जम्‍मू एवं कश्‍मीर

गुलमर्ग फैशन शो पर विवाद : रमजान की आड़ में मजहबी कट्टरपंथियों का संविधान पर हमला? कश्मीर में शरिया की साजिश उजागर!

गुलमर्ग में रमजान के दौरान फैशन शो से कश्मीर में हंगामा! क्या यह भारतीय संविधान का अपमान है या शरिया थोपने की साजिश? पनुन कश्मीर ने लगाया मजहबी वर्चस्व थोपने का आरोप

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सोनाली मिश्रा

भारत में वर्ष 1950 से संविधान लागू है। यहाँ पर एक धर्मनिरपेक्ष संविधान के अंतर्गत शासन होता है, ऐसा दावा किया जाता है और संविधान खत्म होने का दावा भी वही लोग करते हैं, जो स्वयं संविधान का अनादर करते हैं और मजहबी कट्टरपंथ का साथ देते हैं। हालिया विवाद गुलमर्ग में फैशन शो को लेकर हो रहा है। कश्मीर में गुलमर्ग में एक निजी फैशन शो का आयोजन किया गया।

अब इस फैशन शो को लेकर हंगामा मचा हुआ है। हंगामा इस बात को लेकर है कि रमजान के महीने में फैशन शो का आयोजन क्यों किया गया? फैशन शो की शालीनता या अश्लीलता पर बात ही नहीं है। जो विवाद का कारण है वह यह कि रमजान के महीने में कश्मीर में इसका आयोजन क्यों किया गया, इससे लोगों की भावनाएं आहत हुईं।

मगर कश्मीर और रमजान के महीने और फैशन शो का आपस में क्या संबंध? क्या कश्मीर में शरिया शासन लगा हुआ है और भारतीय संविधान को वहाँ से हटा दिया गया है कि रमजान के महीने में वहाँ पर फैशन शो नहीं हो सकते?

क्या कश्मीर की भूमि का धार्मिक चरित्र पूरी तरह से बदल गया है? यह जाहिर है कि कश्मीर में डेमोग्राफ़िक परिवर्तन हो ही चुका है और हिंदुओं का अस्तित्व  वहाँ पर नगण्य है। परंतु फिर भी इससे अभी तक कश्मीर का धार्मिक चरित्र नहीं बदला है या कहें कि शेष भारत ने अभी तक ऐसा होने नहीं दिया है। फिर भी कश्मीरियत के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है, वह ऋषि कश्यप की भूमि की धार्मिक चेतना और धार्मिक पहचान को पूरी तरह से बदलने का ही षड्यन्त्र है। कश्मीर का नाम जब तक कश्मीर है, ऋषि कश्यप के नाम पर आधारित है, तब तक यह पूरी तरह संभव नहीं है, परंतु वहाँ पर मजहब के आधार पर नियम और कानून बनाकर ऐसा करने के कुप्रयास जारी हैं और रहेंगे।

जारी विवाद भी उसी का हिस्सा है। यह भारतीय संविधान की मूल भावना पर हमला है। यदि फैशन शो अश्लीलता फैलाने वाला कोई कृत्य है या फिर जैसा कहा जा रहा है कि उसमें छोटे-छोटे कपड़े पहने गए, तो उस अश्लीलता का विरोध किया जाना चाहिए, परंतु उसका आधार मजहब कैसे हो सकता है? उसका आधार एक मजहब का कोई खास माह कैसे हो सकता है?

गुलमर्ग के स्की रिसॉर्ट शहर में ये आउटडोर फैशन शो आयोजित किया गया था। इस पर पीडीपी ने विरोध किया था, मौलवियों ने विरोध किया था और साथ ही कई और राजनीतिक दल भी विरोध कर रहे हैं। यहाँ तक कि इस मामले पर विधानसभा में भी विरोध किया गया। और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जांच के भी आदेश दे दिए गए हैं कि स्थानीय संवेदनशीलता आहत हुई है।

यह बहुत दुख की बात है कि स्थानीय संवेदनशीलता एक फैशन शो से आहत हो जाती है, जिसमें उसके अनुसार उसके पाक माह के दौरान अश्लीलता फैलाई गई है, मगर स्थानीय संवेदनशीलता तब आहत नहीं होती, जब धार्मिक पहचान के आधार पर कश्मीरी हिंदुओं को उनकी ही भूमि से पलायन करना पड़ा था। कोई स्थानीय संवेदनशीलता का यह मामला नहीं है। यह पूरी तरह से भारतीय संविधान और शरिया कानून के बीच का मामला है। कश्मीर से हालांकि धारा 370 हट गई है, परंतु कश्मीर में अभी तक मजहबी आधार पर अलगाववाद की भावना भड़काने वाले लोग भारतीय संविधान को स्वीकार नहीं कर पाए हैं।

