उज्जैन, 15 मार्च (हि.स.)। यूक्रेन-नेपाल के साथ ही देश भर से आए विद्वानों ने एक स्वर में माना कि भारत में विक्रम संवत को ही पूरी तरह से मान्यता मिलना चाहिए। देश में करीब 25 तरह के संवत्सर चल रहे हैं, लेकिन सबसे सटीक विक्रम संवत्सर है। भारत में संवत परंपरा के विभिन्न आयामों पर चर्चा करते हुए इस निष्कर्ष पर सहमति जताई कि भारत में कालगणना के लिए विक्रम संवत्सर को राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।
दरअसल, उज्जैन में विक्रमोत्सव चल रहा है। जिसके तहत शनिवार को महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ ने महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन में अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें ‘भारत में संवत् परंपरा वैशिष्ट्य एवं प्रमाण’ विषय पर चर्चा की गई। संगोष्ठी में यूक्रेन, नेपाल के वक्ता शामिल हुए। वहीं, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली के अलावा मध्य प्रदेश के इंदौर, भोपाल, दतिया के ज्योतिष विद्वानों ने संबोधन दिया।
यूक्रेन की विदुषी ने ईसा पूर्व प्राचीन यूक्रेनियन कैलेंडर एवं वैदिक संवत्सर की तुलना करते हुए कहा कि यूक्रेनियन कैलेंडर और वैदिक संवत्सर में मूल रूप से कृषि, वर्षानुमान, अच्छी फसल की कामना, सुख-समृद्धि के लिए की गई है। जिनमें नक्षत्र, तिथि, राशि के साथ दिन और महीनों के नाम अलग-अलग मिलते हैं।
डोंगला वैधशाला के प्रकल्प अधिकारी घनश्याम रत्नानी के कहा कि विक्रम संवत को पुनर्स्थापित करना है, विक्रम पंचांग की वैज्ञानिक परम्परा को लागू करना चाहिए। इसकी तिथि की गणना सूर्य और चंद्र को लेकर है और ये बहुत ही सटीक मानी गई है। शासन की और से मान्यता नहीं मिली है। शक संवत गुलामी का प्रतिक है, विक्रम संवत को लागू करना चाहिए।
जयपुर केंद्रीय संस्कृत विश्व विद्यालय से आए सुभाष चंद्र मिश्र ने कहा कि वैदिक परंपरा के अनुसार गणना होना चाहिए। भारत में 25 तरह के संवत है। विक्रम संवत से शक संवत के बीच 135 वर्षों का अंतर है, विक्रम संवत सबसे सटीक है।
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