लखनऊ के ताज होटल में बुधवार को पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर के महाकुंभ मंथन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेबाकी से हर सवालों के जवाब दिए और खुलकर अपनी बात रखी। कुछ लोगों में उत्तर प्रदेश को प्रश्न बनाए रखने की जिद देखी गई। कोरोना के दौरान भी ऐसे तत्वों को देखा गया। इसी प्रकार से महाकुंभ को बदनाम करने की कोशिश दुनियाभर में की गई। ऐसे लोगों के लिए आपका क्या संदेश है? इस सवाल के जवाब सीएम योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष को निशाने पर लिया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जैसी दृष्टि वैसी श्रृष्टि। जिन लोगों की दृष्टि ही नकारात्मक है, उनको मैं सकारात्मक दृष्टि से देखने आशा ही क्यों रखूं। इसी नकारात्मकता के कारण ये लोग जनता की नजर में गिरे हैं। जब हमने महाकुंभ की पहली बैठक आयोजित की थी, तो उस दौरान भी बहुत से लोगों ने ट्वीट किए थे। मेरे सहयोगियों ने भी उस दौरान इस मामले में मुझसे बात की थी, तो मैंने उनसे कहा था कि ये सभी लोग भी आवश्यक हैं। किसी भी आयोजन में ये लोग नहीं होंगे तो कैसे होगा। सभी प्रकार के ग्रह,उपग्रह आते रहने चाहिए और हम इन्हें अच्छा मानकर चलते हैं। क्योंकि आपकी अच्छाई की तुलना तभी होगी, जब बुरे लोग भी होंगे। यही लोग जनता के बीच बोलेंगे कि हमें इस आयोजन को और अच्छा करना है।
ये सामर्थ्यहीन लोग हैं : योगी आदित्यनाथ
महाकुंभ के दौरान भी तो यही हुआ। इन लोगों ने हर अच्छे कार्य का विरोध किया। ये सामर्थ्यहीन लोग हैं, जिनसे अच्छे की उम्मीद नहीं की जा सकती। ऐसा भी नहीं है कि इन लोगों को मौका नहीं मिला। सभी को मौका मिला। याद कीजिए 1954 में स्वतंत्र भारत का पहला कुंभ हुआ। कांग्रेस की राज्य और केंद्र दोनों में ही सरकार थी। उस दौरान गंदगी, अव्यवस्था और अराजकता का जो दृश्य था, उस दौरान 1000 से अधिक मौतें हुई थीं। कांग्रेस की सरकार के दौरान जब भी महाकुंभ हुआ, कैसी स्थितियां थीं, ये किसी से छुपा नहीं है।
वहीं सपा की सरकार के दौरान 2007 और 2013 इसके इसके जीवंत उदाहरण हैं। 2007 में तो प्रकृति ने भी नहीं बक्शा था। काफी जन हानि हुई थी। 2013 में मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रयागराज पहुंचे, वे संगम गए, लेकिन वहां गंदगी, कीचड़, अव्यवस्था देखकर उनकी हिम्मत गंगा स्नान करने की नहीं हुई। वे अपनी आंख में आंसू लिए दूर से ही प्रणाम करके चले गए। उन्होंने कहा था-क्या यही गंगा है। अन्य अवसरों पर भी ऐसा ही देखने को मिलता था। नकारात्मक टिप्पणी करने वाले इन सभी लोगों ने कुंभ को गंदगी औऱ अराजकता का अड्डा बनाया हुआ था।
भारत को बदनाम करते थे
उस समय विदेशी और वामपंथी कुंभ देखने के लिए आते थे, तो इसकी नकारात्मकता का इस्तेमाल वो भारत और सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए करते थे। 2019 में प्रयागराज कुंभ के आयोजन के साथ जुड़ने का मौका मिला था। तब पीएम मोदी ने हमें कहा था कि कुंभ की इस धारणा को बदलना होगा। इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। 2019 का कुंभ अपनी स्वच्छता के लिए जाना जाता है। इस बार के महाकुंभ को हमने स्वच्छता, सुरक्षा और तकनीक के साथ जोड़ा। इससे ये डिजिटल कुंभ भी बना। पहले लोगों को लगा कि ये हवाबाजी है। महाकुंभ के दौरान डिजिटल खोया पाया केंद्र से 54 हजार बिछड़े लोगों को उनके अपनों से मिलाया गया।
डिजिटल का दिखा कमाल
