अवनीश कुमार अवस्थी
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में महाकुंभ पर आयोजित पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के ‘मंथन’ कार्यक्रम में अवनीश कुमार अवस्थी जी ने सफलता के सिपाही पर अपने विचार साझा किए।
कुंभ के संबंध में, मैं आपको कुछ पंक्तियां पढ़कर सुनाना चाहता हूं जो माननीय मुख्यमंत्री ने सदन में पढ़ीं और किसी ने लिखकर दिया था और मैं आपको बताना चाहता हूं कि कुंभ की उपलब्धियां क्या हैं। महाकुंभ मेला 2025 के महत्वपूर्ण बिंदु हैं। कुंभ से प्रत्येक भारती के मन में एक अनोखी जागृति आई है। यह जागृति सबसे उत्कृष्ट और आध्यात्मिक शक्ति से परे है। जिन्होंने यह लिखा उन्होंने कहाकि वे 2001 से कुंभ में भाग ले रहे हैं, लेकिन कुंभ 2025 का जो स्वरूप और भव्यता है, वह दुनिया में कहीं नहीं देखी गई। मेले में कई विचारधाराओं के लोगों ने भाग लिया है और इससे लाभान्वित हुए हैं। मेरा पहला बिंदु यह है कि महाकुंभ का आयोजन करके माननीय प्रधानमंत्री जी ने 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य दिया है, जो उस लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है, जब हम पूरी दुनिया को दिखा सकते हैं कि इतना बड़ा आयोजन कहीं भी, किसी भी देश में पहले कभी नहीं हुआ है। दूसरी बात जो मैं कहना चाहूंगा वो ये कि इतना बड़ा मैनेजमेंट क्लास जो आयोजित किया गया है वो पूरी दुनिया में कभी आयोजित नहीं किया गया होगा, जहां इतने सारे लोगों को तैनात किया गया और इतने सारे लोगों की व्यवस्था की गई। मैंने 1989 में पहले कुंभ में भाग लिया था जब मैं वहां एसडीएम सदर था। 89 के कुंभ में हम लोग घोड़ों पर निकलते थे और व्यवस्थाएं बहुत सीमित होती थीं। उसके बाद दो कुंभ में हमने बिजली की व्यवस्था की। मैं कह सकता हूं कि 2019 का कुंभ बहुत महत्वपूर्ण था जब पहली बार माननीय मुख्यमंत्री जी ने इलाहाबाद का नाम प्रयाग करने की घोषणा की तो हम वहां मौजूद थे। आपने कार्यक्रम का नाम मंथन रखा है जो बहुत उपयुक्त है क्योंकि आपने आज लोगों को कुंभ में हुए मंथन के बारे में सोचने के लिए बुलाया है, और आपने भगवान शिव के त्रिशूल का भी उपयोग किया है, इसलिए कुंभ केवल प्रयाग में नहीं हुआ, काशी धाम में भी कुंभ हुआ, अयोध्या में भी कुंभ हुआ। आस्ट्रेलिया से एक फोटोग्राफर आये थे और उन्होंने मुझे बताया कि हमने कुंभ को इतना साफ कभी नहीं देखा था। महाकुंभ में भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिली, पूरे विश्व में किसी भी कार्यक्रम में इतना भोजन नहीं बना होगा जितना एक दिन में महाकुंभ में पकाया गया और उसे बड़े प्रेम से लोगों को परोसा गया।
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