होंने कहा था-क्या यही गंगा है? वे हजारों किलोमीटर दूर से आए, लेकिन यहां का जो दृश्य देखा, उससे उनकी आत्मा और आस्था आहत हुई।

नकारात्मक टिप्पणी करने वाले लोगों ने कुंभ को गंदगी, अव्यवस्था और अराजकता का अड्डा बना रखा था। उस समय विदेशी और वामपंथी कुंभ आते थे और यहां की नकारात्मकता का इस्तेमाल भारत व सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए करते थे। धीरे-धीरे यह धारणा बन गई कि कुंभ का मतलब है-अव्यवस्था, गंदगी और भगदड़। 2019 में प्रयागराज कुंभ के समय प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा था कि इस धारणा को बदलना होगा। उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान भी आकर्षित किया था। हमें प्रसन्नता है कि हमने उसे ठीक किया। 2019 का कुंभ स्वच्छता के लिए जाना जाता है। उस समय 24 करोड़ श्रद्धालु आए। 

2025 में दिव्य और भव्य महाकुंभ को हमने स्वच्छता, सुरक्षा और तकनीक के साथ जोड़ा। इससे यह डिजिटल कुंभ भी बना। पहले लोगों को लगा कि हम हवा में बात कर रहे हैं। लेकिन महाकुंभ के दौरान डिजिटल खोया-पाया केंद्र ने 54,000 बिछड़े लोगों को मिलाया। डिजिटल टूरिस्ट मैप की सहायता से हर व्यक्ति आसानी से गंतव्य तक पहुंच सकता था। डेढ़ लाख शौचालय बनाए गए थे और उन्हें क्यूआर कोड से जोड़ा गया था। एप से कोई भी स्वच्छता की जानकारी ले सकता था। इसके अलावा, अन्य क्या सुविधाएं चाहिए, इसकी भी व्यवस्था की थी।

11 भाषाओं में एप के माध्यम से श्रद्धालुओं को सुविधा दी गई थी। हमारा प्रयास था कि किसी भी श्रद्धालु को 3 से 5 किलोमीटर से अधिक पैदल न चलना पड़े। हम मान कर चल रहे थे कि बहुत भीड़ होगी तो 40 करोड़ लोग आएंगे। लेकिन हमने 40 करोड़ श्रद्धालुओं के लिए तैयारी की थी। लेकिन जो लोग दुष्प्रचार में विश्वास करते हैं, जिन्हें भगवान ने बनाया ही इसी उद्देश्य से कि वे लोग हमेशा इस कार्य के लिए रहें। उन्हें हमेशा विपक्ष में रहना है, इसलिए वे पहले ही दिन से ट्वीट करने लगे, बयान देने लगे।

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