गोष्ठी में उपस्थित महिलाएं
गत 8 मार्च को हुई। इसमेंदिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू अध्ययन केंद्र में ‘भारतीय विमर्श में नारी’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित 200 से अधिक प्रतिभागी उपस्थित रहे और 8 तकनीकी सत्रों में लगभग 80 प्रतिभागियों ने अपने शोध कार्य प्रस्तुत किए।
मुख्य अतिथि और दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन प्रो. बलराम पाणि ने भारतीय विमर्श में निहित गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताओं पर प्रकाश डाला, जहां मातृभूमि को सर्वोच्च सम्मान प्राप्त है। हिंदू अध्ययन केंद्र (दिल्ली विश्वविद्यालय) की सह निदेशक और कार्यक्रम संयोजिका डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने कहा कि पाश्चात्य दर्शन में स्त्रियों को ही पापियों की नजर से देखा गया है।
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पांडेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति में डूबते हुए सूरज को देखकर छठी मैया का पर्व मनाया जाता है और जब-जब मनुष्यों में श्रद्धा का भाव प्रगाढ़ रूप से प्रकट होता है तब एक ही शब्द निकलता है और वह है मां। मां जीवन का उदय करती है, भगिनी भाग्य का निर्माण करती है, पुत्री पिता को पवित्र बनाती है और पत्नी पति को पतन से बचाती है।
भारतीय संस्कृति में नारियों को सशक्तिकरण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि नवरात्र के आठवें दिन महाकाली है और नवें दिन वह महागौरी के रूप में विद्यमान होती है। गोष्ठी का आयोजन भारतीय इतिहास संकलन योजना समिति, दिल्ली, रामानुजन कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (दिल्ली) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
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