सीएम योगी ने कहा कि डिजिटल टूरिस्ट मैप के माध्यम से हर व्यक्ति आसानी से अपने गंतव्य तक पहुंच सका। 1.5 लाख शौचालय बनाए गए थे, जिन्हें हमने क्यूआर कोड से जोड़ा था। किसी को भी स्वच्छता के बारे में जानना है तो आप उसे डाउनलोड कीजिए और पूरी जानकारी लीजिए। बाकी सुविधाओं को भी इसी प्रकार से देखा जा सकता है। इसके अलावा 11 भाषाओं को भाषा ऐप के जरिए आप अपनी भाषा को समझ सकते हैं। यूएन की उन भाषा को चुनकर किसी भी भाषा में आप बोलिए आपको आपकी भाषा में जबाव मिलता है। महाकुंभ के दौरान मेरी कोशिश ये रही कि किसी भी श्रद्धालु को 3-5 किलोमीटर से अधिक न चलना पड़े। हमने सोचा था कि 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु नहीं आएंगे। क्योंकि जब मेरे सहयोगी देश के अलग-अलग राज्यों में आमंत्रण देने और रोडशो करने गए थे और उसके बाद जिस प्रकार के सवाल हमारे पास आए। उसी के आधार पर हमने सोचा था कि ये संख्या इस बार 40 करोड़ तक जाएगी।
शुरू में 40 करोड़ के हिसाब से तैयारी की थी
सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि शुरू में हमने 40 करोड़ लोगों की दृष्टि से तैयारी की थी। लेकिन, दुष्प्रचार करने वाले हमारे मित्रगणों ने महाकुंभ को बदनाम करने के लिए जमकर ट्वीट किए, तो देश और दुनिया के सनातन धर्म को मानने वालों ने भी इनको सबक सिखाने का यही वक्त है। हमारा अनुमान था कि 6 मुख्य स्नान और इनमें से तीन अमृत स्नान हैं। मकर संक्रांति के दिन साढ़े तीन करोड़ लोगों ने स्नान किया। 28, 29, 30 जनवरी को भीड़ को देखते हुए प्रयागराज के आसपास के जिलों में हमने 2 करोड़ लोगों को रोक रखा था, क्योंकि भीड़ बहुत अधिक हो गई थी।
28, 29, 30 जनवरी को 15 करोड़ लोगों ने स्नान किया था। मौनी अमावस्या के बाद हर दिन डेढ़ से दो करोड़ लोग वहां पहुंच रहे थे। भीड़ के स्नान को कुछ इस तरह से काउंट किया जाता था कि अगर एक व्यक्ति 24 घंटे में 4 बार स्नान करता था, तो उसे एक ही बार काउंट किया जाता था। हमने एआई टूल का इस्तेमाल किया था। फेस रकग्निशन के माध्यम से कैमरे के जरिए लोगों की गिनती होती थी। इस तरह 45 दिनों में 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने स्नान किया। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आय़ोजन बना। जिस आयोजन को महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को रूप में इसे यूनेस्को ने 2019 में मान्यता दी थी।
यूनेस्को ने सराहा, पीएम मोदी को धन्यवाद
इस बार भी यूनेस्को के डायरेक्टर महाकुंभ आए और उन्होंने कहा कि वास्तव में 2019 में पीएम मोदी के प्रयासों से जिस आयोजन को यूनेस्को ने किया था, उसका साक्षात दर्शन हमें यहां मिल रहा है।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री, जिन्हें बिना स्नान किए जाना पड़ा था अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी त्रिवेणी का जल लेकर उनके दरवाजे पर गए हैं। मैं मानता हूं कि ये इस आयोजन का सबसे बड़ा सर्टिफिकेट है?
मैं पीएम मोदी जी का आभारी हूं कि उन्होंने त्रिवेणी का गंगा जल मॉरीशस के पीएम को दिया। इसके साथ ही वाराणसी की साड़ी भी उनकी धर्मपत्नी को दी है। यूपी की दो कृतियां मॉरीशस के साथ अमिट रूप से छाई रहेगी। लेकिन, 2019 के कुंभ में मॉरीशस के पीएम अपने 450 लोगों के डेलीगेशन के साथ आए थे। उन्होंने संगम में स्नान भी किया था। इस बार राष्ट्राध्यक्ष के रूप में भूटान के राजा आए थे। उनके अलावा 100 से अधिक देशों के राजदूत, मंत्रीगण और अन्य प्रमुख हस्तियां भी इस आयोजन का हिस्सा बनी थीं। वे इस अद्भुत, अकल्पनीय क्षण के साक्षी बने।
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