और अभी भी केवल एक ही समुदाय का वर्चस्व सूबे की राजनीति में चाहते हैं। यह बहुत ही दुख की बात है कि जो कॉंग्रेस और कथित कश्मीरियत की बात करने वाले सेक्युलर दल जो हिंदुओं के पर्वों के दौरान किसी भी प्रकार की धार्मिक स्वतंत्रता न दिए जाने की बात करते हैं और उस समय संविधान की दुहाई देते हैं, वे कश्मीर के धार्मिक चरित्र पर हो रहे इस अतिक्रमण के मुख्य साज़िशकर्ता है।

कश्मीरी पंडितों के संगठन पनुन कश्मीर ने भी इस विरोध की निंदा की है और उन्होनें इसे Theocratic Intolerance की संज्ञा दी है। अपने फ़ेसबुक पेज पर इस विरोध की निंदा करते हुए पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डॉ. अजय चरूँगो ने लिखा कि यह यह विरोध पूरी तरह से जम्मू और कश्मीर पर मजहबी वर्चस्व को थोपना है। उन्होनें कहा कि इस आयोजन को लेकर हो रहा विकाद पूरी तरह से प्रांत में मजहबी ठेकेदारों की पकड़ को बताता है और साथ ही एक सेक्युलर शासन के दावे पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

डॉ. अजय ने कहा कि “”फैशन शो की अश्लीलता के आधार पर नहीं बल्कि मजहबी नियमों के आधार पर की गई निंदा यह पूरी तरह से दिखाती है कि किस तरह से कश्मीर में मजहबी वर्चस्व ही शासन का मूल सिद्धांत बना हुआ है।“
यह मजहबी ठेकेदारों की स्थानीय संवेदनशीलता ही है जो मंदिरों को लेकर असहिष्णु है, जो कश्मीरी हिंदुओं की धार्मिक पहचान को लेकर असहिष्णु है, जो वितस्ता को झेलम करके भी शांत रहती है और जो स्थानीय संवेदनशीलता अमरनाथ मंदिर में हिन्दू यात्रियों की सहूलियत के लिए कुछ सुविधाएं देने के लिए भूमि आवंटित करने पर आहत हो जाती है।

यह विरोध कोई साधारण विरोध नहीं है, यह कश्मीर की पहचान पर किया गया हमला है। कहा जा रहा है कि कश्मीर सूफियों की जमीन हैं, वहाँ पर रमजान के महीने में ऐसी अश्लीलता नहीं होनी चाहिए। यही रमजान के महीने वाली बात पर विरोध होना चाहिए।

सबसे पहली बात तो यही है कि शीलता और अश्लीलता का कोई निर्धारित पैमाना नहीं होता है। एक तहज़ीब है जो अपनी औरतों को काले बुर्के में कैद करके रखना चाहती है तो उसके लिए तो सिंदूर, बिंदी, आदि भी स्वीकार्य नहीं होंगे। और जब मजहबी आधार पर किसी भी आयोजन का विरोध होता है तो वह मानसिकता अपनी मजहबी पहचान से इतर किसी और की पहचान को अस्वीकार करने की होती है।

यही बात पनुन कश्मीर के अध्यक्ष डॉ. अजय कहते हैं कि गुलमर्ग के आयोजन को लेकर जो विरोध हो रहा है वह उसी मानसिकता का निरंतरीकरण है, जिसने कश्मीरी हिंदुओं का जीनोसाइड किया था।

उन्होनें सरकार से इस विषय में स्पष्ट करने के लिए कहा है कि क्या वह भारतीय संविधान में प्रदत्त स्वतंत्रता kआ समर्थन करती है या फिर मजहबी ठेकेदारों के फरमानों के आगे झुकती है।

यह विरोध और कुछ नहीं बस कश्मीर की भारतीय और धार्मिक पहचान पर हमला है, भारतीय संविधान पर हमला है और अब जम्मू कश्मीर की सरकार को यह तय करना है कि वह इस जीनोसाइड वाली मानसिकता के आगे आत्मसमर्पण करती है या फिर वह भारतीय संविधान का आदर करते हुए इस विरोध पर कड़ी कार्यवाही करती है।

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